Title सितम्बर 2019

बाइबल क्या है?

“बाइबल” शब्द यूनानी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “पवित्र पुस्तकों का संग्रह”। एक पुस्तक को बिब्लियोन कहा जाता है, और जब वे एक साथ हों तो उन्हें बाइबिलिया — अर्थात “पुस्तकें” कहा जाता है।

इसलिए बाइबल कुल 66 पवित्र पुस्तकों का संग्रह है। ये पुस्तकें यद्यपि मनुष्यों द्वारा लिखी गईं, परन्तु पवित्र आत्मा की प्रेरणा और मार्गदर्शन में लिखी गईं, क्योंकि परमेश्वर मनुष्यों के द्वारा कार्य करता है।

“और हम जानते हैं कि जो परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं, अर्थात् उन के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए गए हैं।”
– रोमियों 8:28 (ERV-HI)

परमेश्वर ने अलग-अलग समयों और परिस्थितियों में विभिन्न लोगों को चुना — जैसे राजा, भविष्यवक्ता, वैद्य, मछुवारे, कर वसूलने वाले आदि — ताकि वे परमेश्वर की व्यवस्था, वचन, सामर्थ्य, प्रेम, करुणा, महिमा और प्रभुता के विषय में लिखें।

बाइबल दो भागों में विभाजित है: पुराना नियम और नया नियम — या कहें प्रथम वाचा और द्वितीय वाचा

पुराने नियम में कुल 39 पुस्तकें हैं, और नए नियम में 27 पुस्तकें। इस प्रकार पूरी बाइबल में कुल 66 पुस्तकें हैं।

पूरी बाइबल का मुख्य केन्द्र केवल एक ही व्यक्ति है: यीशु मसीह। हर पुस्तक — चाहे स्पष्ट रूप में या भविष्यवाणी के रूप में — यीशु मसीह की ही गवाही देती है। उसके भीतर की चेतावनियाँ और शिक्षाएँ स्वयं प्रभु यीशु मसीह की ही वाणी हैं।

“तुम पवित्र शास्त्रों में खोज करते हो, क्योंकि तुम समझते हो कि उन में तुम्हें अनन्त जीवन मिलता है, और ये वही हैं जो मेरी गवाही देते हैं।”
– यूहन्ना 5:39 (ERV-HI)

बाइबल ही एकमात्र ऐसी पुस्तक है, जो परमेश्वर की वाणी को अपने भीतर लिए हुए है। संसार की कोई अन्य पुस्तक मनुष्य के लिए परमेश्वर की योजना को इस प्रकार प्रकट नहीं करती। और मनुष्य के लिए परमेश्वर तक पहुँचने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है — केवल यही एक पुस्तक उसे मार्गदर्शन देती है।

“तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।”
– भजन संहिता 119:105 (ERV-HI)


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क्या पालतू जानवर स्वर्ग में जाएंगे?

यह उन सवालों में से एक है जो तब उठता है जब कोई अपना प्यारा पालतू जानवर खो देता है। और सच कहें तो, यह एक बहुत ही जायज़ सवाल है  हमारे पालतू जानवर हमारे परिवार का हिस्सा होते हैं। वे केवल जानवर नहीं होते; वे हमारे साथी, दिलासा देने वाले और हमारे रोज़मर्रा के जीवन में खुशियाँ भरने वाले छोटे-छोटे स्रोत होते हैं।

लेकिन बाइबल इस बारे में क्या कहती है?

पवित्रशास्त्र से हमें क्या समझ आता है:

जानवर भी परमेश्वर की उत्तम सृष्टि का हिस्सा हैं

उत्पत्ति 1:25 कहता है:

“और परमेश्वर ने वन के पशु उनके प्रकार के अनुसार, और पालतू पशु उनके प्रकार के अनुसार, और पृथ्वी पर रेंगने वाले जीव उनके प्रकार के अनुसार बनाए; और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।” (ERV-Hindi)

यह एक पद ही बहुत कुछ कह देता है। जानवर केवल एक अतिरिक्त विचार नहीं थे   वे परमेश्वर की सृष्टि का हिस्सा हैं, और वह उन्हें “अच्छा” कहता है। इसका मतलब है: वे महत्वपूर्ण हैं।

नवीन सृष्टि की झलक में भी जानवरों का उल्लेख है

यशायाह 11:6–9 में एक सुंदर दृश्य खींचा गया है कि जब परमेश्वर सब कुछ नया करेगा, तो यह दुनिया कैसी दिखेगी:

“तब भेड़िया मेम्ने के साथ रहेगा, और चीतल बच्चे के साथ लेटेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला हुआ पशु मिलकर रहेंगे, और एक छोटा बालक उन्हें लिए फिरता रहेगा…” (ERV-Hindi से संक्षेप में)

यह एक ऐसी दुनिया की कल्पना है जिसमें शांति और मेल है   और जानवर उसमें शामिल हैं।
ज़रूरी नहीं कि इसका मतलब यह हो कि हमारे वही पालतू जानवर वहाँ होंगे, लेकिन यह जरूर दिखाता है कि जानवर परमेश्वर की भविष्य की योजना का हिस्सा हैं।

क्या जानवरों के पास भी आत्मा होती है, जैसे मनुष्यों के पास?

इस विषय पर बाइबल बहुत स्पष्ट नहीं है।
सभोपदेशक 3:21 कहता है:

“कौन जानता है कि मनुष्य की आत्मा ऊपर को चढ़ती है, और पशु की आत्मा नीचे पृथ्वी की ओर जाती है?” (ERV-Hindi)

कुछ लोग इस पद से समझते हैं कि जानवरों की आत्मा अमर नहीं होती।
जबकि कुछ इसे रहस्य के रूप में देखते हैं   कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसे परमेश्वर ने पूरी तरह प्रकट नहीं किया है। और यह भी ठीक है। कुछ बातें परमेश्वर ने अपने पास रखी हैं।

तो हमें क्या विश्वास करना चाहिए?

सच यह है कि बाइबल इस सवाल का सीधा “हाँ” या “नहीं” में उत्तर नहीं देती। लेकिन यह हमें एक ऐसे परमेश्वर की तस्वीर देती है जो बहुत प्रेमी और करुणामय है, जिसने जानवरों को एक उद्देश्य के साथ बनाया है। वह जानता है कि वे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं, और वह हमारे दुख और भावनाओं के प्रति उदासीन नहीं है।

इसलिए आशा रखना गलत नहीं है।
अगर हमारे पालतू जानवर इस धरती पर हमें प्रेम, सहारा और आनंद देते हैं, तो यह कल्पना करना मुश्किल नहीं कि एक करुणामय परमेश्वर उन्हें अनंत जीवन की योजना में भी शामिल कर सकता है।


निष्कर्ष

  • बाइबल इस विषय में पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
  • लेकिन यह बताती है कि जानवर परमेश्वर की “अच्छी” सृष्टि का हिस्सा हैं।
  • बहुत से विश्वासियों का मानना है कि यह आशा रखना ठीक है कि हम अपने प्रिय पालतू जानवरों से फिर मिल सकते हैं।
  • अंत में, हम एक ऐसे परमेश्वर पर भरोसा करते हैं जो सम्पूर्ण दृष्टि रखता है और हर उस चीज़ की गहराई से परवाह करता है जिसे हम प्यार करते हैं — और इसमें हमारे पालतू जानवर भी शामिल हैं।

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क्या ऐसे व्यक्ति के लिए प्रार्थना करना ठीक है जो यह स्पष्ट नहीं करता कि उसे किस बात के लिए प्रार्थना चाहिए?

