शालोम, परमेश्वर के दास!आज हमें फिर एक नया दिन मिला है—अनुग्रह का उपहार, जीवन का वरदान। आओ हम सब मिलकर जीवन के वचन पर मनन करें, जो हमारे अस्तित्व की सच्ची नींव हैं।
न्यायियों की पुस्तक से शिक्षाजब हम बाइबल पढ़ते हैं तो पाते हैं कि मिस्र की दासता से निकलने के बाद इस्राएलियों को परमेश्वर ने समय-समय पर न्यायी (जज) दिए। हर एक न्यायी को परमेश्वर ने एक विशेष अभिषेक और दिव्य उद्देश्य के साथ उठाया ताकि वे लोगों को फिर से सही मार्ग पर लौटा सकें।
परमेश्वर अपने आत्मा के द्वारा किसी को सामर्थ्य देता और वह उठकर इस्राएल के शत्रुओं का सामना करता। उनके द्वारा लोग अस्थायी छुटकारा पाते, परन्तु वह स्थायी नहीं होता था।
मूसा — चिन्ह, अद्भुत काम और न्यायपरमेश्वर ने मूसा को अद्भुत कामों, चिन्हों और विपत्तियों की शक्ति से अभिषिक्त किया। उसके द्वारा फ़िरौन का घमंड टूट गया और मिस्र दीन हुआ (निर्गमन 7–12)। इस्राएली मुक्त होकर वचन की भूमि की यात्रा पर निकले।
फिर भी, इतने चिन्हों और अद्भुत कामों के बावजूद, उनकी आत्माएँ पाप की दासता से मुक्त न हुईं। असली आत्मिक स्वतंत्रता अभी तक नहीं आई थी।
गिदोन — साहस का अभिषेकगिदोन के समय में जब इस्राएल फिर अपने पापों के कारण शत्रुओं के अधीन था, तब परमेश्वर ने गिदोन को सामर्थ्य और वीरता की आत्मा से भर दिया (न्यायियों 6)। उसने मिद्यानियों को हराया। परन्तु थोड़े समय बाद लोग फिर विद्रोह करने लगे।
शिमशोन — शारीरिक बलशिमशोन को अलौकिक शारीरिक शक्ति मिली ताकि वह पलिश्तियों से छुटकारा दिला सके। परन्तु उसके द्वारा मिली विजय भी स्थायी न रही। लोगों के दिलों का मूल रोग—पाप—ज्यों का त्यों रहा।
इस प्रकार न्यायियों की पूरी पुस्तक में बारह से भी अधिक न्यायी आते और चले जाते हैं। सब ने अस्थायी शांति दी, पर स्थायी उद्धार कोई नहीं दे सका।
सुलैमान और भविष्यद्वक्ता — बुद्धि और प्रकाशनाबाद में जब इस्राएल ने राजा माँगा, परमेश्वर ने सुलैमान को उठाया, जिसे दिव्य बुद्धि मिली। पर जब उसने परमेश्वर से मुँह मोड़ा, राज्य में उथल-पुथल मच गई (1 राजा 11)।
भविष्यद्वक्ताओं जैसे शमूएल, एलिय्याह, एलीशा, यहू और यहाँ तक कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को भी परमेश्वर ने धर्म की ओर बुलाने के लिए भेजा। पर वे भी स्थायी उद्धार न दे सके। यीशु ने यूहन्ना के विषय में कहा:
“वह एक जलता और चमकता हुआ दीपक था, और तुम थोड़े समय तक उसके प्रकाश में आनन्द करने की इच्छा रखते थे।” (यूहन्ना 5:35)
वे महान थे, पर उनकी सेवकाई आंशिक और अस्थायी थी।
तब आया मसीह — अनन्त उद्धारकर्ताजब समय पूरा हुआ, परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह को भेजा। वह शिमशोन की तरह शारीरिक बल से नहीं, बल्कि पाप की जड़ को काटने और मनुष्यों को सच्ची स्वतंत्रता देने के लिए आया।
पुराने न्यायी केवल “आत्मिक दर्द निवारक” जैसे थे—क्षणिक आराम देने वाले। पर यीशु ने पाप को मूल से उखाड़ दिया और स्थायी चंगाई दी।
“यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो तुम सचमुच स्वतंत्र हो जाओगे।” (यूहन्ना 8:36)
यीशु की दी हुई स्वतंत्रता पूरी और शाश्वत है। वह न केवल हमें शत्रुओं से, बल्कि अपने ही पापी स्वभाव से बचाता है।
यीशु का अंतरपुराने न्यायी मर गए और उनकी सेवकाई वहीं समाप्त हो गई। परन्तु यीशु जीवित है और सदा के लिए याजक बनकर हमारे लिए प्रार्थना करता है।
उसने पिता से कहा:“मैं उनके लिये बिनती करता हूँ; मैं जगत के लिये बिनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये जिन्हें तू ने मुझे दिया है… हे पवित्र पिता, अपने नाम में उनकी रक्षा कर… मैं यह बिनती नहीं करता कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।” (यूहन्ना 17:9–15)
यही उसे पूर्ण और अनन्त न्यायी बनाता है।
“यदि परमेश्वर की ओर से चुने हुओं पर कोई दोष लगाए, तो कौन है? परमेश्वर जो धर्मी ठहराता है।तो फिर कौन दोषी ठहराएगा? मसीह यीशु जो मरा, वरन् जी भी उठा, वही परमेश्वर की दाहिनी ओर है और हमारे लिये विनती भी करता है।” (रोमियों 8:33–34)
क्या कोई सचमुच पाप से मुक्त रह सकता है?हाँ। लोग पूछते हैं:
कोई व्यभिचार से कैसे बचेगा?
कोई अश्लीलता, शराब या गंदी भाषा से कैसे दूर रहेगा?
कोई बिना धन के आनन्दित कैसे रह सकता है?
कोई स्त्री इस युग में सांसारिक फैशन को कैसे ठुकरा सकती है?
उत्तर है—हमारे बल से नहीं, बल्कि मसीह की सामर्थ्य से।
“मुझे सामर्थ्य देनेवाले मसीह में मैं सब कुछ कर सकता हूँ।” (फिलिप्पियों 4:13)
यदि अभी भी संघर्ष हो रहा हैयदि कोई अब भी पाप की दासता में है, तो इसका अर्थ हो सकता है कि मसीह ने अभी तक उसमें पूर्ण निवास नहीं किया। क्योंकि लिखा है:
“पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।” (रोमियों 6:23)
परन्तु यीशु हमें आज ही आत्मा और शरीर की चंगाई देकर सच्चा उद्धार देना चाहता है।
यीशु ही सच्चा न्यायाधीशआओ, हम अपनी दृष्टि उसी अनन्त न्यायी की ओर लगाएँ, जिसमें शान्ति, आशा, विश्राम और जीवन है।
“हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ; और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।क्योंकि मेरा जूआ सहज है, और मेरा बोझ हल्का है।” (मत्ती 11:28–30)
आमीन।
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