ऐश बुधवार कैथोलिक कलीसिया में चालीसा (Lent) की 40 दिनों की अवधि की शुरुआत को दर्शाता है, जो ईस्टर तक चलता है। इस दिन, खजूर की डालियाँ—जो यीशु के यरूशलेम में विजयी प्रवेश का उत्सव मनाने के लिए उपयोग की गई थीं—जला दी जाती हैं और उनसे बनी राख को विश्वासियों के माथे पर क्रूस के चिन्ह के रूप में लगाया जाता है। यह राख पश्चाताप और नश्वरता का प्रतीक होती है। राख लगाते समय सेवक कहता है, “स्मरण रख कि तू मिट्टी है और मिट्टी में ही लौट जाएगा,” जो उत्पत्ति 3:19 से लिया गया है, जहाँ परमेश्वर आदम से कहता है, “क्योंकि तू मिट्टी है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति 3:19) यह मानव की दुर्बलता और पश्चाताप की आवश्यकता की याद दिलाता है। लेकिन क्या ऐश बुधवार बाइबल आधारित है? क्या ऐश बुधवार बाइबल में है?उत्तर है: नहीं। ऐश बुधवार एक विशेष रीति के रूप में बाइबल में कहीं उल्लेखित नहीं है। न ही कलीसिया द्वारा इस दिन को मनाने, चालीसा की शुरुआत करने या राख के प्रयोग की कोई बाइबिलीय आज्ञा है। हां, उपवास और पश्चाताप निश्चित रूप से बाइबल आधारित अभ्यास हैं, लेकिन ऐश बुधवार स्वयं एक परंपरा है जो बाद में कलीसिया के इतिहास में विकसित हुई। यह मनुष्य द्वारा स्थापित एक परंपरा है, न कि परमेश्वर की दी हुई आज्ञा। यह समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत से लोग गलती से ऐश बुधवार को बाइबल का आदेश मान लेते हैं, यह सोचते हुए कि राख में कोई आत्मिक शक्ति है या इस दिन का पालन आत्मिक वृद्धि के लिए आवश्यक है। लेकिन सच्चाई यह है कि बाइबल में ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया है कि मसीही ऐश बुधवार का पालन करें। यदि कोई मसीही इसे नहीं मानता, तो यह पाप नहीं है। और राख में कोई दैवीय शक्ति नहीं है। मसीहियों के लिए असली आवश्यकताएं क्या हैं?बाइबल में जो स्पष्ट रूप से बताया गया है, वही मसीहियों के लिए अनिवार्य है। प्रेरितों के काम 2:42 में प्रारंभिक कलीसिया के चार मुख्य कार्यों का वर्णन किया गया है: रोटी तोड़ना – प्रभु भोज में भाग लेना, जो मसीह और एक-दूसरे के साथ एकता का प्रतीक है। संगति रखना – आराधना, शिक्षा और सहारे के लिए एकत्र होना। प्रेरितों की शिक्षा में बने रहना – परमेश्वर के वचन का अध्ययन और प्रेरितों की शिक्षाओं का पालन। प्रार्थना करना – प्रार्थना मसीही जीवन का केंद्र है, और उपवास प्रायः प्रार्थना के साथ किया जाता है। ये चार बातें—आराधना, संगति, शिष्यत्व और प्रार्थना—वे आधारभूत अभ्यास हैं जिन्हें करने का मसीहियों को निर्देश दिया गया है। उपवास निश्चय ही बाइबल आधारित है, लेकिन यह किसी विशेष दिन जैसे ऐश बुधवार से जुड़ा हुआ नहीं है। यह व्यक्ति की आंतरिक प्रेरणा और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन से किया जाना चाहिए। तो फिर चालीसा के दौरान उपवास का क्या?चालीसा के समय उपवास करना आत्मिक अनुशासन का एक उपयोगी माध्यम हो सकता है, यदि यह सही मनोभाव से किया जाए। लेकिन बाइबल में कहीं नहीं कहा गया कि ईस्टर से पहले 40 दिनों का उपवास आवश्यक है। उपवास को किसी परंपरा या धार्मिक बोझ के रूप में नहीं बल्कि नम्रता, प्रार्थना और पश्चाताप के माध्यम से परमेश्वर के निकट आने के एक साधन के रूप में किया जाना चाहिए। उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए—परंपरा निभाने के लिए नहीं, बल्कि हृदय से परमेश्वर की खोज के लिए। निष्कर्ष: