जब आप एक नए विश्वासी बनते हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि कलीसिया सिर्फ एक भवन नहीं है। कलीसिया वास्तव में परमेश्वर के वे लोग हैं जिन्हें उद्धार मिला है और जिन्हें परमेश्वर ने एक साथ बुलाया है — ताकि वे उसकी आराधना करें और एक-दूसरे की सेवा करें।
बाइबल में कलीसिया के चार प्रमुख रूप
1) मसीह का शरीर
बाइबल में कलीसिया को “मसीह का शरीर” कहा गया है:
1 कुरिन्थियों 12:27
अब तुम मसीह की देह हो, और अलग-अलग अंग हो।
जैसे शरीर के सभी अंग मिलकर काम करते हैं, उसी तरह हर विश्वासी को भी कलीसिया में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। आप केवल दर्शक नहीं हैं, आप मसीह के शरीर का एक जीवित अंग हैं।
2) मसीह की दुल्हन
कलीसिया को एक और रूप में “मसीह की दुल्हन” कहा गया है:
इफिसियों 5:25-27
[25] हे पतियों, अपनी-अपनी पत्नियों से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम किया, और उसके लिये अपने आप को दे दिया।
[26] ताकि वह उसे वचन के जल से धोकर पवित्र करे।
[27] और एक ऐसी कलीसिया को अपने सामने खड़ा करे, जो महिमा से भरी हो, और जिसमें कोई दाग या झुर्री या कोई ऐसी बात न हो, पर वह पवित्र और निर्दोष हो।
जब आप मसीह में आते हैं, तो आप उसकी दुल्हन बन जाते हैं — यह एक पवित्र और समर्पित संबंध है, जैसे विवाह। इसका अर्थ है कि अब आपका जीवन सिर्फ उसी को समर्पित है — एक प्रभु, एक शरीर, पूर्ण आज्ञाकारिता।
3) परमेश्वर का परिवार
कलीसिया को परमेश्वर के परिवार के रूप में भी पहचाना गया है:
इफिसियों 2:19
इसलिये अब तुम परदेशी और बाहरी नहीं रहे, वरन पवित्र लोगों के संगी और परमेश्वर के घराने के हो गए हो।
अब जब आप परमेश्वर के परिवार में शामिल हो चुके हैं, आप उसकी प्रतिज्ञाओं और आशीर्वादों के अधिकारी बन गए हैं। आप अब उसके घर के सदस्य हैं।
4) परमेश्वर का मंदिर
कलीसिया को “परमेश्वर का मंदिर” भी कहा गया है:
1 कुरिन्थियों 3:16-17
[16] क्या तुम नहीं जानते कि तुम परमेश्वर का मंदिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है?
[17] यदि कोई परमेश्वर के मंदिर को नष्ट करेगा, तो परमेश्वर उसे नष्ट करेगा; क्योंकि परमेश्वर का मंदिर पवित्र है, और वह तुम हो।
जब आप उद्धार पाते हैं, तो आप और अन्य विश्वासी मिलकर परमेश्वर के लिए एक जीवित मंदिर बन जाते हैं। इसलिए, आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप पवित्र जीवन जिएं, क्योंकि परमेश्वर अपवित्र स्थान में निवास नहीं करता। आप उसकी पवित्र जगह हैं — उसे आदर दें।
कलीसिया क्यों ज़रूरी है?
1. आत्मिक विकास
प्रचार, शिक्षाएं, शिष्यता कक्षाएं और आत्मिक वरदानों की सहायता से आप तेजी से आत्मिक रूप से विकसित होते हैं।
इफिसियों 4:11-13
और उसने किसी को प्रेरित, किसी को भविष्यद्वक्ता, किसी को सुसमाचार सुनानेवाला, किसी को पासबान और शिक्षक ठहराया।
ताकि पवित्र लोग सेवा के काम के लिए सिद्ध किए जाएं, और मसीह की देह की वृद्धि हो।
जब तक हम सब विश्वास और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएं, और सिद्ध मनुष्य न बन जाएं, अर्थात मसीह की पूर्णता की भरपूरी तक न पहुंच जाएं।
2. सामूहिक आराधना
परमेश्वर की आराधना और स्तुति करने के लिए सबसे उत्तम स्थान है — उसकी सभा में।
भजन संहिता 95:6
आओ, हम दण्डवत करें और झुकें, और अपने कर्ता यहोवा के सम्मुख घुटने टेकें।
3. प्रार्थना और सहायता
कलीसिया प्रार्थना और परस्पर सहायताओं पर आधारित है:
याकूब 5:16
इसलिए तुम एक-दूसरे के सामने अपने पापों को मानो, और एक-दूसरे के लिये प्रार्थना करो, कि तुम चंगे हो जाओ;
धर्मी जन की प्रार्थना जब प्रभावशाली होती है, तो बहुत कुछ कर दिखाती है।
कभी-कभी आप थक जाते हैं, और आपको प्रार्थनाओं या सहायता की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में एक आत्मिक परिवार आपकी सहायता करता है। आरंभिक कलीसिया एक-दूसरे की मदद करती थी और आंतरिक संघर्षों को भी मिलकर हल करती थी।
4. सेवा के लिए तैयारी
कलीसिया परमेश्वर की कार्यशाला की तरह है, जहाँ आप अपनी आत्मिक वरदानों को पहचानते हैं और उनका उपयोग करना सीखते हैं।
प्रेरितों के काम 2:41-42
[41] जिन्होंने उसका वचन अंगीकार किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन लगभग तीन हज़ार लोग उनके साथ मिल गए।
[42] और वे प्रेरितों की शिक्षा, और संगति, और रोटी तोड़ने, और प्रार्थनाओं में लगे रहे।
कलीसिया में उपस्थिति कितनी बार होनी चाहिए?