प्रश्न: कभी-कभी हमारे बीच कोई विश्वासी कहता है, “कृपया मेरे लिए प्रार्थना करें, मुझे एक समस्या है,” लेकिन जब हम पूछते हैं कि समस्या क्या है, तो वह कहता है कि वह एक रहस्य है जो उसके दिल में छिपा है। ऐसे में क्या हमें उस छिपे हुए विषय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए?

उत्तर: हाँ, निश्चित रूप से। कई बार हम दूसरों के लिए बिना पूरी जानकारी के भी प्रार्थना कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, हम प्रार्थना कर सकते हैं कि परमेश्वर हमारे प्रियजनों की रक्षा करें, उन्हें अपने राज्य में स्मरण करें, उन्हें उद्धार, स्वास्थ्य, विश्वास में दृढ़ता, शांति, प्रेम और सफलता दें। ये वे प्रार्थनाएँ हैं जो हमें अपने विश्वासियों भाइयों-बहनों के लिए निरंतर करनी चाहिए — उनकी आत्मिक और शारीरिक भलाई के लिए।

यह बाइबल के उस सिद्धांत से मेल खाता है जहाँ मसीह का शरीर एक-दूसरे के लिए प्रार्थना और प्रोत्साहन में सहभागी होता है।

पौलुस का उदाहरण देखें:

कुलुस्सियों 1:9–10 (Hindi Bible):
“इस कारण से जब से हमने यह सुना, हम भी तुम्हारे लिए प्रार्थना करना और यह बिनती करना नहीं छोड़ते, कि तुम उसकी इच्छा की समस्त आत्मिक बुद्धि और समझ के साथ पूरी जानकारी से परिपूर्ण हो जाओ, कि तुम प्रभु के योग्य चाल चलो, और सब प्रकार से उसे प्रसन्न करो, और हर एक भले काम में फलवंत हो, और परमेश्वर की पहचान में बढ़ते जाओ।”

यह पद दिखाता है कि पवित्र आत्मा की बुद्धि और समझ के द्वारा हमारी प्रार्थनाएँ फलदायी और आत्मिक उन्नति लाने वाली बनती हैं—even जब हम समस्या का विवरण न जानते हों।

लेकिन कुछ स्थितियों में खुलापन आवश्यक होता है।

याकूब 5:16 (Hindi Bible):
“इस कारण अपने पापों को एक-दूसरे के सामने मान लो, और एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करो, ताकि चंगे हो जाओ। धर्मी जन की प्रभावशाली प्रार्थना बहुत काम करती है।”

यह वचन हमें सिखाता है कि समुदाय के भीतर सच्चाई और स्वीकारोक्ति से चंगाई आती है। जब कोई व्यक्ति अपनी पीड़ा साझा करता है, तब हम अधिक विशिष्ट, विश्वासपूर्ण और सहायक प्रार्थना कर सकते हैं।

गलातियों 6:2 (Hindi Bible):
“एक-दूसरे के बोझ उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।”

जब तक कोई अपनी बोझ स्पष्ट नहीं करता, हम ठीक से उसकी सहायता नहीं कर पाते।

उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति यदि लम्बे समय से बीमार है लेकिन सिर्फ कहता है, “मेरे लिए प्रार्थना करें,” तो यह सामान्य प्रार्थना की जा सकती है, लेकिन यदि वह अपनी बीमारी स्पष्ट करता है, तो लोग विश्वास से, समझ के साथ, और बाइबिल से प्रोत्साहन देते हुए (जैसे रोमियों 15:4) उसकी गहराई से मदद कर सकते हैं—शारीरिक रूप से भी और आत्मिक रूप से भी।

फिर भी, यह ज़रूरी है कि हम समझदारी और विवेक से साझा करें।

नीतिवचन 11:13 (Hindi Bible):
“जो चुगली करता है, वह भेद की बात प्रकट करता है; परन्तु जो विश्वासयोग्य है, वह बात को गुप्त रखता है।”

गंभीर और संवेदनशील विषय — जैसे HIV/AIDS, कानूनी या नैतिक समस्याएँ — उन्हें केवल आत्मिक रूप से परिपक्व और विश्वसनीय विश्वासियों के साथ साझा किया जाना चाहिए। जबकि सामान्य रोग, वैवाहिक समस्याएँ या जीवन के संघर्ष विश्वासयोग्य मंडली में साझा किए जा सकते हैं।


निष्कर्ष:

बिना पूरी जानकारी के भी दूसरों के लिए प्रार्थना करना संभव और उचित है। लेकिन यदि हम आत्मिक सहायता और प्रभावी प्रार्थना चाहते हैं, तो हमें अपनी बातों को विश्वसनीय मसीही भाइयों और बहनों के साथ साझा करना चाहिए।

जब प्रार्थना पारदर्शिता, विश्वास और आपसी प्रेम के साथ होती है, तब वह सबसे अधिक सामर्थी होती है।

“जहाँ दो या तीन लोग मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच होता हूँ।”
मत्ती 18:20

यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके लिए प्रभावी प्रार्थना करें, तो अपनी पीड़ा अकेले न उठाएँ।

परमेश्वर आपकी रक्षा करें और आपको आत्मिक सामर्थ्य दें।


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“प्रेम के चुम्बन से एक-दूसरे का अभिवादन करो। जो मसीह में हैं उन सब को शान्ति मिले!”


मुखपृष्ठ / प्रेम के चुम्बन से एक-दूसरे का अभिवादन करो। जो मसीह में हैं उन सब को शान्ति मिले!

प्रश्न:

बाइबल हमें “पवित्र चुम्बन” के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करने को कहती है। इसका असली मतलब क्या है?

1 पतरस 5:14 में लिखा है:

“प्रेम के चुम्बन से एक-दूसरे का अभिवादन करो। जो मसीह में हैं उन सब को शान्ति मिले!”
(1 पतरस 5:14 – Pavitra Bible: Hindi O.V.)

तो क्या इसका मतलब यह है कि यदि कोई भक्त महिला मुझसे मिलती है, तो वह मुझे गाल पर चुम्बन देकर अभिवादन करे? या अगर मैं तुम्हारी पत्नी से सड़क पर मिलता हूँ और हम दोनों ही विश्वासी हैं, तो क्या मुझे उसे चुम्बन देकर “शालोम” कहना चाहिए? क्या यही वह चुम्बन है जिसकी बाइबल बात करती है?


उत्तर:

इस वचन को सही से समझने के लिए हमें इसके बाइबलीय सन्दर्भ और ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि दोनों को ध्यान में रखना होगा।

“पवित्र चुम्बन” या “प्रेम का चुम्बन” जैसे शब्द नए नियम में कई बार आते हैं:

  • रोमियों 16:16

    “पवित्र चुम्बन से एक-दूसरे का अभिवादन करो। मसीह की सारी कलीसियाएं तुम्हें नमस्कार भेजती हैं।”

  • 1 कुरिन्थियों 16:20

    “यहां के सब भाई तुम्हें नमस्कार भेजते हैं। पवित्र चुम्बन से एक-दूसरे का अभिवादन करो।”

  • 2 कुरिन्थियों 13:12

    “पवित्र चुम्बन से एक-दूसरे का अभिवादन करो।”

  • 1 थिस्सलुनीकियों 5:26

    “सब भाइयों को पवित्र चुम्बन दो।”

इन सब वचनों से स्पष्ट है कि यह अभिवादन प्रारंभिक मसीही समुदाय में सामान्य था। लेकिन इसका वास्तविक अर्थ क्या था?


ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि:

प्राचीन यूनानी-रोमी सभ्यता में गाल पर चुम्बन करना एक सामान्य और सम्मानजनक अभिवादन था – आज के समय के हाथ मिलाने या गले लगने की तरह।

इसका उपयोग किया जाता था:

  • मित्रता प्रदर्शित करने के लिए

  • परस्पर सम्मान प्रकट करने के लिए

  • पारिवारिकता या निष्ठा दिखाने के लिए

यहूदी परंपरा में भी चुम्बन पारिवारिक सदस्यों और करीबी मित्रों के बीच प्रेम और विश्वास का प्रतीक था। यह रोमांटिक नहीं, बल्कि स्नेह, शांति और भरोसे की निशानी थी।

इसलिए बाइबल में “पवित्र चुम्बन” का मतलब है – विश्वासियों के बीच आपसी प्रेम (अगापे), एकता और सहभागिता को प्रकट करने वाला एक शुद्ध, धार्मिक अभिवादन। यह कोई रोमांटिक या शारीरिक आकर्षण नहीं था।


आत्मिक अर्थ:

“पवित्र” शब्द (यूनानी: hagios) का अर्थ है – शुद्ध, पवित्र और परमेश्वर के लिए अलग किया गया।
तो “पवित्र चुम्बन” एक ऐसा शुद्ध और पावन व्यवहार है जो किसी भी बुरे या अनुचित उद्देश्य से मुक्त हो।

यह यहूदा के विश्वासघाती चुम्बन के ठीक विपरीत है:

मत्ती 26:48–49

“उस विश्वासघाती ने उनको एक चिन्ह बता दिया और कहा, ‘जिसे मैं चुम्बन दूं, वही है; उसे पकड़ लेना।’ और वह तुरन्त यीशु के पास जाकर बोला, ‘हे गुरु, नमस्कार!’ और उसे चूमा।”

यहूदा ने एक आत्मीय प्रतीक को धोखे के लिए इस्तेमाल किया। वह चुम्बन पवित्र नहीं था।

इसके विपरीत, पौलुस ने “पवित्र चुम्बन” को एक ऐसा कार्य माना जो:

  • मसीह की देह में एकता को बढ़ावा देता है

  • आत्मिक संबंधों को दृढ़ करता है

  • परमेश्वर के प्रेम और शांति का प्रतीक बनता है


धार्मिक दृष्टिकोण:

“पवित्र चुम्बन” कोई अनिवार्य नियम या धार्मिक आदेश नहीं था जैसे कि बपतिस्मा या प्रभु भोज। यह:

  • उस समय की संस्कृति में सच्चे मसीही प्रेम की अभिव्यक्ति थी

  • हर युग और संस्कृति के लिए अनिवार्य नहीं

  • परिस्थितियों और परंपराओं के अनुसार परिवर्तनशील था

आज के समय में, चुम्बन की व्याख्या अलग-अलग हो सकती है – विशेष रूप से विपरीत लिंगों के बीच। कई संस्कृतियों में आज किसी अपरिचित व्यक्ति को चुम्बन करना अनुचित या गलत समझा जा सकता है।


आज के समय में उसका अनुप्रयोग:

यदि पौलुस आज के चर्च को पत्र लिखते, तो शायद कहते:

“एक-दूसरे का अभिवादन एक पवित्र हस्तप्रशारित (हैंडशेक) से करो”
या
“एक आत्मिक गले लगाकर अभिवादन करो”

आज के युग में “पवित्र चुम्बन” के स्थान पर निम्नलिखित विकल्प उपयुक्त हैं:

  • एक आत्मीय हस्तप्रशारित

  • एक संक्षिप्त आलिंगन (उदाहरणतः समान लिंग के विश्वासियों के बीच)

  • एक आत्मिक या शांति से भरा हुआ वाचिक अभिवादन (जैसे “शालोम”, “परमेश्वर तुम्हें आशीष दे”, “शांति हो तुम्हारे साथ”)

जब तक अभिवादन की भावना पवित्र और प्रेमपूर्ण हो, उसके रूप की विशेष महत्ता नहीं है।


आज के लिए कुछ सुझाव:

✅ ऐसे व्यवहार से बचें जो गलत अर्थ में लिया जा सकता है।
✅ किसी महिला को सार्वजनिक रूप से चूमना – जो आपकी पत्नी या रिश्तेदार नहीं है – गलत संदेश दे सकता है।
✅ प्रेम निष्कलंक और सच्चा हो।

रोमियों 12:9

“प्रेम कपट रहित हो। बुराई से घृणा करो, भलाई से लगे रहो।”

✅ संयम बनाए रखें और किसी को ठेस न पहुंचे।

1 कुरिन्थियों 8:9

“देखो, ऐसा न हो कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता किसी निर्बल को ठोकर का कारण बने।”


निष्कर्ष:

अगर आप किसी महिला विश्वासी से मिलते हैं, तो एक सम्मानजनक हाथ मिलाना ही पर्याप्त है। यह “पवित्र चुम्बन” के पीछे की आत्मा – प्रेम, शांति और एकता – को उसी प्रकार प्रकट करता है, लेकिन बिना किसी संदेह या अपवित्रता के।

परमेश्वर तुम्हें आशीष दे!


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बाइबिल कहती है:“क्योंकि शरीर की कसरत थोड़ी-बहुत लाभकारी है, परन्तु भक्ति हर प्रकार से लाभकारी है, जिसमें इस जीवन और आने वाले जीवन दोनों के लिए वादा है।”1 तीमुथियुस 4:8


यदि आप इस संदर्भ के पिछले पदों को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि पौलुस उन झूठे शिक्षकों को संबोधित कर रहे हैं जो बाहरी, संस्कारात्मक प्रथाओं को पवित्र जीवन का मूल मानते थे।


पौलुस 1 तीमुथियुस 4:8 में शारीरिक व्यायाम के अस्थायी लाभ और भक्ति के अनंत और सर्वव्यापी महत्व के बीच फर्क स्पष्ट करते हैं।


“क्योंकि तुम मसीह के साथ संसार के तत्वों के साथ मर गए, तो अब क्यों ऐसा करते हो जैसे अभी भी संसार के अधीन हो; ‘छूओ मत! चखो मत! छुओ मत!’ जैसे आदेश मानते हो?
ये सब बातें, जो अपने उपयोग में नष्ट होनी हैं, मनुष्यों के आदेशों और शिक्षाओं पर आधारित हैं।
ये नियम, जो खुद को पूजा करने, झूठी नम्रता और शरीर पर कठोरता का आभास देते हैं, भले ही बुद्धिमानी का दिखावा करते हैं, परन्तु मांस के इच्छाओं को रोकने में कोई लाभ नहीं देते।”
कुलुस्सियों 2:20-23


पौलुस यह स्पष्ट करते हैं कि सच्ची पवित्रता मसीह में विश्वास द्वारा परिवर्तित हृदय से आती है, न कि केवल शारीरिक अनुशासन या मानव नियमों से।


“प्रभु का भय बुद्धि की शुरुआत है; जो उसके आदेशों को मानते हैं, उनके पास अच्छी समझ होती है।”
नीतिवचन 9:10


भक्ति जीवन में शांति, उद्देश्य और कभी-कभी शारीरिक स्वास्थ्य भी लाती है, और ईश्वर अपने विश्वासियों की रक्षा एवं व्यवस्था का वादा करते हैं।


“क्योंकि परमेश्वर ने संसार से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”
यूहन्ना 3:16


येशु चेतावनी देते हैं कि आत्मा खोने पर सारी दुनिया पाने का कोई लाभ नहीं।


“मनुष्य को क्या लाभ होगा यदि वह सारी दुनिया जीत ले और अपनी आत्मा को खो दे?”
मत्ती 16:26


विश्वासी परमेश्वर के वारिस और मसीह के सहवारिस होते हैं।


“यदि हम बच्चे हैं, तो हम भी वारिस हैं; परमेश्वर के वारिस और मसीह के सहवारिस।”
रोमियों 8:17


पौलुस फिर से जोर देते हैं:

“क्योंकि शरीर की कसरत थोड़ी-बहुत लाभकारी है, परन्तु भक्ति हर प्रकार से लाभकारी है, जिसमें इस जीवन और आने वाले जीवन दोनों के लिए वादा है।”
1 तीमुथियुस 4:8


ईश्वर हमें भक्ति की ओर ले जाने वाली आध्यात्मिक अनुशासनों को बनाए रखने में मदद करें!