आत्मिक वृद्धि पर ध्यान दें, न कि परंपराओं परऐश बुधवार और अन्य धार्मिक परंपराएं जैसे गुड फ्राइडे या विशेष पर्व हो सकते हैं सांस्कृतिक या ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हों। लेकिन मसीहियों को सावधान रहना चाहिए कि वे इन परंपराओं को बाइबल के आदेशों के समकक्ष न बना दें। सच्ची आत्मिकता किसी रीति-रिवाज में नहीं, बल्कि परमेश्वर के साथ जीवित संबंध में है—जो प्रार्थना, वचन, संगति और दूसरों के प्रति प्रेम में प्रकट होती है। अंततः, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम केवल वही करें जो बाइबल में स्पष्ट रूप से कहा गया है, और हमारी आत्मिकता का उद्देश्य यह हो कि हम परमेश्वर के और निकट पहुँचें—न कि केवल ऐसी परंपराओं को निभाएं जिनका कोई बाइबिलीय आधार नहीं है। परमेश्वर आपको आशीष दे।
क्या मसीहिय हर साल 14 फरवरी को पूरी दुनिया “वैलेंटाइन डे” यानी “प्रेम दिवस” के रूप में मनाती है। लेकिन क्या प्रभु यीशु में विश्वास करने वालों को इस दिन को मनाना चाहिए? क्या यह मसीही विश्वास के अनुरूप है, या फिर यह एक सांसारिक परंपरा है जो हमें असली प्रेम से भटकाती है? वैलेंटाइन डे की उत्पत्ति इतिहास के अनुसार वैलेंटाइन (या वैलेंटिनस) नामक एक रोमन पादरी तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लॉडियस द्वितीय के शासनकाल में जीवित था। क्लॉडियस एक मूर्तिपूजक था, जिसने मसीही विश्वासियों के लिए अनेक कठिनाइयाँ खड़ी कीं। उसने यह आदेश जारी किया कि रोमन सैनिक विवाह नहीं कर सकते, क्योंकि वह मानता था कि अविवाहित पुरुष बेहतर योद्धा बनते हैं। लेकिन वैलेंटाइन ने इस अन्यायी नियम का विरोध किया। वह करुणा और मसीही विश्वास से प्रेरित होकर सैनिकों के लिए गुप्त रूप से विवाह समारोह आयोजित करता रहा। जब उसके कार्यों का पता चला, तो उसे गिरफ्तार कर मृत्युदंड की सजा दी गई। कहा जाता है कि जेल में रहते हुए उसकी दोस्ती जेलर की अंधी बेटी से हो गई। वैलेंटाइन ने उसके लिए प्रार्थना की, और वह चमत्कारी रूप से देख पाने लगी। कहा जाता है कि फाँसी से ठीक पहले, 14 फरवरी 270 ईस्वी को, उसने उसे एक विदाई पत्र लिखा, जिस पर हस्ताक्षर थे: “तुम्हारा वैलेंटाइन।” बाद में इसी कहानी से प्रेरित होकर 14 फरवरी को प्रेम-पत्र और उपहार देने की परंपरा शुरू हुई। परंतु प्रश्न यह है कि क्या यह कहानी किसी भी प्रकार से बाइबल आधारित मसीही विश्वास से जुड़ी है? उत्तर है – लगभग नहीं। क्या वैलेंटाइन डे मसीही विश्वास के अनुरूप है? वैलेंटाइन डे का बाइबल में कोई उल्लेख नहीं है, न ही यह परमेश्वर की महिमा करता है। यह दिन सामान्यतः भावनात्मक आकर्षण, शारीरिक आकर्षण और सांसारिक विचारों को बढ़ावा देता है – जो परमेश्वर के वचन से बिल्कुल विपरीत हैं। 1 पतरस 4:3 (ERV-HI):“तुमने तो अपने पिछले जीवन में गैर-यहूदियों की इच्छाओं के अनुसार जीने में पर्याप्त समय बर्बाद किया है। उस समय तुम लोग बुरे कामों, बुरी इच्छाओं, शराब पीने, जश्न मनाने और घृणित मूर्तिपूजा में लगे रहते थे।” आज वैलेंटाइन डे आमतौर पर पार्टी, अनैतिकता और भौतिक प्रेम के रूप में जाना जाता है – यह न तो परमेश्वर की आराधना का दिन है और न ही आत्मिक बढ़ोतरी का। मसीहियों के लिए असली प्रेम-दिवस क्या है? मसीहियों के लिए प्रेम कोई एक दिन नहीं होता – बल्कि यह हर दिन का जीवन-शैली होता है। असली प्रेम भावनाओं या शारीरिक आकर्षण से प्रेरित नहीं होता, बल्कि यह परमेश्वर के आत्मा से संचालित होता है – वैसा प्रेम जैसा प्रभु यीशु ने क्रूस पर दिखाया। 