प्रश्न:
सभोपदेशक 9:16 में लिखा है:
“तब मैंने कहा: बुद्धि बल से श्रेष्ठ है, तौभी उस गरीब की बुद्धि तुच्छ मानी जाती है, और उसके वचन नहीं माने जाते।” — सभोपदेशक 9:16 (ERV-Hindi)
क्या इसका यह मतलब है कि हमें गरीब या प्रभावहीन लोगों की सलाह को नहीं सुनना चाहिए? हमें इस पद को किस प्रकार समझना चाहिए?
उत्तर:
आइए पहले इस पद के पूरे संदर्भ को देखें, जो सभोपदेशक 9:13–16 में वर्णित है:
“मैंने सूर्य के नीचे एक और बुद्धि की बात देखी, जो मेरे विचार में बड़ी है: एक छोटा सा नगर था जिसमें थोड़े ही पुरुष रहते थे। एक बड़ा राजा उसके विरुद्ध आया, और उसको घेर लिया, और उसके विरुद्ध बड़े-बड़े मोर्चे बाँध दिए। तब उस नगर में एक गरीब, परंतु बुद्धिमान मनुष्य पाया गया, जिसने अपनी बुद्धि से उस नगर को बचा लिया; तौभी उस गरीब पुरुष को कोई स्मरण न करता था। तब मैंने कहा: बुद्धि बल से उत्तम है, तौभी उस गरीब की बुद्धि तुच्छ मानी जाती है, और उसके वचन नहीं माने जाते।” — सभोपदेशक 9:13–16
यह कहानी एक कड़वी सच्चाई को दर्शाती है: एक गरीब व्यक्ति के पास इतनी बुद्धि थी कि वह पूरे नगर को बचा सकता था, फिर भी लोग उसे शीघ्र भूल गए और उसकी बातों को अनसुना कर दिया।
सुलैमान इस अन्याय पर विचार करता है — यह कहने के लिए नहीं कि गरीब लोग सम्मान के योग्य नहीं हैं, बल्कि यह दिखाने के लिए कि संसार अक्सर ऐसे लोगों की उपेक्षा करता है जिनके पास धन, पद या प्रभाव नहीं है, चाहे उनके पास कितनी ही बुद्धि क्यों न हो।
आध्यात्मिक विचार:
बाइबल बार-बार सिखाती है कि परमेश्वर धन या सामाजिक स्थिति नहीं, बल्कि बुद्धि और भक्ति को महत्व देता है।
“यहोवा का भय मानना बुद्धि का प्रारंभ है।” — नीतिवचन 9:10
सच्ची बुद्धि परमेश्वर के साथ सही संबंध से उत्पन्न होती है — न कि डिग्रियों या आर्थिक सफलता से।
याकूब 2:5 में प्रेरित याकूब मण्डली को चेतावनी देते हुए कहता है:
“हे मेरे प्रिय भाइयो, सुनो: क्या परमेश्वर ने इस संसार के गरीबों को नहीं चुना कि वे विश्वास में धनवान बनें और उस राज्य के वारिस हों, जो उसने अपने प्रेम रखने वालों से वादा किया है?” — याकूब 2:5
स्पष्ट है कि बाइबल यह स्वीकार करती है कि गरीब लोग आत्मिक रूप से समृद्ध और अत्यधिक बुद्धिमान हो सकते हैं।
सभोपदेशक में समस्या गरीबों की बुद्धि की कमी नहीं है, बल्कि यह कि मनुष्य अक्सर ऐसी बुद्धि को पहचानने और उसका सम्मान करने में असफल रहता है।
सुलैमान का मुख्य संदेश यह है: बुद्धि बल से श्रेष्ठ है, लेकिन संसार अकसर बाहरी दिखावे, शक्ति और धन को ईश्वरीय बुद्धि से अधिक महत्व देता है। यह सोच मसीहियों में नहीं होनी चाहिए।
व्यवहारिक शिक्षा:
सभोपदेशक 4:13 में भी लिखा है:
“एक गरीब और बुद्धिमान लड़का उस बूढ़े और मूर्ख राजा से अच्छा है जो अब चेतावनी को नहीं मानता।” — सभोपदेशक 4:13
परमेश्वर की दृष्टि में महत्त्व इस बात का नहीं कि आपकी आवाज़ कितनी ऊँची है या आपकी पदवी क्या है — बल्कि इस बात का है कि आपका चरित्र और आपकी बुद्धि धर्मपरायणता में आधारित है या नहीं।
अंतिम विचार:
सभोपदेशक 9:16 की सच्चाई यह नहीं है कि हमें गरीबों को अनदेखा करना चाहिए, बल्कि यह कि हमें अपने गर्व और पक्षपात से लड़ना चाहिए — क्योंकि वही हमें ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं।
आइए हम ऐसे लोग बनें जो बुद्धि को वहां भी पहचानें जहां दुनिया नहीं देखती, और जो उन विनम्र आवाज़ों का भी सम्मान करें जिनके द्वारा परमेश्वर अकसर सत्य प्रकट करता है।
प्रभु हमें ऐसी विनम्रता दें कि हम हर उस आवाज़ को सुनने के लिए तैयार रहें जिसके द्वारा वह हमें सिखाना चाहता है — चाहे वह किसी भी अप्रत्याशित स्थान से क्यों न आए।
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