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क्या सच में दूसरे ग्रहों पर जीव होते हैं? (एलियन्स)

इस संसार की कहानी मानवता और हमारे सृष्टिकर्ता के इर्द-गिर्द घूमती है, बस इतना ही! यह कहानी है कि कैसे परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया और उसे पृथ्वी पर सब चीज़ों पर अधिकार दिया।

इसलिए, दूर-दराज़ के ग्रहों पर मनुष्यों से अधिक बुद्धिमान कोई अन्य प्राणी नहीं रहता। जब हम “ब्रह्मांड” की बात करते हैं, तो हम केवल पृथ्वी की बात नहीं करते, बल्कि उन सभी ग्रहों, तारों और आकाशीय पिंडों की भी जो अंतरिक्ष में मौजूद हैं। ब्रह्मांड में हर वह जगह शामिल है जहाँ मानव पहुँच सकता है, और ब्रह्मांड में कोई भी प्राणी मनुष्य की बुद्धिमत्ता से ऊपर नहीं है।

भजन संहिता 8:3-9 (ERV-HI)

“जब मैं तुम्हारे आसमानों को देखता हूँ, तुम्हारे उंगलियों के काम को,
चंद्रमा और तारों को, जिन्हें तुमने ठहराया है,
तो मनुष्य क्या है कि तुम उसकी याद रखते हो,
और मनुष्य का बेटा क्या है कि तुम उसकी देखभाल करते हो?
तुमने उसे स्वर्गदूतों से थोड़ा नीचे बनाया है,
और महिमा और सम्मान से उसे मुकुटित किया है।
तुमने उसे अपने हाथों के कार्यों पर राजकुमार बनाया है;
सब कुछ उसके चरणों के नीचे रखा है:
सब भेड़ और बैल,
और जंगल के जानवर,
आकाश के पक्षी,
और समुद्र के मछली,
जो समुद्र के रास्तों से गुजरती हैं।
हे प्रभु, हमारे प्रभु,
तुम्हारा नाम पृथ्वी पर कितना महिमामय है!”

तो, आप पूछ सकते हैं कि यदि मनुष्यों से अधिक बुद्धिमान कोई प्राणी नहीं है, तो वे रहस्यमय जीव क्या हैं जिन्हें वैज्ञानिक अंतरिक्ष में देखते और फोटो में कैद करते हैं, जो कभी-कभी मनुष्य जैसे दिखते हैं?

यह एक स्पष्ट तथ्य है कि वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में अजीब घटनाओं को देखा है, और कई बार उन्हें कैमरे में भी कैद किया है। कभी-कभी वे असामान्य रोशनी, आकृतियाँ या पैटर्न देखते हैं जो जल्दी गायब हो जाते हैं, जिससे कई सवाल पैदा होते हैं। क्योंकि विज्ञान अधिकतर भगवान के अस्तित्व को नकारता है, इसलिए ये वैज्ञानिक यह समझाने में असमर्थ रहते हैं कि वे क्या देख रहे हैं।

तो, ये जीव जो अक्सर “एलियन्स” कहे जाते हैं, कौन हैं? बाइबिल हमें इनके स्वरूप के बारे में निम्नलिखित श्लोक में जानकारी देती है:

प्रकाशितवाक्य 12:7-9 (ERV-HI)

“तब स्वर्ग में युद्ध हुआ: मीकाएल और उसके स्वर्गदूतों ने ड्रैगन से लड़ाई की; और ड्रैगन ने और उसके स्वर्गदूतों ने लड़ाई की,
और वे विजयी न हो सके; और उनका स्थान स्वर्ग में अब नहीं मिला।
और वह बड़ा ड्रैगन, वह प्राचीन सर्प, जिसे शैतान और दुष्ट कहा जाता है, जो पूरी दुनिया को धोखा देता है, धरती पर फेंक दिया गया; और उसके स्वर्गदूत उसके साथ फेंक दिए गए।”

वे “एलियन्स” जो वैज्ञानिक अंतरिक्ष में देखते हैं, असली विदेशी प्राणी नहीं, बल्कि शैतान और उसके पतित स्वर्गदूत (दानव) हैं। बाइबिल हमें सिखाती है कि शैतान शक्तिशाली है, लेकिन वह एक बनाया हुआ प्राणी है जिसकी सीमित शक्ति है। जैसा कि 2 कुरिन्थियों 11:14 (ERV-HI) में कहा गया है:

“और कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि शैतान स्वयं प्रकाश के स्वर्गदूत के रूप में छल करता है।”

वह और उसके दानव खुद को छुपाकर प्रकाश या दूर के ग्रहों के एलियन के रूप में प्रकट कर सकते हैं ताकि मानवता को धोखा दें।

शैतान का उद्देश्य है लोगों को परमेश्वर के वचन की सच्चाई से दूर ले जाना और उन्हें ब्रह्मांड के बारे में वैकल्पिक गलत विचारों में विश्वास दिलाना, जैसे कि एलियन्स का अस्तित्व। उसका लक्ष्य स्पष्ट है: लोगों को परमेश्वर से हटाकर उन “उच्चतर प्राणियों” पर विश्वास करना जो मानवता की तकनीकी और सामाजिक समस्याओं के समाधान देने का दावा करते हैं।

शैतान के पास मानवता को धोखा देने के कई उपकरण हैं। जादू-टोना और ओकुल्ट प्रथाएं उन लोगों को भ्रमित करती हैं जो ऐसे विश्वास करते हैं। झूठे भविष्यवक्ताओं और झूठे शिक्षकों द्वारा वे लोग भटकाए जाते हैं जो चर्चों में जाते हैं लेकिन परमेश्वर के वचन को ठीक से नहीं जानते। एलियन की धोखाधड़ी उन लोगों पर काम करती है जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, और उन्हें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अन्य ग्रहों के जीवों के पास श्रेष्ठ ज्ञान और शक्ति है।

मैंने एक महिला की गवाही पढ़ी, जिसने अभी अभी अपने जीवन को यीशु को समर्पित किया था, पर पूरी तरह समर्पित नहीं थी। उसने बताया कि वह एलियन्स के बारे में पढ़ना पसंद करती थी, और दिल में विश्वास करती थी कि दूर ग्रहों पर मनुष्यों से अलग जीव होंगे। वह उन्हें देखने की इच्छा रखती थी क्योंकि उसने कई लोगों के ऐसे अनुभव सुने थे।

एक रात, जब वह कार चला रही थी, तो उसने रास्ते पर एक तेज़ रोशनी देखी। वह रोशनी उसके कार के करीब आई और उसे ब्रेक लगाने पड़े। उसने उस वस्तु को एक अंतरिक्षयान जैसा बताया, जो पृथ्वी पर ज्ञात तकनीक से कहीं आगे था।

हालांकि उसने अंदर के जीवों को नहीं देखा, उसने एक आवाज़ सुनी जिसने कहा कि वे दूर के ग्रह से आए एलियन्स हैं जो पृथ्वी की मदद करने आए हैं। वह बहुत खुश हुई कि उसका सपना सच हुआ। लेकिन इससे पहले उसने सुसमाचार सुना था और यीशु का अनुसरण किया था, पर उसका आधा मन अभी भी इस दुनिया में था।