1 यूहन्ना 4:7–10 (ERV-HI):“प्रिय मित्रो, हमें एक दूसरे से प्रेम रखना चाहिए, क्योंकि प्रेम परमेश्वर से आता है। हर वह व्यक्ति जो प्रेम करता है, वह परमेश्वर का सन्तान है और परमेश्वर को जानता है… प्रेम यह नहीं है कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, बल्कि यह है कि उसने हम से प्रेम किया और अपने पुत्र को हमारे पापों का प्रायश्चित बनने के लिए भेजा।” यूहन्ना 15:13 (ERV-HI):“अपने मित्रों के लिये अपने प्राण देना, इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं होता।” यही है वह प्रेम जिसकी शिक्षा हमें दी गई है – बलिदान करने वाला, शुद्ध और पवित्र प्रेम। तो क्या मसीहियों को वैलेंटाइन डे मनाना चाहिए? उत्तर है: नहीं। यह कोई मसीही त्योहार नहीं है। यह सांसारिक परंपराओं पर आधारित है, और आमतौर पर आत्मिक अनुशासन या मसीही प्रेम के बजाय भावनाओं और शारीरिक इच्छाओं को बढ़ावा देता है। वैलेंटाइन हमारे उद्धारकर्ता नहीं हैं। उन्होंने हमारे पापों का भार नहीं उठाया। उन्होंने हमें नया जीवन नहीं दिया। तो फिर हम क्यों उनका स्मरण फूलों, तोहफ़ों और गीतों के साथ मनाएं, जिनका मूल मूर्तिपूजा से है? हमें “वैलेंटाइन का प्रेम” नहीं, बल्कि मसीह का प्रेम फैलाना है – वह प्रेम जो पाप से छुटकारा देता है, शुद्ध करता है, पुनर्स्थापित करता है और अनंत जीवन देता है। मसीहियों को इससे क्या सीखना चाहिए? 1. प्रेम हर दिन का विषय है, न कि केवल एक दिन काबाइबल के अनुसार प्रेम को विशेष रूप से किसी एक दिन तक सीमित नहीं किया गया है। यह तो हर दिन हमारे जीवन से झलकने वाला स्वभाव है। 2. सांसारिक वासना नहीं, आत्मिक प्रेम को बढ़ावा देंहमें विशेष रूप से युवाओं को सिखाना चाहिए कि प्रेम वासना नहीं है। असली प्रेम पवित्र होता है, आदर करता है और प्रतीक्षा करता है। 3. वैलेंटाइन डे को सेवा के अवसर में बदलेंअगर हम चाहें तो 14 फरवरी को आत्मिक रूप से उपयोग कर सकते हैं: अकेले या बीमार लोगों से मिलने जाएँ और मसीह का प्रेम बाँटें। अनाथों या जरूरतमंदों की सहायता करें। युवाओं के लिए शुद्धता और आत्मिक संबंधों पर संगति या प्रार्थना सभा आयोजित करें। प्रेम का सच्चा संदेश लेकर मसीह के प्रेम से युक्त कार्ड्स या संदेश साझा करें। आत्मिक विवेक का आह्वान प्रिय जनों, हम इस संसार के अनुसार नहीं जीते। संसार प्रेम को भावनाओं और भोग-विलास से जोड़ता है, लेकिन हम मसीह में एक पवित्र और बलिदानी प्रेम में चलने के लिए बुलाए गए हैं। रोमियों 12:2 (ERV-HI):“इस संसार के ढंग पर न चलो। बल्कि अपने मन को नया बना कर एक नई सोच विकसित करो, ताकि तुम जान सको कि परमेश्वर की इच्छा क्या है—क्या अच्छा है, क्या उसे स्वीकार्य है और क्या पूर्ण है।” आइए हम अपनी आँखें वैलेंटाइन पर नहीं, बल्कि यीशु पर टिकाएं – प्रेम के सच्चे स्रोत और पूर्णता पर। प्रभु हमें प्रतिदिन अपने प्रेम में जीने की सामर्थ दे। आमीन।
