लूका 14:27 (ERV-HI)
“जो कोई अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे नहीं चलता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।”
यीशु का शिष्य होना केवल चर्च जाना, प्रार्थना करना या ‘मसीही’ कहलाना नहीं है। एक सच्चे शिष्य की कुछ विशेष पहचान होती हैं। यदि वे आपके जीवन में नहीं हैं, तो आप केवल एक अनुयायी (Follower) हो सकते हैं — लेकिन शिष्य नहीं।
यहाँ चार प्रमुख बातें हैं जो हर सच्चे शिष्य में होनी चाहिए:
कोई भी विद्यार्थी स्वयं को नहीं सिखा सकता। उसे एक शिक्षक की ज़रूरत होती है। और जब हम मसीह के स्कूल में दाखिल होते हैं, तो हमारा शिक्षक स्वयं प्रभु यीशु होता है।
लेकिन ध्यान दीजिए — मसीह से सिखने की पहली शर्त है:
“स्वयं को इनकार करना” — यानी अपनी इच्छाओं को प्रभु की आज्ञा के अधीन करना।
यदि हम यह नहीं करते, तो हम जीवन की परीक्षाओं — जैसे अभाव और समृद्धि, संघर्ष और आराम — में असफल हो सकते हैं।
प्रेरित पौलुस इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। वह प्रभु से ठीक से सिखाया गया था और उसने हर हाल में जीना सीख लिया था।
फिलिप्पियों 4:12–13 (ERV-HI)
“मैं गरीबी और अमीरी दोनों में जीना जानता हूँ। मैं हर तरह की परिस्थिति का सामना करना सीख चुका हूँ, चाहे वह पेट भर खाना हो या भूखा रहना, चाहे बहुत कुछ होना हो या बहुत कम। मुझे वह सब कुछ करने की शक्ति है जो मसीह मुझे देता है।”
एक सच्चा शिष्य हमेशा सीखता है। यदि हम मसीह के शिष्य हैं, तो हमें निरंतर उसके वचन को पढ़ना, समझना और उस पर चलना सीखना होगा।
लेकिन यह संभव तभी है जब हम अपनी खुद की इच्छाओं को त्यागें और क्रूस उठाकर यीशु का अनुसरण करें।
यही एकमात्र रास्ता है।
आज बहुत से लोग बाइबल पढ़ते हैं लेकिन उन्हें समझ नहीं आती। क्यों? क्योंकि उन्होंने अपने मन को पूरी तरह प्रभु को नहीं सौंपा। वे एक “आरामदायक मसीहत” चाहते हैं — जिसमें कोई बलिदान न हो, न ही आत्मिक चुनौती।
लेकिन बाइबल ऐसे लोगों पर नहीं खुलती। बाइबल केवल शिष्यों के लिए खुलती है।
हर विद्यार्थी की परीक्षा होती है। ऐसे ही, प्रभु के हर शिष्य की भी परीक्षाएँ होती हैं।
ये परीक्षाएँ कठिन हो सकती हैं, लेकिन इनका उद्देश्य होता है —
हमारे विश्वास को मजबूत करना और हमें आत्मिक रूप से परिपक्व बनाना।
याकूब 1:2–3 (ERV-HI)
“भाइयों और बहनों, जब तुम तरह-तरह की परीक्षाओं से गुजरते हो, तो इसे एक खुशी की बात समझो। क्योंकि तुम जानते हो कि जब तुम्हारे विश्वास की परीक्षा होती है, तो तुम्हारे अंदर धीरज पैदा होता है।”
परीक्षा से डरने या भागने वाला शिष्य आगे नहीं बढ़ सकता, और वह आत्मिक स्नातकता (spiritual maturity) तक नहीं पहुँच सकता।
एक विद्यार्थी जो सभी परीक्षाएँ पास करता है, उसे प्रमाण पत्र (Certificate) मिलता है — सम्मान और अधिकार का चिह्न। उसी प्रकार, जो शिष्य प्रभु यीशु के साथ चलते हुए हर परीक्षा में धैर्यपूर्वक स्थिर रहता है, उसे अंत में एक इनाम दिया जाएगा:
जीवन का मुकुट (Crown of Life)
याकूब 1:12 (ERV-HI)
“धन्य है वह मनुष्य जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि जब उसकी परीक्षा पूरी हो जाती है, तो वह जीवन का वह मुकुट पाएगा जिसे परमेश्वर ने उन लोगों से वादा किया है जो उससे प्रेम करते हैं।”
क्या मैं यीशु का शिष्य हूँ, या केवल एक अनुयायी?
यीशु के पीछे भीड़ चलती थी, लेकिन उनमें से बहुत कम लोग शिष्य बने। कुछ चमत्कारों के लिए आए, कुछ भाषण सुनने, और कुछ अपनी उम्मीदें लेकर — लेकिन सिर्फ कुछ ही लोगों ने सच में अपनी इच्छाओं को त्याग कर प्रभु के साथ चलना चुना।
और आज भी वही शर्त है:
बाइबल में “मसीही” शब्द का उपयोग सबसे पहले उन्हीं लोगों के लिए हुआ जो शिष्य थे।
प्रेरितों के काम 11:26 (ERV-HI)
“…और अन्ताकिया में शिष्यों को सबसे पहले ‘मसीही’ कहा गया।”
इसलिए अगर आप जानना चाहते हैं कि आप सच्चे मसीही हैं या नहीं, तो सिर्फ यही देखें:
क्या मैं यीशु का सच्चा शिष्य हूँ?
यदि आपके जीवन में ऊपर बताए गए शिष्यत्व के गुण नहीं हैं — तो आपको अपने विश्वास की गहराई को फिर से जाँचना चाहिए।
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