उसने उन जीवों से पूछा, “क्या तुम यीशु की पूजा करते हो?” वे पहले उत्तर नहीं दिए। बार-बार पूछने पर उन्होंने कहा, “हम यीशु की पूजा नहीं करते। तुम मनुष्य उनकी पूजा करते हो। हम मनुष्य नहीं हैं।” जब उसने उनके पूजा के बारे में और पूछा, तो वह यान अचानक उड़ गया और गायब हो गया।

उस घटना के बाद, उसे बाइबिल पढ़ने में समस्या होने लगी। जब भी वह बाइबिल खोलती, उसे केवल प्रकाश ही दिखाई देता। लेकिन जब उसके लिए प्रार्थना की गई और दुष्ट आत्माओं को निकाल दिया गया, तो उसने सच्चाई जानी: जो उसने देखा वह एलियन नहीं बल्कि दानव थे जो खुद को विदेशी जीवों के रूप में छिपाए हुए थे।

बाइबिल हमें स्पष्ट चेतावनी देती है:

1 यूहन्ना 4:1 (ERV-HI)

“प्रिय मित्रों, हर आत्मा पर विश्वास न करो, बल्कि आत्माओं को परखो कि वे परमेश्वर से हैं या नहीं, क्योंकि कई झूठे भविष्यद्वक्ता संसार में आ चुके हैं।”

अंत में, एलियन्स का विचार शैतान की रचना है। यह एक झूठ है जो नर्क से आया है, जिसका उद्देश्य लोगों को परमेश्वर से दूर करना है। शैतान चाहता है कि लोग परमेश्वर पर से विश्वास छोड़ दें और इन विदेशी जीवों की अवधारणा पर विश्वास करें, जैसा आधुनिक विज्ञान प्रचार करता है। यह धोखा पहले ही पश्चिमी दुनिया में बहुत भ्रम फैला चुका है और अब यह दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल रहा है।

धन्य रहें!


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अय्यूब ने कितने समय तक दुःख सहा?

उत्तर:

बाइबल अय्यूब की पीड़ा की अवधि के लिए कोई सटीक समयरेखा नहीं देती। लेकिन कुछ मुख्य पदों और धार्मिक संदर्भों को देखकर हम एक सामान्य समझ बना सकते हैं कि उसकी परीक्षा कितने समय तक चली।

1. बाइबल संकेत — “निरर्थक महीनों” का वर्णन

एक महत्वपूर्ण पद अय्यूब 7:2–6 में पाया जाता है, जहाँ अय्यूब कहता है:

“जैसे दास छाया की अभिलाषा करता है, और जैसे मज़दूर अपनी मज़दूरी की बाट जोहता है,
वैसे ही मेरे लिए भी व्यर्थता के महीने ठहराए गए हैं,
और क्लेशपूर्ण रातें मेरे लिए नियुक्त हुई हैं।
मैं लेटते ही सोचता हूँ, ‘कब उठूँ?’
लेकिन रात खिंचती जाती है, और मैं पौ फटने तक करवटें बदलता रहता हूँ।
मेरा शरीर कीड़े और फुंसियों से भरा हुआ है; मेरी त्वचा फट गई है और सड़ रही है।
मेरे दिन जुलाहे की नाव से भी शीघ्र जाते हैं, और आशा के बिना समाप्त हो जाते हैं।”
(अय्यूब 7:2–6, ERV-HI)

यहाँ अय्यूब “महीनों” शब्द का बहुवचन में प्रयोग करता है, जिससे स्पष्ट है कि उसका दुःख केवल कुछ हफ्तों तक सीमित नहीं था। भले ही कोई निश्चित अवधि नहीं बताई गई, लेकिन यह समझा जा सकता है कि उसने कई महीनों — शायद एक वर्ष या उससे अधिक — तक शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्लेश सहा। एक मजदूर की तरह राहत की प्रतीक्षा करने का उसका वर्णन दिखाता है कि वह छुटकारे की आशा करता था, पर वह विलंबित होती रही।

2. अय्यूब के मित्रों की यात्रा — अतिरिक्त समय का संकेत

अय्यूब 2:11–13 में बताया गया है कि अय्यूब के तीन मित्र — एलीपज, बिल्दद और सोपर — दूर-दूर से उसे सांत्वना देने आए:

“जब उन्होंने उसे दूर से देखा, तो वे उसे पहचान न सके; और वे ज़ोर से रोने लगे …
फिर वे सात दिन और सात रात तक उसके साथ पृथ्वी पर बैठे रहे;
और किसी ने उससे एक भी बात नहीं की, क्योंकि वे देख रहे थे कि उसका दुःख बहुत बड़ा था।”
(अय्यूब 2:12–13, ERV-HI)

उन मित्रों ने अय्यूब के साथ सात दिन तक चुपचाप समय बिताया, उसके बाद ही लम्बा संवाद आरंभ हुआ, जो अध्याय 3 से 31 तक फैला हुआ है। साथ ही, दूर के क्षेत्रों (तेमान, शूह और नामात) से अय्यूब तक उनकी यात्रा भी समय लेने वाली रही होगी।

3. परमेश्वर की बहाली और बलिदान

जब परमेश्वर ने अंत में अय्यूब से बातें की और अय्यूब ने पश्चाताप किया (अय्यूब 42:1–6), तब परमेश्वर ने अय्यूब से कहा कि वह अपने मित्रों के लिए बलिदान चढ़ाए:

“तू सात बछड़े और सात मेंढ़े लेकर मेरे दास अय्यूब के पास जा और अपने लिए होमबलि चढ़ा;
और मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा;
मैं उसकी प्रार्थना को स्वीकार करूँगा और तुम्हारे साथ तुम्हारी मूर्खता के अनुसार व्यवहार नहीं करूँगा।”
(अय्यूब 42:8, ERV-HI)

यह दर्शाता है कि बहाली से पहले भी एक तैयारी और प्रतीक्षा का समय था। अय्यूब 42:10 में लिखा है:

“जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिए प्रार्थना की, तब यहोवा ने उसका भाग्य बदल दिया और उसे पहले से दुगुना दिया।”
(अय्यूब 42:10, ERV-HI)

हालाँकि यह संक्षेप में बताया गया है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि उसकी बहाली तुरन्त हो गई। पशुधन, परिवार और संपत्ति को फिर से स्थापित करने में वर्षों लग सकते हैं — यह दिखाता है कि उसका पुनःस्थापन धीरे-धीरे हुआ।

4. नए नियम में पुष्टि — अय्यूब का उदाहरण

प्रेरित याकूब अय्यूब को धैर्य और दृढ़ता का आदर्श बताते हैं:

“हे भाइयों और बहनों, प्रभु के नाम से बोलनेवाले भविष्यद्वक्ताओं को
दुःख उठाने और धीरज रखने का एक आदर्श समझो।
देखो, हम उन्हें धन्य कहते हैं जो धीरज रखते हैं।
तुमने अय्यूब की धीरज की बात सुनी है और यह भी देखा है कि प्रभु ने अंत में उसके साथ क्या किया।
क्योंकि प्रभु करुणामय और दयालु है।”
(याकूब 5:10–11, ERV-HI)

यह दिखाता है कि परमेश्वर की योजनाएँ समय के साथ प्रकट होती हैं, और लम्बे समय तक चलने वाला दुःख भी अंततः आशीर्वाद में बदल सकता है।

5. आत्मिक शिक्षा — समयरेखा क्यों महत्त्वपूर्ण है

यह समझना कि अय्यूब की परीक्षा महीनों या उससे अधिक समय तक चली, एक सामान्य भ्रांति को सुधारता है:
कि हर आत्मिक छुटकारा या परमेश्वरी बहाली तुरन्त होती है। धैर्य और विश्वास में टिके रहना, यह आत्मिक परिपक्वता का मूल है। अय्यूब की कहानी बताती है:

  • दुःख में परमेश्वर की अदृश्य योजनाएँ
    (अय्यूब 1–2; रोमियों 8:28)

  • पीड़ा में विलाप और प्रश्न करना भी उचित है
    (अय्यूब 3–31; भजन संहिता)

  • बिना उत्तर पाए भी परमेश्वर के चरित्र पर विश्वास करना
    (अय्यूब 38–42)

अय्यूब ने केवल कुछ दिन नहीं, बल्कि लंबे समय तक दुःख उठाया — परिवार, संपत्ति, स्वास्थ्य और प्रतिष्ठा सब कुछ खोने के बाद भी वह विश्वासयोग्य बना रहा। और अंततः परमेश्वर ने अपनी करुणा दिखाई।

अंतिम प्रोत्साहन — अय्यूब की तरह धैर्य रखो

आज के विश्वासी होने के नाते, हम भी उसी प्रकार की स्थिरता और विश्वास रखने के लिए बुलाए गए हैं:

“हम अच्छे काम करते करते थकें नहीं, क्योंकि उचित समय पर हम कटनी काटेंगे, यदि हम ढीले न हों।”
(गलातियों 6:9, ERV-HI)

आशीषित रहो!


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यूनानियों, फरीसियों और सदूकियों के बीच क्या अंतर था?

1. फरीसी बनाम सदूकी – एक धार्मिक तुलना

फरीसी और सदूकी, दूसरी मन्दिर काल (516 ई.पू. – 70 ई.) के दौरान यहूदियों की दो प्रमुख धार्मिक संप्रदाय थे। हालांकि दोनों ही मूसा की पांच पुस्तकों (तोरा) को मानते थे, लेकिन उनके धार्मिक विश्वासों में विशेष रूप से पुनरुत्थान, जीवन के बाद की स्थिति, और आत्मिक प्राणियों के विषय में बहुत बड़ा अंतर था।

फरीसी

विश्वास:

  • वे मृतकों के पुनरुत्थान, न्याय और मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करते थे (दानिय्येल 12:2)।

  • वे स्वर्गदूतों, आत्माओं और एक आत्मिक संसार के अस्तित्व को मानते थे।

  • उन्होंने तोरा के साथ-साथ मौखिक व्यवस्था (जो बाद में तलमूद में संकलित हुई) को भी परम अधिकार माना।

  • वे एक ऐसे मसीहा के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे जो परमेश्वर का राज्य स्थापित करेगा।

पवित्रशास्त्र समर्थन:

“और बहुत से वे जो पृथ्वी की मिट्टी में सोते हैं, जाग उठेंगे, कोई तो सदा का जीवन पाएंगे, और कोई अपमान और सदा की घृणा के लिए।”
दानिय्येल 12:2

“क्योंकि सदूकी कहते हैं कि न तो कोई पुनरुत्थान होता है, और न कोई स्वर्गदूत, और न आत्मा; परन्तु फरीसी इन सब बातों को मानते हैं।”
प्रेरितों के काम 23:8

सदूकी

विश्वास:

  • वे पुनरुत्थान, स्वर्गदूतों और आत्माओं के अस्तित्व को नकारते थे।

  • वे केवल लिखित तोरा को मानते थे और मौखिक व्यवस्था को अस्वीकार करते थे।

  • वे मृत्यु के बाद किसी जीवन या परमेश्वर के न्याय में विश्वास नहीं करते थे।

यीशु की उलाहना (मत्ती 22:23–33):
यीशु ने सदूकियों की पुनरुत्थान की अस्वीकृति को सीधे संबोधित किया और उन्हें याद दिलाया कि परमेश्वर “जीवितों का परमेश्वर” है – उन्होंने अब्राहम, इसहाक और याकूब का उल्लेख करते हुए बताया कि वे परमेश्वर की उपस्थिति में जीवित हैं।

“मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं’? वह मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का परमेश्वर है।”
मत्ती 22:32

पौलुस का उपयोग (प्रेरितों के काम 23:6–10):
प्रेरित पौलुस, जो पहले एक फरीसी थे, ने अपने बचाव के लिए फरीसियों और सदूकियों के बीच के doctrinal मतभेद का चतुराई से उपयोग किया:

“हे भाइयों, मैं फरीसी हूं और फरीसियों का पुत्र हूं; और मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा न्याय किया जा रहा है।”
प्रेरितों के काम 23:6

इस बयान के कारण फरीसियों और सदूकियों में विवाद हुआ और पौलुस पर से ध्यान हट गया।


2. नए नियम में “यूनानी” कौन थे?

नए नियम में “यूनानी” शब्द विभिन्न सन्दर्भों में भिन्न प्रकार के लोगों को दर्शाता है। सही व्याख्या के लिए इन भेदों को समझना आवश्यक है।

A. यूनानी-भाषी यहूदी (हेल्लेनिस्ट यहूदी)

ये जातीय रूप से यहूदी थे लेकिन रोमी साम्राज्य के यूनानी-भाषी क्षेत्रों में रहते थे। उन्होंने यूनानी भाषा और कुछ रीति-रिवाजों को अपनाया था, लेकिन वे यहूदी धर्म का पालन करते थे।

उदाहरण – यूहन्ना 12:20–21:

“उत्सव में पूजा करने आए हुए लोगों में कुछ यूनानी भी थे। उन्होंने फिलिप्पुस से कहा, ‘हे स्वामी, हम यीशु से मिलना चाहते हैं।’”
यूहन्ना 12:20–21

ये यूनानी संभवतः हेल्लेनिस्ट यहूदी या धर्मांतरित अन्यजाति थे जो फसह के पर्व के लिए यरूशलेम आए थे।

उदाहरण – पिन्तेकुस्त (प्रेरितों के काम 2:5–11):

“यरूशलेम में हर जाति और देश से आए हुए भक्त यहूदी रहते थे।”
प्रेरितों के काम 2:5

B. जातीय यूनानी (अन्यजाति)

ये वे गैर-यहूदी थे जो यूनानी या हेल्लेनिस्ट पृष्ठभूमि से थे। इनमें से कई “परमेश्वर से डरनेवाले” कहलाते थे – वे यहूदी धर्म की एकेश्वरवादी सोच से प्रभावित थे, परंतु पूर्ण रूप से धर्मांतरित नहीं हुए थे।

उदाहरण – शूरो-फिनीकी स्त्री (मरकुस 7:26):

“वह स्त्री यूनानी और शूरो-फिनीकी जाति की थी; और उसने उस से विनती की कि उसकी बेटी में से दुष्टात्मा को निकाल दे।”
मरकुस 7:26

हालाँकि वह एक अन्यजाति थी, फिर भी यीशु ने उसके विश्वास को सम्मान दिया – यह दिखाता है कि उद्धार केवल यहूदियों तक ही सीमित नहीं रहेगा।

तीतुस और तीमुथियुस:
तीतुस यूनानी था (गलातियों 2:3) और पौलुस का विश्वासपात्र साथी। तीमुथियुस की माँ यहूदी और पिता यूनानी था (प्रेरितों के काम 16:1) – यह प्रारंभिक मसीही समुदायों की विविधता को दर्शाता है।


निष्कर्ष

  • फरीसी – वे律-पालक यहूदी थे जो पुनरुत्थान, स्वर्गदूतों और आत्मिक संसार में विश्वास रखते थे।

  • सदूकी – वे अधिक शाही और संदेहवादी विचारधारा के थे; वे आत्माओं और पुनरुत्थान को अस्वीकार करते थे और केवल तोरा को ही मानते थे।