उत्तर: यह दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में पूछे जाने वाले सबसे सामान्य प्रश्नों में से एक है: “अगर परमेश्वर ने हमें बनाया, तो फिर परमेश्वर को किसने बनाया?”ऊपर से देखने पर यह सवाल गहरा लगता है, लेकिन वास्तव में यह एक गलत धारणा पर आधारित है – कि परमेश्वर भी हर अन्य चीज़ की तरह एक शुरुआत के साथ अस्तित्व में आया होगा। एक तुलना से शुरू करते हैं: सोचिए कोई पूछे, “चूंकि हम जीवित रहने के लिए भोजन करते हैं, तो परमेश्वर जीवित रहने के लिए क्या खाता है?” यह सवाल तर्कसंगत लगता है, लेकिन यह मनुष्यों की सीमाओं को उस पर लागू करता है जो इन सीमाओं से बिलकुल परे है।परमेश्वर को न भोजन की ज़रूरत है, न नींद की, न ऊर्जा की। क्यों? क्योंकि वह स्व-अस्तित्ववान (Self-existent) है – वह अपने अस्तित्व के लिए किसी बाहरी चीज़ पर निर्भर नहीं है। 1. परमेश्वर का कोई आदि या अंत नहीं है बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि परमेश्वर सनातन है – उसका न कोई आदि है और न ही कोई अंत। वह कभी बनाया नहीं गया – वह हमेशा से है। “पहाड़ों के उत्पन्न होने से पहले और पृथ्वी और संसार की सृष्टि से पहले, तू परमेश्वर है, युगानुयुग।”भजन संहिता 90:2 “मैं ही आदि और मैं ही अंत हूं, प्रभु परमेश्वर कहता है, जो है, जो था, और जो आनेवाला है, सर्वशक्तिमान।”प्रकाशितवाक्य 1:8 हर बनाई गई चीज़ को किसी कारण की आवश्यकता होती है। लेकिन परमेश्वर स्वतः-अस्तित्ववान है – उसे किसी ने नहीं बनाया।“परमेश्वर को किसने बनाया?” यह प्रश्न इस बात को नहीं समझता कि ‘परमेश्वर’ का अर्थ ही क्या है। यदि कोई और परमेश्वर को बनाता, तो वही असली परमेश्वर होता। 2. परमेश्वर ने समय को रचा – वह समय से परे है इस प्रश्न से हमें संघर्ष क्यों होता है? क्योंकि हमारी पूरी जिंदगी समय से बंधी होती है – हम शुरुआत और अंत की दुनिया में जीते हैं।लेकिन परमेश्वर ने समय को स्वयं रचा है – और वह समय और स्थान से परे है। “प्रभु के पास एक दिन हजार वर्षों के बराबर है और हजार वर्ष एक दिन के बराबर।”2 पतरस 3:8 “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।”उत्पत्ति 1:1 परमेश्वर “आदि” से पहले भी अस्तित्व में था। वह सभी चीज़ों का कारण है – लेकिन स्वयं बिना कारण के है।थियोलॉजी में इसे असेइटी (Aseity) कहा जाता है – परमेश्वर की स्वतंत्र और आत्म-निर्भर प्रकृति। 3. मानव बुद्धि सीमित है – परमेश्वर नहीं हमारा मस्तिष्क हर चीज़ के पीछे कारण ढूंढने का आदी है। यही विज्ञान, तर्क और सामान्य सोच का आधार है।लेकिन हम सीमित प्राणी हैं – और हमारी समझ भी सीमित है।परमेश्वर अनंत है – और वह पूरी तरह से हमारी तर्कशक्ति में समा नहीं सकता। “क्योंकि मेरी सोच तुम्हारी सोच नहीं है, और न ही तुम्हारे मार्ग मेरे मार्ग हैं, यहोवा की यह वाणी है।”यशायाह 55:8 परमेश्वर को हमारी सीमित समझ में बाँधना वैसा ही है जैसे एक मोबाइल फोन यह जानना चाहे कि उसे बनाने वाला व्यक्ति कैसे जीता है।जैसे उपकरण बैटरी पर चलते हैं, पर उनके निर्माता नहीं – वैसे ही हम कारणों पर निर्भर हैं, पर हमारा सृष्टिकर्ता नहीं। 4. यह प्रश्न दिखाता है कि हम उद्देश्यपूर्वक बनाए गए हैं यह तथ्य कि हम ऐसे प्रश्न पूछ सकते हैं, यह खुद ही इस बात का संकेत है कि हमारा मन सोचने, पूछने और सत्य खोजने के लिए रचा गया है।परमेश्वर ने हमें सोचने की क्षमता दी है – लेकिन कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनके उत्तर हमारी समझ से परे होते हैं।वे अव्यावहारिक नहीं होते – वे केवल मानव-बुद्धि से ऊँचे होते हैं। “गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा की हैं, परन्तु जो प्रगट हुई हैं वे सदा के लिये हम और हमारे बच्चों की हैं…”व्यवस्थाविवरण 29:29 निष्कर्ष: परमेश्वर बनाया नहीं गया – वह बनाने वाला है मसीही विश्वास में परमेश्वर को हम अजन्मा सृष्टिकर्ता मानते हैं। केवल वही सनातन, आत्म-निर्भर और स्वतंत्र है।