हमारा पड़ोसी कौन है

हमारा पड़ोसी कौन है

(लूका 10:25–37 पर आधारित)

ईसा ने हमें दो महान आज्ञाएँ सिखाईं: पहला, कि हम अपने समस्त हृदय, आत्मा, ताकत और बुद्धि से परमेश्वर से प्रेम करें; और दूसरा, कि हम अपने पड़ोसी को वैसे ही प्रेम करें, जैसे हम खुद से प्रेम करते हैं (लूका 10:27)। ये आज्ञाएँ ईसाइयत की नैतिक आधारशिला हैं और सम्पूर्ण विधान और भविष्यद्वक्ताओं का सार हैं (देखें: मत्ती 22:37–40)।

फिर एक कानून जानने वाला (वक़ील) ईसा को चुनौती देता है: “मेरा पड़ोसी कौन है?” (लूका 10:29) — वह यह जानना चाहता था कि यह प्रेम‑आज्ञा किन तक सीमित है। ईसा ने उसे दयालु सामरी वाले दृष्टांत से उत्तर दिया (लूका 10:30–37), और हमें दिखाया कि पड़ोसी कौन हो सकता है।


दृष्टांत का सारांश (लूका 10:30–37)

एक आदमी Jerusalem से Jericho की ओर जा रहा था, जब डाकुओं ने उस पर हमला किया, उसके कपड़े छीन लिए, उसे पीटा और आधा-जीवित छोड़कर चले गए। पहले एक याजक (प्रीस्ट) उसी रास्ते से गुजरा, लेकिन उसने देखा और आगे बढ़ गया, बिना मदद किए। उसके बाद एक लेवी आया, उसने भी उसे देखा, पर कूतराते हुए चल दिया।

फिर एक सामरी आया। उस समय यहूदियों और सामरियों में गहरी ऐतिहासिक और धार्मिक दूरी थी, फिर भी उस सामरी को उस घायल आदमी पर दया आई। उसने उसके घावों पर तेल और दाखरस डाल कर पट्टियाँ बांधी, उसे अपनी सवारी पर बैठाया, एक सराय में ले गया, और उसकी देखभाल की। अगले दिन उसने दो सिक्के निकाल कर सराय वाले को दिए और कहा,

“इस आदमी की देखभाल करना; जो तुम खर्च करोगे, मैं वापस आकर चुका दूँगा।” (लूका 10:35)

फिर ईसा ने पूछा, “इन तीनों में से तुम्हारे विचार में, घायल आदमी का पड़ोसी कौन था?” (लूका 10:36) वकील ने उत्तर दिया, “वो जिसने उस पर दया की।” (लूका 10:37) ईसा ने कहा, “जाओ और तुम भी उसी तरह करो।” (लूका 10:37)


धार्मिक और व्यवहारिक चिंतन

  1. पड़ोसी की परिभाषा
    इस दृष्टांत से हमें पता चलता है कि “पड़ोसी” केवल नज़दीकी भौगोलिक व्यक्ति नहीं है — यह उसकी जाति, धर्म या समाज‍िक स्थिति पर निर्भर नहीं करता। असली पड़ोसी वो है, जो सक्रिय दया और करुणा दिखाता है। सामरी की करुणापूर्ण सोच agape प्रेम की प्रतिमूर्ति है — वह निस्वार्थ, त्यागपूर्ण और बिना शर्त प्रेम करता है, जैसा परमेश्वर करता है।

  2. धार्मिक दायित्व बनाम मानव प्रेम
    याजक और लेवी दोनों धार्मिक रूप से प्रतिष्ठित थे, लेकिन उन्होंने घायल आदमी की मदद नहीं की। यह दिखाता है कि केवल धार्मिक नियमों का पालन करना ही पर्याप्त नहीं है — अगर हमारे दिल में दूसरों के लिए सच्चा प्रेम न हो, तो यह कानून का मूल नहीं पकड़ पाता।

  3. सीमाओं को पार करना
    सामरी ने धार्मिक और सामाजिक सीमाओं को पार किया — उसने देखा कि ज़रूरतमंद कौन है, और उसकी मदद में खुद को लगा दिया। यह हमें सिखाता है कि ईश्वर का राज्य मानव विभाजनों से ऊपर है, और हमें उन पर अस्पष्ट बंदिशों से अधिक प्रेम दिखाना चाहिए, चाहे वो “अपरिचित” ही क्यों न हो।

  4. आजीविका में प्रयोग
    हमें आज भी इकट्ठा होकर अपने आसपास के लोगों — खासकर पीड़ितों, वंचितों, और अनदेखे लोगों — की सेवा करनी चाहिए। न केवल बड़े संदर्भों में, बल्कि हमारी अपनी सामुदायिक ज़िन्दगी में। पड़ोसी प्रेम का मतलब है सिर्फ भावनात्मक सहानुभूति ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक सहायता, आत्मिक पोषण और सच्ची दोस्ती। (जैसे: याकूब 1:27; रोमियों 12:13; कुलुस्सियों 3:12–14)

  5. आध्यात्मिक मरम्मत और वृद्धि
    सामरी द्वारा “तेल और दाखरस” का उपयोग घाव भरने में प्रतीकात्मक हो सकता है — यह पवित्र आत्मा की चिकित्सा शक्ति का संकेत दे सकता है (जैसे बाइबिल में “तेल” अक्सर स्वीकृति, मरम्मत या अभिषेक के लिए उपयोग किया जाता है)। और घायल व्यक्ति को सराय में ले जाना, रूपक रूप से यह दर्शाता है कि हमें जरूरतमंदों को ईसाई समुदाय (मसीही शरीर) में लाना चाहिए, जहां वे आध्यात्मिक रूप से बढ़ सकते हैं।


निष्कर्ष

ईसा का यह दृष्टांत हमें याद दिलाता है कि “अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो” — यह केवल सामाजिक आदर्श नहीं, बल्कि गहरी आह्वान है। यह हमें सीमाओं को मिटाने, सक्रिय दया दिखाने और सच्चे प्रेम में जीने के लिए बुलाता है। हर विश्वासवाला को यह आत्म‑मूल्यांकन करना चाहिए: “मैं किसे अपना पड़ोसी मानता हूँ?” — और फिर उसी तरह प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए, जैसा कि सामरी ने किया।

ईश्वर हम सभी को कृपा दें कि हम सच्चे पड़ोसी बनें और अपनी ज़िन्दगी में उनकी दया और प्रेम का प्रतिबिंब बनें।


 

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Doreen Kajulu editor

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