(यीशु की शिक्षाएँ)
मत्ती की पुस्तक चार सुसमाचारों में से एक है। इसमें कई सीखें हैं, लेकिन इस अध्ययन में हम उन मुख्य शिक्षाओं पर ध्यान देंगे जो आपके पठन और शास्त्र समझने में मदद करेंगी।
यीशु ने केवल चमत्कार नहीं दिखाए, बल्कि सिखाया भी। और उनके शिक्षण में ही शिष्यत्व का मूल है।
उनकी सेवकाई में, उनकी शिक्षाएँ दो भागों में बंटी हैं:
इस अध्ययन में हम मत्ती की पुस्तक में दर्ज पांच प्रमुख उपदेशों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
“उपदेश” का अर्थ समझना जरूरी है — यह किसी विशेष विषय पर यीशु द्वारा दिया गया शिक्षा या प्रवचन है। यह एक सतत वार्ता है, जिसमें प्रभु किसी सत्य पर जोर देते हैं।
अब, प्रत्येक उपदेश के संदेश को देखें।
(एक ईसाई का चरित्र और आचरण) — मत्ती 5–7
जब यीशु पर्वत पर गए, उनके शिष्य उनके पीछे गए। वहां उन्होंने उन्हें कई बातें सिखाईं।
इस उपदेश का मुख्य उद्देश्य एक ईसाई के सही आचरण को सिखाना था — ऐसा जीवन जो परमेश्वर को प्रसन्न करे।
उन्होंने कहा:
“आत्मा में दीन हैं, वे धन्य हैं।”
और जारी रखा:
“कोमल हैं, दयालु हैं, शांति स्थापित करने वाले हैं, जो धर्म के लिए भूखे और प्यासे हैं, वे धन्य हैं।”
उन्होंने यह भी सिखाया:
ये शिक्षाएँ हर विश्वास करने वाले को रोज पढ़नी और ध्यान करना चाहिए। क्योंकि यीशु ने केवल शब्द नहीं बोले — उनका जीवन पहले ही उनकी शिक्षाओं का उदाहरण था।
(मत्ती 10)
इस उपदेश में, यीशु ने अपने शिष्यों को बुलाया और उन्हें निर्देश दिया कि जब वे भेजे जाएंगे तो प्रचार कैसे करें।
उन्होंने बताया:
यह उपदेश विश्वासियों को धैर्य और आज्ञाकारिता में मजबूती देगा।
(मत्ती 13)
इस उपदेश में, यीशु ने स्वर्ग के राज्य के रहस्यों को बताया। उन्होंने इन सच्चाइयों को समझाने के लिए उपमाएँ दीं।
जब भी बाइबल में
“स्वर्ग का राज्य” का उल्लेख होता है, यह यीशु और उनके पृथ्वी पर मोक्षकारी कार्य की ओर इशारा करता है। (लूका 4:18–19)
मुख्य उपमाएँ:
हर उपमा परमेश्वर के राज्य के मूल्य और महानता को प्रकट करती है। जो इसे खोजता है, वह अपनी सारी बाकी चीज़ों को त्यागने को तैयार होता है।
(मत्ती 18)
यह उपदेश बताता है कि विश्वासियों को एक-दूसरे के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए।
मुख्य बातें:
यीशु ने इसे इस कहानी से समझाया:
एक चरवाहा जिन्होंने 99 भेड़ों को छोड़कर खोई हुई भेड़ को ढूंढा।
“सत्तर बार सात बार क्षमा करो।”
(मत्ती 24)
यह उपदेश अन्त समय और यीशु के पुनरागमन के बारे में है। यीशु ने अंत के संकेत बताए — नैतिक पतन, झूठे भविष्यद्वक्ता, युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ, और महान संकट।
उन्होंने चेतावनी दी:
“इसलिए सजग रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु कब आएगा।” — मत्ती 24:42
आज के समय में यह उपदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम अंतिम दिनों में हैं।
जब आप इन पांच उपदेशों को समझेंगे, तो आपको मत्ती के सुसमाचार का गहन ज्ञान मिलेगा। इन्हें बार-बार पढ़ें और ध्यान करें — ये विश्वासियों के जीवन की नींव हैं।
प्रभु आपको आशीर्वाद दें और उनके वचन के अनुसार जीवन जीने में मदद करें।
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