जब परमेश्वर हमें जीवन की एक अवस्था से उठाकर दूसरी ऊँचाई पर ले जाना चाहता है, तो वह एक विशेष प्रकार की बुद्धि का उपयोग करता है।
स्वभाविक रूप से, हम मनुष्य चाहते हैं कि जब भी हम प्रार्थना करें, हमें तुरंत उत्तर मिल जाए। लेकिन परमेश्वर की बुद्धि हमेशा ऐसी नहीं होती कि वह उसी समय हमें वो दे दे जो हम माँग रहे हैं। कई बार ऐसा होता है कि उत्तर मिलने में समय लगता है — फिर भी वही परमेश्वर की इच्छा होती है।
कुछ प्रार्थनाएँ होती हैं जिनका उत्तर तुरंत मिल सकता है, लेकिन कुछ ऐसी भी होती हैं जिनका उत्तर मिलने में समय लगता है। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर तुरंत जवाब देने में असमर्थ है — नहीं, वह तो सर्वशक्तिमान है, लेकिन जब वह उत्तर देने में विलंब करता है, तो वह भी हमारे भले के लिए होता है।
कल्पना कीजिए, एक 6 साल का बच्चा, जिसे पढ़ना तक नहीं आता, अपने बहुत अमीर पिता से कहता है कि मुझे कार दे दो! पिता के पास सामर्थ्य तो है, लेकिन क्या वह बच्चे को कार देगा? बिल्कुल नहीं! क्योंकि वह जानता है कि कार देने का परिणाम दुर्घटना हो सकता है — और वह अपने बच्चे को जीवन देने के बजाय मृत्यु देगा!
इसलिए वह पहले उसे स्कूल भेजेगा — उसे पढ़ना, लिखना, गिनती करना सिखाएगा। फिर जब वह बड़ा होगा, ड्राइविंग स्कूल जाएगा, वहाँ से सीखकर लाइसेंस प्राप्त करेगा — और तब पिता उसे कार देगा।
इस पूरी प्रक्रिया में 10 साल भी लग सकते हैं। इसका मतलब है कि पिता ने बच्चे की प्रार्थना का उत्तर 10 साल बाद दिया — लेकिन उसी दिन से प्रक्रिया शुरू हो गई थी जब उसने माँगा था।
इसी प्रकार, यदि वही बच्चा अपने पिता से टॉफी माँगता, तो उसे तुरंत मिल जाती।
हमारे परमेश्वर के साथ भी ऐसा ही होता है। कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिन्हें हम मांगते ही पा लेते हैं, लेकिन कुछ आशीषें ऐसी होती हैं जो आने में सालों लग जाते हैं — शायद कई साल!
इसलिए यदि आप परमेश्वर से कुछ माँगते हैं और तुरंत उत्तर नहीं मिलता, तो यह मत सोचिए कि परमेश्वर ने आपको इंकार कर दिया या आपकी प्रार्थना सुनी नहीं। नहीं! उसने सुनी है, और उत्तर भी दिया है — लेकिन वह आपको सही समय पर देगा, ताकि वह आशीष आपको संभाल सके, न कि गिरा दे।
जब इस्राएली मिस्र से बाहर निकले और कनान देश में प्रवेश किया, तो परमेश्वर ने उस देश में रहने वाले कनानियों और अन्य जातियों को एक ही दिन या एक ही साल में नहीं निकाला।
क्यों? क्या वह ऐसा नहीं कर सकता था?
बिल्कुल कर सकता था। लेकिन उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। बाइबल बताती है कि उसने उन्हें धीरे-धीरे निकाला, ताकि इस्राएली बढ़ सकें और देश को पूरी तरह से संभाल सकें।
निर्गमन 23:27-30 “मैं अपना भय तेरे आगे भेजूंगा और उन सब लोगों को जिनके बीच तू जाएगा घबरा दूंगा… परन्तु मैं उनको तेरे सामने से एक ही वर्ष में नहीं निकाल दूँगा, ऐसा न हो कि वह देश उजाड़ हो जाए और बनैले पशु तुझ पर बढ़ जाएं। मैं उनको तेरे सामने से थोड़ा थोड़ा करके निकाल दूँगा, जब तक तू बढ़कर उस देश का अधिकारी न हो जाए।”
देखा आपने? यदि परमेश्वर एक ही दिन में सारे शत्रुओं को हटा देता, तो देश वीरान हो जाता, और वहाँ हिंसक जानवर, साँप, शेर आदि बढ़ जाते, जो इस्राएलियों के लिए और भी बड़ी परेशानी बन जाते।
इसलिए परमेश्वर की बुद्धि ने यह निर्णय लिया कि वह अपने लोगों को थोड़ा-थोड़ा करके आशीष देगा — जब तक वे उसे संभालने योग्य न बन जाएं।
हमें धैर्य और प्रतीक्षा की आत्मा से भरना चाहिए। परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ तुरंत पूरी नहीं होतीं — हर चीज़ का एक उचित समय होता है।
यदि आप एक युवक या युवती हैं और आपने परमेश्वर से जीवन साथी के लिए प्रार्थना की है, और उत्तर नहीं मिला, तो हो सकता है समय अभी नहीं आया हो। शायद आपकी उम्र अभी कम है, या आपकी समझ अभी विवाह के लिए परिपक्व नहीं हुई है। और परमेश्वर नहीं चाहता कि आप उस आशीष को लेकर खुद को या किसी और को हानि पहुँचाएँ।
इसी तरह यदि आप धन के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन मन में दिखावा है, तो परमेश्वर जरूर सुनता है — लेकिन वह पहले आपको “उस धन को संभालने की शिक्षा” देगा। वह आपको सिखाएगा कि धन कैसे आपको नियंत्रित न करे। यह प्रशिक्षण 20 साल भी चल सकता है — लेकिन जब आप उसमें पास हो जाते हैं, तब परमेश्वर वह आशीष सौंपता है।
हर प्रार्थना का उत्तर एक प्रक्रिया से गुजरता है। परिणाम देखने के लिए धैर्य और विश्वास जरूरी है।
परमेश्वर हमें उसी समय वह नहीं देता जो हम माँगते हैं, क्योंकि वह हमें समझदारी और परिपक्वता में बढ़ाना चाहता है। इसलिए, धैर्य रखें। यदि आपने माँगा है — उसने सुन लिया है, और वह आपके भले के लिए उसे सही समय पर देगा।
प्रभु यीशु आपको आशीष दे।
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