  • “यूनानी” – नए नियम में कभी-कभी यह हेल्लेनिस्ट यहूदियों को दर्शाता है, तो कभी यूनानी जातियों से आए हुए अन्यजातियों को।

आशीर्वादित रहिए! 🙏


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क्या भगवान अंधकार की शक्तियों के माध्यम से बोल सकते हैं? मैं 1 शमूएल 28 की उस कहानी को पढ़कर उलझन में हूँ जिसमें राजा साउल ने जादू टोने वाली स्त्री के जरिए जवाब प्राप्त किए।

उत्तर:

शालोम! इस प्रश्न का सही उत्तर देने के लिए हमें एक मूल सत्य से शुरुआत करनी होगी: परमेश्वर सर्वव्यापी हैं। वह हर जगह मौजूद हैं और उनसे कुछ भी छुपा नहीं है, यहाँ तक कि अंधकार का क्षेत्र भी नहीं।

1. परमेश्वर की सर्वव्यापकता (भजन संहिता 139)
दाऊद ने भजन संहिता 139:7-12 (ERV-HI) में कहा है:

“मैं तेरे आत्मा से कहाँ जाऊँ? और तेरे मुख से कहाँ भागूँ?
यदि मैं स्वर्ग पर चढ़ूँ, तो तू वहाँ है। यदि मैं शेष देशों में बिछाऊँ, तो तू वहाँ है।
यदि मैं सुबह की किरण के पंख लेकर समुंदर के छोर तक जाऊँ,
तब भी तेरी हाथ मुझे संभालेगा, और तेरी दाहिनी मुझे थामेगी।
यदि मैं कहूँ कि ‘अंधकार मुझे ढक ले,’ और रात को मैं प्रकाश से बदल दूँ,
तब भी अंधकार तेरे लिए अंधकार नहीं है; रात दिन की तरह उज्जवल है, क्योंकि तेरे लिए अंधकार प्रकाश के समान है।”

यह श्लोक दिखाता है कि परमेश्वर का दायरा और ज्ञान असीमित है, और वे किसी भी छुपे हुए या अंधकारमय स्थान को जानते हैं। यह सत्य दर्शाता है कि परमेश्वर किसी भी परिस्थिति में, चाहे वह अंधकार हो या विद्रोह, बोल सकते हैं।

2. आध्यात्मिक क्षेत्रों को समझना
धर्मग्रंथों में तीन प्रमुख “राज्य” या “सत्ता क्षेत्र” बताए गए हैं:

  • परमेश्वर का राज्य — सर्वोच्च सत्ता, पवित्र, शाश्वत और प्रभुत्वशाली (लूका 1:33, मत्ती 6:10)।

  • अंधकार का राज्य — शैतान का अधिपत्य, धोखा, जादू टोना, विद्रोह और पाप में सक्रिय (कुलुस्सियों 1:13, इफिसियों 6:12)।

  • मनुष्य का राज्य — भौतिक संसार जहाँ हम रहते हैं, उपर्युक्त दोनों से प्रभावित (उत्पत्ति 1:28, रोमियों 5:12)।

इनमें से केवल परमेश्वर का राज्य सर्वोच्च है। पूरी सृष्टि पर उनका पूर्ण अधिकार है।

“प्रभु ने स्वर्ग में अपना सिंहासन स्थापित किया; उसका राज्य सब पर शासन करता है।”
— भजन संहिता 103:19 (ERV-HI)

यहाँ तक कि शैतान ने यीशु को लुभाते हुए भी इस अस्थायी अधिकार को स्वीकार किया:

“यह सब मैं तुम्हें दूँगा, यदि तुम गिरकर मेरी पूजा करोगे।”
— मत्ती 4:9 (ERV-HI)

यह कोई खाली दावा नहीं था। परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं, पर उन्होंने शैतान को सीमित अधिकार दिया है (इयूब 1:12, लूका 22:31-32)।

3. साउल के साथ क्या हुआ?
1 शमूएल 28 में, राजा साउल, जिन्होंने परमेश्वर का आशीर्वाद खो दिया था और न तो भविष्यद्वक्ताओं से, न स्वप्नों से, न उरिम से कोई उत्तर पा रहे थे, उन्होंने एक माध्यम से संपर्क किया — जिसे “एंडोर की चुड़ैल” कहा गया। यह परमेश्वर के नियम का उल्लंघन था:

“जादू टोना करने वालों और भविष्यवक्ता से मुँह न मोड़ो; उनसे संपर्क न करो कि तुम अपने आप को अशुद्ध न करो। मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ।”
— लैव्यवस्था 19:31 (ERV-HI)

“तुम में कोई ऐसा न हो जो जादू टोना करे या भविष्य बताये या संकेतों की व्याख्या करे। जो ऐसा करेगा वह यहोवा के लिए घृणा का विषय होगा।”
— व्यवस्थाविवरण 18:10-12 (ERV-HI)

फिर भी, असाधारण रूप से, शमूएल प्रकट हुआ और साउल से बोला।

धर्मशास्त्रियों में मतभेद है कि यह वास्तव में शमूएल की आत्मा थी या कोई दैत्य जिसने उसका रूप लिया था। पर 1 शमूएल 28:12-20 स्वयं बताता है कि परमेश्वर ने शमूएल को प्रकट होना दिया, लेकिन यह अनुमति स्वीकृति नहीं, बल्कि सजा थी:

“फिर तू मुझसे क्यों पूछता है? क्योंकि प्रभु तुझसे मुंह मोड़ चुका है और तेरा शत्रु बन गया है।”
— 1 शमूएल 28:16 (ERV-HI)

यह जादू टोना का समर्थन नहीं था, बल्कि परमेश्वर ने इस निषिद्ध कार्य को सजा देने के लिए अनुमति दी। साउल पहले ही अपनी अवज्ञा के कारण दोषी था (1 शमूएल 15:23), और माध्यम से परामर्श करना उसकी नियति तय कर गया।

4. क्या परमेश्वर अंधकार के माध्यम से बोल सकते हैं?
धार्मिक दृष्टिकोण से हाँ, परमेश्वर किसी भी परिस्थिति में बोल सकते हैं, चाहे वह जगह या माध्यम पवित्र न हो, क्योंकि वे सर्वशक्तिमान हैं (रोमियों 8:28, दानियल 4:35)। इसका मतलब यह नहीं कि वे उस तरीके को स्वीकृत करते हैं या उस व्यक्ति के साथ ठीक हैं।

उदाहरण: बलआम
संख्या 22 में बलआम, जो एक मूर्ति पूजा करने वाला भविष्यद्वक्ता था, ने परमेश्वर की आवाज़ सुनी। परमेश्वर ने बलआम के गधे का भी इस्तेमाल संदेश देने के लिए किया! लेकिन बलआम की मंशा भ्रष्ट थी, और उसने बाद में इस्राएल को पाप में डाला (संख्या 31:16)। अंततः उसे सजा मिली (यहोशू 13:22)।

सीख: परमेश्वर की आवाज़ सुनना, परमेश्वर के साथ ठीक होने का प्रमाण नहीं है।

5. गलत तरीकों से परमेश्वर की खोज
जो लोग जादू टोना, ज्योतिष या अन्य आध्यात्मिक प्रथाओं की ओर बढ़ते हैं, वे आमतौर पर परमेश्वर की वास्तविक खोज नहीं करते, बल्कि जीवन की समस्याओं का त्वरित समाधान ढूंढ़ते हैं। बाइबिल चेतावनी देती है:

“ऐसा मार्ग है जो मनुष्य को ठीक लगता है, पर अंत मृत्यु का मार्ग है।”
— नीतिवचन 14:12 (ERV-HI)

