यूहूदा की पुस्तक: भाग 2

यूहूदा की पुस्तक: भाग 2

हमने पिछली बार देखा कि यशु का दास यूदाह हमें चेतावनी देता है कि हमें विश्वास की रक्षा करनी है—उस विश्वास की जो एक बार सभी विश्वासियों को सौंपा गया। आज हम अध्याय 1 की 5वीं से 7वीं आयत को ध्यानपूर्वक देखेंगे:

“मैं तुम्हें वह स्मरण दिलाना चाहता हूं, यद्यपि तुम पहले ही सब कुछ जान चुके हो, कि प्रभु ने पहले उन लोगों को मिस्र देश से छुड़ाया, परन्तु जो विश्वास नहीं लाए उन्हें बाद में नाश कर दिया। और उन स्वर्गदूतों को, जिन्होंने अपनी पदवी को नहीं सम्भाला, परन्तु अपने रहने के स्थान को छोड़ दिया, उन्हें उस ने बड़े दिन के न्याय के लिये सदा के बन्धनों में अंधकार में रखा है। जैसी सदोम और अमोरा और उनके चारों ओर के नगर हैं, जिन्होंने उन्हीं के समान व्यभिचार किया और पराये शरीर के पीछे हो लिये, वे एक दृष्टांत के रूप में रखे गये हैं, और अनन्त आग का दण्ड भुगत रहे हैं।”
(यूहूदा 1:5-7)

यूहूदा हमें तीन ऐतिहासिक उदाहरण देता है जो हमें परमेश्वर के न्याय के बारे में याद दिलाते हैं:

1. मिस्र से छुड़ाए गए लोग

परमेश्वर ने मिस्र से अपने लोगों को आश्चर्यकर्मों और सामर्थ्य से छुड़ाया। फिर भी, जिन लोगों ने विश्वास नहीं किया, वे जंगल में नाश हो गए।

“वे सभी जिन पर परमेश्वर ने कृपा की थी, जिन्होंने लाल समुद्र को पार किया, वे ही बाद में अविश्वास के कारण परमेश्वर के क्रोध का सामना करते हैं।”
(गिनती 14:29-35 देखें)

यह हमारे लिए एक चेतावनी है—मात्र उद्धार का आरंभ ही काफी नहीं है; हमें अंत तक विश्वासयोग्य रहना है।

2. विद्रोही स्वर्गदूत

फिर वह स्वर्गदूतों का उल्लेख करता है जिन्होंने अपनी विधि, अपनी स्थिति को त्यागा। उनका पाप यह था कि उन्होंने अपने ठहराए गए स्थान को छोड़ा और ईश्वर की आज्ञा के विरुद्ध विद्रोह किया।

“परन्तु परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को जिन्होंने पाप किया, क्षमा नहीं किया, पर उन्हें अधोलोक में अंधकारमय गड्ढों में डाल दिया, ताकि न्याय के दिन तक वे वहां बन्धन में रहें।”
(2 पतरस 2:4)

परमेश्वर न केवल मनुष्यों पर, बल्कि स्वर्गदूतों पर भी न्याय करता है।

3. सदोम और अमोरा

इन नगरों ने दुष्टता, व्यभिचार और अस्वाभाविक व्यवहारों में डूबकर परमेश्वर की सहनशीलता की सीमा को पार कर दिया।

“इसलिए यहोवा ने सदोम और अमोरा पर गन्धक और आग की वर्षा की, और उन नगरों को पलट दिया।”
(उत्पत्ति 19:24-25)

सदोम और अमोरा हमें स्मरण कराते हैं कि पाप चाहे सामाजिक रूप से स्वीकृत हो जाए, परमेश्वर की दृष्टि में वह अब भी घृणित है।


आज के विश्वासियों के लिए शिक्षा

यूहूदा इन उदाहरणों को प्रस्तुत करता है ताकि हम सीख सकें कि परमेश्वर केवल प्रेम का परमेश्वर नहीं है—वह न्यायी भी है। आज का चर्च अनुग्रह पर इतना ज़ोर देता है कि उसने कभी-कभी परमेश्वर के न्याय की गंभीरता को भुला दिया है।

परमेश्वर की दया अद्भुत है, लेकिन वह हमें पाप में बने रहने की अनुमति नहीं देता। ये तीन उदाहरण हमें यह दिखाते हैं कि जिन लोगों को एक समय परमेश्वर के साथ समीपता मिली, उन्होंने जब उसकी आज्ञाओं की अवहेलना की, तो वे भी नाश से बच न सके।


निष्कर्ष

इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए, नम्रता से जीवन व्यतीत करना चाहिए, और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन में चलते रहना चाहिए। परमेश्वर का न्याय सच्चा और न्यायपूर्ण है। यूहूदा हमें यह याद दिलाता है कि हम केवल “प्रारंभ” पर नहीं रुक सकते—हमें “अंत तक विश्वास में” बने रहना है।

“जो अंत तक धीरज धरता है, वही उद्धार पाएगा।”
(मत्ती 24:13)


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Rose Makero editor

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