उत्तर:
यह दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में पूछे जाने वाले सबसे सामान्य प्रश्नों में से एक है:
“अगर परमेश्वर ने हमें बनाया, तो फिर परमेश्वर को किसने बनाया?”
ऊपर से देखने पर यह सवाल गहरा लगता है, लेकिन वास्तव में यह एक गलत धारणा पर आधारित है – कि परमेश्वर भी हर अन्य चीज़ की तरह एक शुरुआत के साथ अस्तित्व में आया होगा।
एक तुलना से शुरू करते हैं: सोचिए कोई पूछे, “चूंकि हम जीवित रहने के लिए भोजन करते हैं, तो परमेश्वर जीवित रहने के लिए क्या खाता है?” यह सवाल तर्कसंगत लगता है, लेकिन यह मनुष्यों की सीमाओं को उस पर लागू करता है जो इन सीमाओं से बिलकुल परे है।
परमेश्वर को न भोजन की ज़रूरत है, न नींद की, न ऊर्जा की। क्यों? क्योंकि वह स्व-अस्तित्ववान (Self-existent) है – वह अपने अस्तित्व के लिए किसी बाहरी चीज़ पर निर्भर नहीं है।
1. परमेश्वर का कोई आदि या अंत नहीं है
बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि परमेश्वर सनातन है – उसका न कोई आदि है और न ही कोई अंत। वह कभी बनाया नहीं गया – वह हमेशा से है।
“पहाड़ों के उत्पन्न होने से पहले और पृथ्वी और संसार की सृष्टि से पहले, तू परमेश्वर है, युगानुयुग।”
भजन संहिता 90:2
“मैं ही आदि और मैं ही अंत हूं, प्रभु परमेश्वर कहता है, जो है, जो था, और जो आनेवाला है, सर्वशक्तिमान।”
प्रकाशितवाक्य 1:8
हर बनाई गई चीज़ को किसी कारण की आवश्यकता होती है। लेकिन परमेश्वर स्वतः-अस्तित्ववान है – उसे किसी ने नहीं बनाया।
“परमेश्वर को किसने बनाया?” यह प्रश्न इस बात को नहीं समझता कि ‘परमेश्वर’ का अर्थ ही क्या है। यदि कोई और परमेश्वर को बनाता, तो वही असली परमेश्वर होता।
2. परमेश्वर ने समय को रचा – वह समय से परे है
इस प्रश्न से हमें संघर्ष क्यों होता है? क्योंकि हमारी पूरी जिंदगी समय से बंधी होती है – हम शुरुआत और अंत की दुनिया में जीते हैं।
लेकिन परमेश्वर ने समय को स्वयं रचा है – और वह समय और स्थान से परे है।
“प्रभु के पास एक दिन हजार वर्षों के बराबर है और हजार वर्ष एक दिन के बराबर।”
2 पतरस 3:8
“आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।”
उत्पत्ति 1:1
परमेश्वर “आदि” से पहले भी अस्तित्व में था। वह सभी चीज़ों का कारण है – लेकिन स्वयं बिना कारण के है।
थियोलॉजी में इसे असेइटी (Aseity) कहा जाता है – परमेश्वर की स्वतंत्र और आत्म-निर्भर प्रकृति।
3. मानव बुद्धि सीमित है – परमेश्वर नहीं
हमारा मस्तिष्क हर चीज़ के पीछे कारण ढूंढने का आदी है। यही विज्ञान, तर्क और सामान्य सोच का आधार है।
लेकिन हम सीमित प्राणी हैं – और हमारी समझ भी सीमित है।
परमेश्वर अनंत है – और वह पूरी तरह से हमारी तर्कशक्ति में समा नहीं सकता।
“क्योंकि मेरी सोच तुम्हारी सोच नहीं है, और न ही तुम्हारे मार्ग मेरे मार्ग हैं, यहोवा की यह वाणी है।”
यशायाह 55:8
परमेश्वर को हमारी सीमित समझ में बाँधना वैसा ही है जैसे एक मोबाइल फोन यह जानना चाहे कि उसे बनाने वाला व्यक्ति कैसे जीता है।
जैसे उपकरण बैटरी पर चलते हैं, पर उनके निर्माता नहीं – वैसे ही हम कारणों पर निर्भर हैं, पर हमारा सृष्टिकर्ता नहीं।
4. यह प्रश्न दिखाता है कि हम उद्देश्यपूर्वक बनाए गए हैं
यह तथ्य कि हम ऐसे प्रश्न पूछ सकते हैं, यह खुद ही इस बात का संकेत है कि हमारा मन सोचने, पूछने और सत्य खोजने के लिए रचा गया है।
परमेश्वर ने हमें सोचने की क्षमता दी है – लेकिन कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनके उत्तर हमारी समझ से परे होते हैं।
वे अव्यावहारिक नहीं होते – वे केवल मानव-बुद्धि से ऊँचे होते हैं।
“गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा की हैं, परन्तु जो प्रगट हुई हैं वे सदा के लिये हम और हमारे बच्चों की हैं…”
व्यवस्थाविवरण 29:29
निष्कर्ष: परमेश्वर बनाया नहीं गया – वह बनाने वाला है
मसीही विश्वास में परमेश्वर को हम अजन्मा सृष्टिकर्ता मानते हैं। केवल वही सनातन, आत्म-निर्भर और स्वतंत्र है।
“परमेश्वर को किसने बनाया?” यह प्रश्न वैसा ही है जैसे कोई पूछे, “वर्गाकार ध्वनि का रंग क्या है?” – यह एक वर्गीकरण की गलती है।
यह सृजन के नियमों को उस पर लागू करने की कोशिश है जिसने खुद उन नियमों को बनाया।
“आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन ही परमेश्वर था। वही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ; और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कुछ भी उसके बिना उत्पन्न नहीं हुआ।”
यूहन्ना 1:1–3
आशीषित रहो।
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