“परमेश्वर को किसने बनाया?” यह प्रश्न वैसा ही है जैसे कोई पूछे, “वर्गाकार ध्वनि का रंग क्या है?” – यह एक वर्गीकरण की गलती है।यह सृजन के नियमों को उस पर लागू करने की कोशिश है जिसने खुद उन नियमों को बनाया। “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन ही परमेश्वर था। वही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ; और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कुछ भी उसके बिना उत्पन्न नहीं हुआ।”यूहन्ना 1:1–3 आशीषित रहो।
बाइबल में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ लोगों ने परमेश्वर को एक “लेन-देन वाला” ईश्वर मान लिया – जिसे केवल संकट के समय याद किया जाता है, बिना किसी संबंध, बिना पश्चाताप और बिना आदरभाव के। दुख की बात है कि ऐसे कई लोग अंत में नष्ट हो गए। यह मसीही विश्वासियों के लिए एक गंभीर चेतावनी है:परमेश्वर कोई ओझा या तांत्रिक नहीं हैं। वे पवित्र हैं और पवित्रता की माँग करते हैं। 🚫 ओझा वाली मानसिकता ओझा त्वरित और व्यक्तिगत संबंध से रहित समाधान देता है। ज़्यादातर लोग जो ओझा के पास जाते हैं, न तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, न ही उनकी शिक्षा का पालन करते हैं, और न ही वे जीवन परिवर्तन के इच्छुक होते हैं। वे सिर्फ़ परिणाम चाहते हैं – जवाब, शक्ति, चंगाई या रक्षा। आज बहुत से लोग परमेश्वर के पास इसी मानसिकता से आते हैं। वे अपने दैनिक जीवन में उन्हें अनदेखा करते हैं, खुलेआम पाप में रहते हैं, और अपने हृदय में अधर्म छिपाकर रखते हैं – लेकिन जब संकट आता है, तो वे सहायता माँगने दौड़ते हैं। यह विश्वास नहीं है – यह मूर्तिपूजा है। 📖 बाइबल में इसके खतरनाक उदाहरण 1. यारोबाम और उसकी पत्नी – विद्रोह में रहते हुए भविष्यवाणी माँगना “तू उठकर शीलो को जा; वहाँ भविष्यद्वक्ता अहिय्याह रहता है… परन्तु अहिय्याह देख नहीं सकता था, क्योंकि उसका दृष्टि मंद हो गया था… और यहोवा ने अहिय्याह से कहा, ‘देखो, यारोबाम की पत्नी अपने बेटे के विषय में पूछने के लिए आ रही है।’”1 राजा 14:2–5 राजा यारोबाम ने अपनी पत्नी को भेष बदलवाकर भविष्यवक्ता अहिय्याह के पास भेजा, ताकि अपने बीमार पुत्र के बारे में पूछ सके। यद्यपि अहिय्याह अंधा था, परमेश्वर ने उसे पहले ही यारोबाम की चालाकी बता दी थी। संदेश चंगाई का नहीं, बल्कि न्याय का था – बच्चा मरेगा और यारोबाम का घर तबाह हो जाएगा। क्यों? क्योंकि यारोबाम ने पूरे इस्राएल को मूर्तिपूजा में गिरा दिया था। उसे न तो परमेश्वर से संबंध चाहिए था और न ही पश्चाताप – उसे बस परिणाम चाहिए थे। 2. राजा अहाब – 400 झूठे भविष्यवक्ताओं द्वारा ठगा गया “तब यहोवा ने कहा, ‘कौन अहाब को बहकाएगा कि वह रामोत-गिलाद जाकर वहाँ मारा जाए?’… और यहोवा ने कहा, ‘तू उसे बहका और सफल होगा; जा और ऐसा ही कर।’”1 राजा 22:20,22 अहाब युद्ध में जाना चाहता था, और उसने परमेश्वर की सच्ची इच्छा जानने के बजाय 400 झूठे भविष्यवक्ताओं की बातों पर भरोसा किया जिन्होंने उसे जीत का झूठा भरोसा दिलाया। परमेश्वर ने इन झूठों को अनुमति दी – क्योंकि अहाब पहले से ही सच्चाई को ठुकरा चुका था। वह अपने ही भ्रम में नाश हो गया। यह परमेश्वर द्वारा दिए गए धोखे के माध्यम से न्याय का भयावह उदाहरण है (देखें रोमियों 1:24–25) 3. बिलाम – अनुमति मिली, पर मृत्यु के कगार पर “परमेश्वर ने बिलाम से कहा, ‘इन लोगों के साथ जा, परन्तु वही कहना जो मैं तुझसे कहूँ।’ तब वह चला… परन्तु जब वह गया तब परमेश्वर का क्रोध भड़का, और यहोवा का दूत उसके विरुद्ध मार्ग में खड़ा हो गया।”गिनती 22:20–22 परमेश्वर ने बिलाम को जाने की अनुमति दी – लेकिन वह उससे क्रोधित था। क्यों? क्योंकि बिलाम का हृदय लालची था (देखें 2 पतरस 2:15)। वह अपने लाभ के लिए जाना चाहता था, जबकि वह बाहरी रूप से आज्ञाकारी दिखना चाहता था। यहोवा का दूत उसे मारने के लिए सामने खड़ा था – और उसका गधा पहले देख पाया। हर अनुमति परमेश्वर की स्वीकृति नहीं होती। सावधान रहें। 💬 यहेजकेल के माध्यम से परमेश्वर की चेतावनी “हे मनुष्य के सन्तान, इन लोगों ने अपने मन में मूरतें बैठा ली हैं… क्या मैं ऐसे लोगों से अपनी सम्मति लेने दूँ?”यहेजकेल 14:3 परमेश्वर ने यहेजकेल से कहा कि जब लोग बाहरी रूप से उसे खोजते हैं, परन्तु उनके मन में मूर्तियाँ बसी रहती हैं, तब वह वैसी उत्तर नहीं देता जैसी वे आशा करते हैं। वास्तव में उसने कहा: “मैं यहोवा स्वयं उन्हें उत्तर दूँगा… मैं अपने मुख को उस मनुष्य के विरुद्ध करूँगा… और यदि भविष्यवक्ता धोखा खा जाए, तो यहोवा ने स्वयं उसे धोखा दिया होगा।”यहेजकेल 14:4–9 परमेश्वर कभी-कभी न्याय के रूप में लोगों को धोखा खाने की अनुमति देता है – विशेषकर जब वे पाखंड के साथ उसे केवल अंतिम उपाय के रूप में खोजते हैं। ⚠️ आज की कलीसिया भी इस मानसिकता से मुक्त नहीं आज के कई विश्वासियों का व्यवहार भी यही है। वे छुपे पापों में जीते हैं – शराब, अशुद्धता, बेईमानी, व्यभिचार, मूर्तिपूजा, धार्मिक मिलावट – और फिर भी चर्च जाते हैं, प्रार्थना का अनुरोध करते हैं, अभिषेक करवाते हैं, या भविष्यवाणी चाहते हैं। वे चंगाई, आर्थिक आशीर्वाद और सफलता चाहते हैं – लेकिन पवित्रता और पश्चाताप नहीं। यह आत्मिक व्यभिचार है। “तुम यहोवा के कटोरे और दुष्टात्माओं के कटोरे दोनों में नहीं पी सकते।”1 कुरिन्थियों 10:21 “सबके साथ मेल रखने और उस पवित्रता के पीछे लगो जिसके बिना कोई भी प्रभु को नहीं देख सकता।”इब्रानियों 12:14 परमेश्वर को आपकी उपस्थिति, आपकी भेटें, या आपकी सेवाओं की गिनती नहीं चाहिए।उसे आपका हृदय और आपकी पवित्रता चाहिए। ✅ तो फिर क्या करें? पश्चाताप करें – अपने पाप को सच्चे मन से त्यागें और स्वीकार करें। “जो अपने अपराध को छिपाता है, उसकी उन्नति नहीं होती, पर जो उन्हें मान लेता और छोड़ देता है, वह दया पाएगा।”नीतिवचन 28:13 संबंध को प्राथमिकता दें, न कि परिणामों को – परमेश्वर घनिष्ठता चाहता है, चालाकी नहीं। “परमेश्वर के समीप आओ, और वह तुम्हारे समीप आएगा।”याकूब 4:8 पवित्रता को महत्व दो – “पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।”1 पतरस 1:16 सच्चे सुसमाचार को ग्रहण करें – आरामदायक नहीं, बल्कि आत्म-त्याग और मसीह में नया जीवन। “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह अपने आप का इनकार करे, और हर दिन अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे हो ले।”लूका 9:23–24 ⚖️ यदि तुम इसे अनदेखा करोगे, तो तुम मरोगे शायद पहले शरीर से नहीं, पर आत्मा से अवश्य। और यदि तुम ऐसे ही बने रहे, तो अन्त में न्याय निश्चित है। “धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता; क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।”गलातियों 6:7 “पाप की मजदूरी मृत्यु है।”