जितना हो सके उतनी बार।
इब्रानियों 3:13-14
परंतु प्रतिदिन, जब तक आज का दिन कहलाता है, एक-दूसरे को समझाओ, ऐसा न हो कि तुम में से कोई भी पाप के छल से कठोर बन जाए।
क्योंकि हम मसीह में सहभागी हो गए हैं, यदि हम उस विश्वास को, जो आरंभ में था, अंत तक दृढ़ बनाए रखें।
प्राचीन विश्वासियों की आदत थी कि वे हर सप्ताह के पहले दिन — यानी रविवार को एकत्र होते थे:
1 कुरिन्थियों 16:2
सप्ताह के पहले दिन तुम में से हर एक अपने पास कुछ बचाकर रखे, अपनी समृद्धि के अनुसार, कि जब मैं आऊं तब चंदा न करना पड़े।
अगर कोई कलीसिया से अलग हो जाए तो क्या होता है?
– वह आत्मिक रूप से कमजोर हो जाता है।
– उसे मार्गदर्शन और सलाह देनेवाले लोग नहीं मिलते।
– उसकी आत्मिक वरदानें विकसित नहीं हो पातीं।
कलीसिया एक स्कूल की तरह है। स्कूल ही शिक्षा नहीं है, लेकिन शिक्षा वहीं मिलती है — वहाँ शिक्षक होते हैं, किताबें होती हैं, अभ्यास और अनुशासन होता है।
इसी तरह, एक नए मसीही को कलीसिया की आवश्यकता होती है — वहाँ वह सुरक्षा, पोषण, शिक्षा और आत्मिक परिवार पाता है।
सावधान रहें: हर सभा कलीसिया नहीं होती
हर समूह जो “मसीही” कहलाता है, वास्तव में परमेश्वर का कलीसिया नहीं होता। झूठे भविष्यद्वक्ता और मसीह-विरोधी आज सक्रिय हैं।
इनसे दूर रहें:
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जो यीशु मसीह को आधार और उद्धारकर्ता नहीं मानते।
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जो पवित्रता और धार्मिकता का प्रचार नहीं करते।
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जो स्वर्ग-नरक और न्याय के विषय में नहीं सिखाते।
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जो पवित्र आत्मा की कार्यशक्ति को नहीं मानते।
पहले प्रार्थना करें, फिर निर्णय लें। यदि आप सुनिश्चित नहीं हैं कि कहाँ जाएँ, तो हम आपकी सहायता कर सकते हैं।
स्मरण रखने योग्य शास्त्र:
इब्रानियों 10:25
और अपनी सभाओं को न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों की आदत बन गई है, बल्कि एक-दूसरे को समझाते रहें — और यह उस दिन के निकट आते देख और भी अधिक करें।
सभोपदेशक 4:9-10
[9] दो एक से अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है।
[10] यदि वे गिरें, तो एक अपने साथी को उठा सकता है। परंतु अकेले व्यक्ति को हाय जब वह गिरता है और कोई नहीं होता जो उसे उठाए।
भजन संहिता 122:1
जब उन्होंने मुझसे कहा, “आओ, हम यहोवा के भवन में चलें”, तो मैं आनन्दित हुआ।
अंतिम बातें
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कलीसिया की सभा में जाना आपकी आदत बन जाए।
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जहाँ दो या तीन लोग मसीह के नाम पर एकत्र हों, वहाँ वह उनके बीच होता है।
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आराधना के समय देरी से न पहुँचें।
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नींद में न पड़े — यूतिकुस मत बनो (प्रेरितों 20:9)।
प्रभु आपको आशीष दे।
इस संदेश को दूसरों के साथ भी बाँटिए — यह सुसमाचार है!