1. फरीसी बनाम सदूकी – एक धार्मिक तुलना
फरीसी और सदूकी, दूसरी मन्दिर काल (516 ई.पू. – 70 ई.) के दौरान यहूदियों की दो प्रमुख धार्मिक संप्रदाय थे। हालांकि दोनों ही मूसा की पांच पुस्तकों (तोरा) को मानते थे, लेकिन उनके धार्मिक विश्वासों में विशेष रूप से पुनरुत्थान, जीवन के बाद की स्थिति, और आत्मिक प्राणियों के विषय में बहुत बड़ा अंतर था।
फरीसी
विश्वास:
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वे मृतकों के पुनरुत्थान, न्याय और मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करते थे (दानिय्येल 12:2)।
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वे स्वर्गदूतों, आत्माओं और एक आत्मिक संसार के अस्तित्व को मानते थे।
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उन्होंने तोरा के साथ-साथ मौखिक व्यवस्था (जो बाद में तलमूद में संकलित हुई) को भी परम अधिकार माना।
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वे एक ऐसे मसीहा के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे जो परमेश्वर का राज्य स्थापित करेगा।
पवित्रशास्त्र समर्थन:
“और बहुत से वे जो पृथ्वी की मिट्टी में सोते हैं, जाग उठेंगे, कोई तो सदा का जीवन पाएंगे, और कोई अपमान और सदा की घृणा के लिए।”
दानिय्येल 12:2
“क्योंकि सदूकी कहते हैं कि न तो कोई पुनरुत्थान होता है, और न कोई स्वर्गदूत, और न आत्मा; परन्तु फरीसी इन सब बातों को मानते हैं।”
प्रेरितों के काम 23:8
सदूकी
विश्वास:
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वे पुनरुत्थान, स्वर्गदूतों और आत्माओं के अस्तित्व को नकारते थे।
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वे केवल लिखित तोरा को मानते थे और मौखिक व्यवस्था को अस्वीकार करते थे।
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वे मृत्यु के बाद किसी जीवन या परमेश्वर के न्याय में विश्वास नहीं करते थे।
यीशु की उलाहना (मत्ती 22:23–33):
यीशु ने सदूकियों की पुनरुत्थान की अस्वीकृति को सीधे संबोधित किया और उन्हें याद दिलाया कि परमेश्वर “जीवितों का परमेश्वर” है – उन्होंने अब्राहम, इसहाक और याकूब का उल्लेख करते हुए बताया कि वे परमेश्वर की उपस्थिति में जीवित हैं।
“मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं’? वह मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का परमेश्वर है।”
मत्ती 22:32
पौलुस का उपयोग (प्रेरितों के काम 23:6–10):
प्रेरित पौलुस, जो पहले एक फरीसी थे, ने अपने बचाव के लिए फरीसियों और सदूकियों के बीच के doctrinal मतभेद का चतुराई से उपयोग किया:
“हे भाइयों, मैं फरीसी हूं और फरीसियों का पुत्र हूं; और मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा न्याय किया जा रहा है।”
प्रेरितों के काम 23:6
इस बयान के कारण फरीसियों और सदूकियों में विवाद हुआ और पौलुस पर से ध्यान हट गया।
2. नए नियम में “यूनानी” कौन थे?
नए नियम में “यूनानी” शब्द विभिन्न सन्दर्भों में भिन्न प्रकार के लोगों को दर्शाता है। सही व्याख्या के लिए इन भेदों को समझना आवश्यक है।
A. यूनानी-भाषी यहूदी (हेल्लेनिस्ट यहूदी)
ये जातीय रूप से यहूदी थे लेकिन रोमी साम्राज्य के यूनानी-भाषी क्षेत्रों में रहते थे। उन्होंने यूनानी भाषा और कुछ रीति-रिवाजों को अपनाया था, लेकिन वे यहूदी धर्म का पालन करते थे।
उदाहरण – यूहन्ना 12:20–21:
“उत्सव में पूजा करने आए हुए लोगों में कुछ यूनानी भी थे। उन्होंने फिलिप्पुस से कहा, ‘हे स्वामी, हम यीशु से मिलना चाहते हैं।’”
यूहन्ना 12:20–21
ये यूनानी संभवतः हेल्लेनिस्ट यहूदी या धर्मांतरित अन्यजाति थे जो फसह के पर्व के लिए यरूशलेम आए थे।
उदाहरण – पिन्तेकुस्त (प्रेरितों के काम 2:5–11):
“यरूशलेम में हर जाति और देश से आए हुए भक्त यहूदी रहते थे।”
प्रेरितों के काम 2:5
B. जातीय यूनानी (अन्यजाति)
ये वे गैर-यहूदी थे जो यूनानी या हेल्लेनिस्ट पृष्ठभूमि से थे। इनमें से कई “परमेश्वर से डरनेवाले” कहलाते थे – वे यहूदी धर्म की एकेश्वरवादी सोच से प्रभावित थे, परंतु पूर्ण रूप से धर्मांतरित नहीं हुए थे।
उदाहरण – शूरो-फिनीकी स्त्री (मरकुस 7:26):
“वह स्त्री यूनानी और शूरो-फिनीकी जाति की थी; और उसने उस से विनती की कि उसकी बेटी में से दुष्टात्मा को निकाल दे।”
मरकुस 7:26
हालाँकि वह एक अन्यजाति थी, फिर भी यीशु ने उसके विश्वास को सम्मान दिया – यह दिखाता है कि उद्धार केवल यहूदियों तक ही सीमित नहीं रहेगा।
तीतुस और तीमुथियुस:
तीतुस यूनानी था (गलातियों 2:3) और पौलुस का विश्वासपात्र साथी। तीमुथियुस की माँ यहूदी और पिता यूनानी था (प्रेरितों के काम 16:1) – यह प्रारंभिक मसीही समुदायों की विविधता को दर्शाता है।
निष्कर्ष
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फरीसी – वे律-पालक यहूदी थे जो पुनरुत्थान, स्वर्गदूतों और आत्मिक संसार में विश्वास रखते थे।
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सदूकी – वे अधिक शाही और संदेहवादी विचारधारा के थे; वे आत्माओं और पुनरुत्थान को अस्वीकार करते थे और केवल तोरा को ही मानते थे।
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“यूनानी” – नए नियम में कभी-कभी यह हेल्लेनिस्ट यहूदियों को दर्शाता है, तो कभी यूनानी जातियों से आए हुए अन्यजातियों को।
आशीर्वादित रहिए! 🙏
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