रोमियों 6:23 यदि तुम पाप में बने हो, और फिर भी चर्च जाते हो, गाते हो, या प्रभु भोज में भाग लेते हो – बिना पश्चाताप के – तो तुम परमेश्वर के निकट नहीं जा रहे, बल्कि अपने ऊपर न्याय ला रहे हो। “इस कारण जो कोई यह रोटी अनुचित रीति से खाता है या प्रभु के कटोरे में अनुचित रीति से पीता है, वह प्रभु की देह और लोहू के विरुद्ध दोषी ठहरेगा… इस कारण तुम में से बहुत दुर्बल और रोगी हैं, और कितने तो मृत्यु को प्राप्त भी हो गए हैं।”1 कुरिन्थियों 11:27–30 ✝️ आगे का मार्ग प्रभु के पास लौट आओ। पूरे मन से उसकी खोज करो। वह वास्तव में पश्चाताप करने वालों के लिए करुणामय है। “परमेश्वर के पास आओ, और वह तुम्हारे पास आएगा। अपने हाथों को शुद्ध करो, हे पापियों, और अपने हृदयों को पवित्र करो, हे दोचित्त वालों।”याकूब 4:8 धार्मिक नाटक छोड़ दो। परमेश्वर को ओझा की तरह मत समझो।आत्मा और सच्चाई से उसके पास आओ – क्योंकि अनंतकाल वास्तविक है, और परमेश्वर से ठिठोली नहीं की जा सकती। मारानाथा।
प्रेरित पौलुस गलातियों को दो महत्वपूर्ण और पहली नज़र में विरोधाभासी निर्देश देता है: “एक दूसरे के भार को उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।”(गलातियों 6:2) “क्योंकि हर एक को अपना ही बोझ उठाना पड़ेगा।”(गलातियों 6:5) पहली नज़र में ये वचन एक-दूसरे के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। लेकिन ध्यानपूर्वक देखने पर हम पाते हैं कि ये मसीही जिम्मेदारी के दो अलग पहलुओं को दर्शाते हैं: सामूहिक देखभाल और व्यक्तिगत जवाबदेही। 1. “बोझ” और “भार” में अंतर को समझना इसका रहस्य यूनानी मूल शब्दों में छिपा है: गलातियों 6:2 में प्रयुक्त शब्द “बोझ” (barē) ऐसे भारी और कठिन संघर्षों को दर्शाता है — भावनात्मक, शारीरिक, या आत्मिक — जिन्हें कोई अकेले नहीं सह सकता। वहीं गलातियों 6:5 में “भार” (phortion) से आशय है व्यक्तिगत जिम्मेदारी, जैसे कि अपने कर्मों का लेखा-जोखा, नैतिक उत्तरदायित्व, और आत्मिक चाल। व्याख्या:हर विश्वासी अपने कर्मों के लिए परमेश्वर के सामने व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है (cf. रोमियों 14:12), लेकिन मसीही समुदाय को यह बुलाहट दी गई है कि वे एक-दूसरे की कठिनाइयों में मदद करें (गलातियों 6:2) — और यही है “मसीह की व्यवस्था”। 2. मसीह की व्यवस्था क्या है? पौलुस कहता है कि जब हम एक-दूसरे के बोझ उठाते हैं, तो हम मसीह की व्यवस्था को पूरा करते हैं। यह व्यवस्था क्या है? “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ, कि एक-दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्रेम रखो।”(यूहन्ना 13:34) मसीह की व्यवस्था है प्रेम — ऐसा प्रेम जो बलिदानी, सक्रिय और सच्चा हो, जैसे मसीह ने अपने जीवन और सेवा में दिखाया। यही प्रेम नैतिक व्यवस्था की पूर्ति है (cf. रोमियों 13:10) और नए नियम की नींव है। 3. प्रेम केवल शब्दों से नहीं, कर्मों से प्रेरित यूहन्ना हमें चुनौती देता है कि हम अपने विश्वास को केवल बातों में न रखें: “यदि कोई व्यक्ति सांसारिक संपत्ति रखता हो, और अपने भाई को आवश्यकता में देखकर उस पर तरस न खाए, तो उस में परमेश्वर का प्रेम क्योंकर बना रह सकता है? हे बालकों, हम वचन और जीभ से नहीं, परन्तु काम और सत्य से प्रेम करें।”(1 यूहन्ना 3:17–18) सच्चा मसीही प्रेम निष्क्रिय नहीं होता। यह प्रार्थना, मुलाकातों, सांत्वना, अतिथिसत्कार, आर्थिक सहायता, और भावनात्मक सहयोग जैसे ठोस कार्यों के माध्यम से प्रकट होता है।