हमारे प्रभु यीशु मसीह, जो जीवन के स्वामी, सामर्थी राजा, अटल शिला, उद्धारकर्ता और समस्त राजाओं के राजा हैं — जब उन्होंने अपनी इच्छा से अपना जीवन दे दिया, ताकि वह उसे फिर से ले सकें (यूहन्ना 10:17), तब उन्होंने क्रूस पर सात वचन कहे। ये सात वचन हमें चारों सुसमाचारों (मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना) में मिलते हैं। ये वचन निम्नलिखित हैं:
(लूका 23:34)
“यीशु ने कहा, ‘पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।’ फिर उन्होंने उसके कपड़े बाँट लिए और चिट्ठियाँ डालीं।”
यह प्रभु यीशु का क्रूस पर कहा गया पहला वचन था, जो उनके असीम प्रेम और करुणा को प्रकट करता है। हालाँकि उन्होंने अपने दिल से पहले ही क्षमा कर दिया था, लेकिन उन्होंने पिता से भी उनके लिए क्षमा माँगी। इससे हम सीखते हैं कि केवल हम किसी को क्षमा कर दें, यह काफी नहीं; परमेश्वर से भी उसके लिए क्षमा की प्रार्थना करना आवश्यक है।प्रभु यीशु हमें सिखाते हैं कि हम भी दूसरों के लिए मध्यस्थता करें — उनके लिए क्षमा माँगें।
(लूका 23:42–43)
“तब उसने कहा, ‘हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मुझे स्मरण रखना।’यीशु ने उससे कहा, ‘मैं तुझसे सत्य कहता हूँ, आज ही तू मेरे साथ स्वर्ग में होगा।’”
यह दूसरा वचन दर्शाता है कि प्रभु यीशु अंतिम क्षणों तक भी करुणामय और उद्धार देने को तत्पर हैं। वह डाकू जिसने अन्त समय में विश्वास किया, उसे उसी घड़ी उद्धार प्राप्त हुआ। यह हमारे लिए आशा का संदेश है कि जब तक जीवन है, तब तक प्रभु उद्धार देने को तैयार हैं।
(यूहन्ना 19:26–27)
“जब यीशु ने अपनी माता और अपने प्रिय शिष्य को वहाँ खड़ा देखा, तो उसने अपनी माता से कहा, ‘हे माता, देख, यह तेरा पुत्र है।’फिर उसने उस चेले से कहा, ‘देख, यह तेरी माता है।’ और उस समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया।”
यह तीसरा वचन हमें परिवार और एक-दूसरे की देखभाल की ज़िम्मेदारी का स्मरण दिलाता है। क्रूस के पीड़ा के बीच भी यीशु ने अपनी माँ की चिंता की। यह हमें प्रेम की आज्ञा को पूरा करने की प्रेरणा देता है — एक-दूसरे का भार उठाने की।
(मत्ती 27:46)
“और नौवें घंटे के लगभग यीशु ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, ‘एली, एली, लमा शबक्तानी?’ अर्थात्, ‘हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?’”
यह चौथा वचन प्रभु यीशु की उस घड़ी की गहराई और पीड़ा को प्रकट करता है, जब उन्होंने हमारे पापों का भार अपने ऊपर लिया। पाप का बोझ इतना भारी था कि उन्होंने परमेश्वर की उपस्थिति से स्वयं को अलग अनुभव किया। यह हमारे पापों की गंभीरता को दर्शाता है।
(यूहन्ना 19:28)
“इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ पूरा हो गया है, ताकि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो, कहा, ‘मुझे प्यास लगी है।’”
यह पाँचवाँ वचन हमें यीशु की शारीरिक पीड़ा की स्मृति दिलाता है। परमेश्वर का पुत्र जो जल का स्रोत है, अब प्यासा है — ताकि हमें जीवन का जल मिले।
(यूहन्ना 19:30)
“जब यीशु ने सिरका लिया, तो कहा, ‘सब कुछ पूरा हुआ।’ फिर उसने सिर झुकाया और अपनी आत्मा सौंप दी।”
यह छठा वचन विजयी घोषणा है! यीशु ने उस कार्य को पूरा किया जिसे करने के लिए वह संसार में आए थे — पाप के दाम चुका दिए गए, उद्धार का मार्ग खोल दिया गया। अब कोई और बलिदान आवश्यक नहीं।
(लूका 23:46)
“तब यीशु ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, ‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।’ और यह कहकर उसने प्राण छोड़ दिए।”
यह सातवाँ और अंतिम वचन था, जो उन्होंने क्रूस पर प्राण त्यागने से पहले कहा। यह पूर्ण समर्पण का संकेत है। यीशु ने न केवल शरीर, बल्कि आत्मा भी पिता के हाथों में सौंप दी — एक ऐसा समर्पण जो हमें भी सीखना है।
तीन दिन के बाद, यीशु मसीह मृतकों में से जी उठे। मृत्यु उन्हें रोक न सकी — और वह विजयी होकर बाहर आए। यह हमारे लिए मुक्ति और अनंत जीवन का द्वार है!हालेलूयाह!
क्या अब भी तुम यह नहीं समझ सके कि यीशु ने तुम्हारे लिए कितनी बड़ी कीमत चुकाई? आज ही पश्चाताप करो, और उसे अपने जीवन में आमंत्रित करो, इससे पहले कि आनेवाले संकट और विनाश के दिन तुम पर आ टूटें।
प्रभु तुम्हें आशीष दे।
इस सुसमाचार को औरों तक भी पहुँचाओ — शेयर करो और खुशखबरी फैलाओ।
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