साउल ने परमेश्वर को खोजने के लिए माध्यम की मदद नहीं ली, बल्कि वह उत्तर पाने के लिए गया जो परमेश्वर ने रोक रखा था। यह चेतावनी है कि निषिद्ध रास्तों से परमेश्वर तक पहुँचने की कोशिश पराधीनता नहीं, बल्कि दंड लेकर आती है।

6. यीशु ही परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता हैं
परमेश्वर का सच्चा संवाद और मनुष्य से मेल-मिलाप उनके पुत्र यीशु मसीह के माध्यम से होता है।

“परमेश्वर एक है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ भी एक है, मनुष्य मसीह यीशु।”
— 1 तीमुथियुस 2:5 (ERV-HI)

“मैं मार्ग और सत्य और जीवन हूँ; मेरे द्वारा ही पिता के पास कोई आता है।”
— यूहन्ना 14:6 (ERV-HI)

परमेश्वर तक पहुँचने के लिए मूर्तिपूजा, ओकुल्ट या अन्य आध्यात्मिक रास्ते अपनाना विद्रोह है और विनाश की ओर ले जाता है। ऐसे “जवाब” अक्सर धोखा होते हैं और आध्यात्मिक परिणाम लेकर आते हैं (2 थिस्सलुनीकियों 2:9-12)।


निष्कर्ष:
हाँ, परमेश्वर किसी भी परिस्थिति में बोल सकते हैं — अंधकार के माध्यम से भी — क्योंकि वे सर्वव्यापी और सर्वोच्च हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे उन तरीकों को स्वीकार करते हैं। जब वे ऐसे संदर्भों में बोलते हैं, तो यह अक्सर चेतावनी या अंतिम न्याय होता है, ना कि अनुग्रह या मार्गदर्शन।

महत्वपूर्ण सत्य: परमेश्वर के उत्तर कभी भी उनकी वाणी के विरोधी नहीं होंगे।

परमेश्वर की खोज सच्चाई से करनी है, विश्वास के माध्यम से, यीशु मसीह में, नम्र हृदय से और उनकी वाणी के अनुसार आज्ञाकारिता में। अन्य कोई मार्ग खतरनाक है और सत्य से दूर ले जाता है।


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क्या एक ईसाई के लिए बीमार होने पर अस्पताल जाना या हर्बल दवाइयों का उपयोग करना उचित है?

उत्तर: कुछ ईसाई सोचते हैं कि चिकित्सा उपचार या हर्बल उपचार लेना विश्वास की कमी है। लेकिन जब हम शास्त्र को देखते हैं, तो पाते हैं कि अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना न केवल स्वीकार्य है, बल्कि यह ईश्वर की व्यवस्था और बुद्धिमत्ता के अनुरूप भी है।

यीशु ने चिकित्सकों की भूमिका को स्वीकार किया

मार्कुस 2:17 में यीशु ने कहा:

“स्वस्थों को दवा की जरूरत नहीं, बल्कि बीमारों को है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।”
(मार्कुस 2:17)

यीशु ने अपने मिशन को समझाने के लिए चिकित्सक की भूमिका का उदाहरण दिया, जिससे पता चलता है कि बीमारों का डॉक्टर से मदद लेना स्वाभाविक और सही है। ऐसा करके उन्होंने चिकित्सा देखभाल के महत्व को स्वीकार किया। अस्पताल जाना यह नहीं दर्शाता कि ईसाई में विश्वास की कमी है, बल्कि यह दिखाता है कि वे ईश्वर द्वारा उपलब्ध कराए गए साधनों का उपयोग कर रहे हैं।

ईश्वर उपचार के लिए प्राकृतिक साधनों का उपयोग करते हैं

आज की कई दवाइयां उन पौधों से बनती हैं जिन्हें ईश्वर ने बनाया है। पुराने नियम में ईश्वर ने अपने लोगों को उपचार के लिए प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करने का निर्देश दिया। उदाहरण के लिए:

“उनके फल भोजन के लिए होंगे, और उनके पत्ते चिकित्सा के लिए।”
(येजेकियल 47:12)

“और उस वृक्ष के पत्ते देशों की चिकित्सा के लिए हैं।”
(प्रकाशितवाक्य 22:2)

यह दिखाता है कि ईश्वर ने सृष्टि में उपचारात्मक गुण रखे हैं। नीम (म्वारोबाइन) या एलोवेरा जैसे हर्बल उपचारों का इस्तेमाल करना अनैतिक नहीं है; यह ईश्वर द्वारा दी गई बुद्धिमत्ता का उपयोग है, बशर्ते यह सही इरादों से और बिना किसी अधार्मिक रीति-रिवाज के किया जाए।

दवाओं को मूर्तिपूजा से जोड़ने से बचें

ईश्वर कड़ाई से उन उपचारों को मना करते हैं जो बाइबिल के विपरीत आध्यात्मिक प्रथाओं से जुड़े हों। जब कोई जानवर की बलि देने, जादू-टोना करने, मंत्रों का जाप करने या बिस्तर के नीचे जड़ी-बूटियां रखने जैसे रीति-रिवाजों में लिप्त हो जाता है, तो वह मूर्तिपूजा के क्षेत्र में आ जाता है। ये प्रथाएं पहले आज्ञा का उल्लंघन हैं:

“मेरे सिवा अन्य कोई देवता न रख।”
(निर्गमन 20:3)

“तुम में से कोई भी ऐसा न हो जो … भविष्य बताने या जादू टोना करने, शुभाशुभ चिन्ह पढ़ने, या जादू-टोना करने में लगा हो … जो ऐसा करता है, वह प्रभु को घृणित है।”
(व्यवस्थाविवरण 18:10-12)

एक ईसाई को अपनी आस्था को अंधविश्वास या जादू-टोना के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। हालांकि, घर पर जड़ी-बूटियां तैयार करना और यीशु के नाम पर प्रार्थना करना पूरी तरह स्वीकार्य है।

“जो कुछ तुम करो, शब्द से हो या कर्म से, सब कुछ प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता को धन्यवाद दो।”
(कुलुस्सियों 3:17)

बिना दवा के ही विश्वास से इलाज करना भी सही है

कुछ विश्वासी बिना किसी भौतिक साधन के, डॉक्टर के पास जाए बिना, पूरी तरह से ईश्वर की अलौकिक शक्ति पर विश्वास करते हैं। उनका विश्वास केवल परमेश्वर की शक्ति पर टिका होता है।

“वह हमारी कमजोरियों को अपने ऊपर लिया, और हमारी बीमारियों को वह सहा।”
(मत्ती 8:17)

“प्रभु की प्रशंसा कर मेरी आत्मा … जो तुम्हारे सारे पाप क्षमा करता है और तुम्हारी सारी बीमारियां ठीक करता है।”
(भजन संहिता 103:2-3)

यह भी स्वीकार्य है, क्योंकि ईश्वर प्राकृतिक माध्यमों से भी और अपनी दिव्य शक्ति द्वारा भी उपचार कर सकते हैं। मुख्य बात यह है कि हर विश्वास वाला अपनी आस्था के अनुसार, डर या अंधविश्वास से नहीं, विश्वास में काम करे।

“जो कुछ विश्वास से नहीं होता, वह पाप है।”
(रोमियों 14:23)

निष्कर्ष:

चाहे अस्पताल हो, हर्बल उपचार हो या अलौकिक चिकित्सा, परमेश्वर सभी उपचारों का अंतिम स्रोत है। महत्वपूर्ण यह है कि हम उस पर भरोसा करें, विश्वास में काम करें, और ऐसा कुछ भी न करें जो उसकी महिमा को ठेस पहुँचाए।

“चाहे तुम खाना खाओ या पीओ, या जो कुछ भी करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो।”
(1 कुरिन्थियों 10:31)

आशीर्वादित रहें!


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