क्योंकि: “विश्वास बिना कामों के मरा हुआ है।” (याकूब 2:14–17) 4. बोझ उठाने से आत्मिक वृद्धि बहुत से विश्वासी यह नहीं समझते कि दूसरों की मदद करने से आत्मिक विकास और अधिक अनुग्रह मिलता है: “दो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा; एक अच्छा, दबाया हुआ, हिला-हिलाकर और उफनता हुआ नाप…”(लूका 6:38) जब दूसरों की मदद करना आपकी जीवनशैली बन जाता है, तो परमेश्वर का अनुग्रह आपके जीवन पर बढ़ता जाता है (cf. 2 कुरिन्थियों 9:8)।जब आप दूसरों को देते हैं, तो परमेश्वर आपको और अधिक भरता है। आप आशीर्वाद का माध्यम बन जाते हैं — जैसे अब्राहम को आशीर्वाद मिला ताकि वह दूसरों के लिए आशीष बने (cf. उत्पत्ति 12:2)। परंतु यदि आप मदद करने से पीछे हटते हैं — डर, कटुता, ईर्ष्या या स्वार्थ के कारण — तो आप अपने जीवन में अनुग्रह के प्रवाह को रोक देते हैं। “उदार व्यक्ति समृद्ध होगा; और जो दूसरों को ताज़गी देता है, उसे स्वयं भी ताज़गी मिलेगी।”(नीतिवचन 11:25) 5. मसीह ने भी स्वयं को प्रसन्न नहीं किया पौलुस हमें याद दिलाता है कि मसीह का जीवन त्याग और सेवा का उदाहरण है: “हम जो शक्तिशाली हैं, निर्बलों की दुर्बलताओं को सहें, और अपने आप को प्रसन्न न करें। क्योंकि मसीह ने भी अपने आप को प्रसन्न नहीं किया…”(रोमियों 15:1–3) दूसरों की मदद करना कोई विकल्प नहीं, बल्कि आत्मिक परिपक्वता का प्रमाण है। यह दिखाता है कि मसीह सच में हमारे अंदर आकार ले रहा है (cf. गलातियों 4:19)।जो आत्मिक रूप से मजबूत हैं, वे कमजोरों की सहायता करने के लिए बुलाए गए हैं — चाहे आत्मिक, भावनात्मक या भौतिक रूप से। 6. सुसमाचार साझा करना भी बोझ उठाना है किसी का बोझ उठाने का सबसे महान तरीका है — सुसमाचार और परमेश्वर द्वारा दी गई आत्मिक समझ को साझा करना। “इसलिए हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान होता है जो अपने भंडार से नई और पुरानी वस्तुएँ निकालता है।”(मत्ती 13:52) यदि आप परमेश्वर से मिली बातों को केवल अपने पास रखते हैं — डर के कारण कि कोई और आपको पीछे छोड़ सकता है — तो आप आत्मिक प्रवाह को रोक देते हैं।लेकिन जब आप उदारता से शिक्षा और प्रोत्साहन बाँटते हैं, तो यह और अधिक प्रभाव और आत्मिक फल के लिए दरवाजे खोलता है। 7. इंतज़ार मत करो — पहल करो यदि आपको पता है कि कोई संघर्ष में है, तो उसके पास आने की प्रतीक्षा न करें। अगर आप सहायता कर सकते हैं — तो आगे बढ़ें।चाहे नौकरी के अवसर हों, आर्थिक सुझाव हों, या आत्मिक मार्गदर्शन — अपनी योग्यताओं का उपयोग मसीह की देह के लाभ के लिए करें। “जिस किसी को कोई वरदान मिला है, वह परमेश्वर की विविध अनुग्रह का भला भंडारी बनकर, उसी से एक-दूसरे की सेवा करे।”(1 पतरस 4:10) कभी किसी को इस कारण मदद मत रोको कि वह आपसे अधिक सफल है।याद रखें: परमेश्वर प्रतिस्पर्धा को नहीं, विश्वासयोग्यता को पुरस्कृत करता है। वह आपके हृदय को देखता है और गुप्त में की गई बातों का प्रतिफल देगा (cf. मत्ती 6:4)। 8. प्रेम और सेवा ही आत्मिक परिपक्वता का माप हैं हर बात — चाहे आत्मिक हो या व्यावहारिक — मसीह की व्यवस्था, अर्थात प्रेम, में जड़ित होनी चाहिए।एक-दूसरे के बोझ उठाना मसीह के प्रेम का उदाहरण जीना और परमेश्वर की अनुग्रह में चलना है। “मेरा यह आज्ञा है कि जैसे मैं ने तुम से प्रेम किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्रेम रखो।”(यूहन्ना 15:12) आमीन।