हर मसीही को पहनने वाले छह भीतरी वस्त्र

सुबह उठते ही हम सबसे पहले वस्त्र पहनते हैं। बाहरी वस्त्र हमारे शरीर को ढकते हैं और हमें दूसरों के सामने सम्मानपूर्वक प्रस्तुत करते हैं। लेकिन बाइबल हमें याद दिलाती है कि वस्त्र केवल बाहरी नहीं होते, बल्कि आत्मिक वस्त्र भी होते हैं—जिन्हें “भीतरी वस्त्र” कहा जा सकता है।

ये वस्त्र कपड़े के नहीं, बल्कि आत्मिक गुण हैं जिन्हें हर मसीही को पहनना आवश्यक है ताकि उसका जीवन मसीह के समान हो सके। बाहर से चाहे आप कितने भी अच्छे कपड़े पहने हों, यदि ये भीतरी वस्त्र नहीं हैं, तो परमेश्वर की दृष्टि में आप आत्मिक रूप से नग्न हैं।

पौलुस कुलुस्सियों 3:12–14 (ERV-HI) में कहता है:

“इसलिये परमेश्वर के चुने हुए लोगों की तरह जो उसके पवित्र और प्यारे हैं, तुम्हें करुणा, भलाई, नम्रता, कोमलता और धैर्य से अपने आप को ढक लेना चाहिये। एक दूसरे के साथ धीरज रखो और यदि किसी को किसी के खिलाफ कोई शिकायत हो तो एक दूसरे को क्षमा करो। जिस प्रकार प्रभु ने तुम्हें क्षमा किया वैसे ही तुम्हें भी क्षमा करना चाहिये। और इन सबके ऊपर प्रेम का वस्त्र धारण करो, जो सबको सिद्ध एकता में बाँध देता है।”

पौलुस यहाँ “ढक लेना” (clothe yourselves) शब्द का प्रयोग करता है। इसका अर्थ है कि ये गुण वैकल्पिक नहीं, बल्कि मसीही जीवन के लिए अनिवार्य वस्त्र हैं। आइए इन्हें एक-एक करके देखें:


1. करुणा (दया)

करुणा परमेश्वर का हृदय है जो हमारे जीवन से दूसरों तक पहुँचता है। दयालु व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ नहीं मानता बल्कि परमेश्वर के आगे झुकता है और दूसरों को क्षमा करता है।

यीशु ने कहा: “धन्य हैं वे जो दयालु हैं क्योंकि उन पर दया की जायेगी।” (मत्ती 5:7, ERV-HI)।
यदि हम दूसरों पर दया नहीं करते, तो यह प्रमाण है कि हमने परमेश्वर की दया को अभी तक गहराई से नहीं समझा।


2. भलाई

भलाई आत्मा से बहने वाला गुण है। यह केवल अच्छे शब्द बोलना नहीं, बल्कि प्रेम का सक्रिय कार्य है। भले सामरी इसका उदाहरण है, जिसने किसी मजबूरी के बिना ज़रूरतमंद अजनबी की सहायता की (लूका 10:30–37)।

पौलुस भी कहता है कि सेवकाई करनी है तो “पवित्रता, समझ, धैर्य और भलाई के साथ, पवित्र आत्मा और सच्चे प्रेम में” करनी है (2 कुरिन्थियों 6:6, ERV-HI)।


3. नम्रता

नम्रता कमजोरी नहीं है बल्कि वह शक्ति है जो परमेश्वर के सामने झुक जाती है। अभिमान हमें अन्धा और नंगा कर देता है, पर नम्रता हमें परमेश्वर के अनुग्रह में ढक देती है।

पतरस लिखता है: “तुम सब लोग आपस में नम्रता का वस्त्र पहिन लो क्योंकि, ‘परमेश्वर अभिमानियों का सामना करता है, पर नम्र जनों पर अनुग्रह करता है।’” (1 पतरस 5:5, ERV-HI)।

नम्रता के बिना अच्छे काम भी स्वार्थपूर्ण बन जाते हैं। नम्रता से हम मसीह की समानता धारण करते हैं, जिसने “अपने आप को दीन किया और मृत्यु तक आज्ञाकारी रहा—हाँ, क्रूस की मृत्यु तक।” (फिलिप्पियों 2:8, ERV-HI)।


4. कोमलता

कोमलता कमजोरी नहीं, बल्कि संयमित शक्ति है। यीशु इसका उत्तम उदाहरण है। उसके पास स्वर्गदूतों की सेनाएँ बुलाने की शक्ति थी (मत्ती 26:53), फिर भी उसने पिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी रहना चुना।

उसने कहा: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझसे सीखो क्योंकि मैं नम्र और दीन हृदय का हूँ। तब तुम्हें अपने प्राणों के लिये विश्राम मिलेगा।” (मत्ती 11:29, ERV-HI)।

सच्ची कोमलता का अर्थ है—हमारे पास प्रतिशोध लेने की शक्ति हो, परन्तु हम प्रेम से उसे रोकें।


5. धैर्य

धैर्य वह सामर्थ्य है जिससे हम कठिनाई, अपमान या पीड़ा को सहते हैं बिना हार माने और बिना बदला लिये। यह आत्मिक परिपक्वता का फल है।

याकूब लिखता है: “हम उन लोगों को धन्य मानते हैं जिन्होंने धीरज रखा। तुम अय्यूब के धीरज के विषय में सुन चुके हो और जो परिणाम प्रभु ने उसे दिया उसे देखा है। प्रभु बहुत दयालु और करुणामय है।” (याकूब 5:11, ERV-HI)।

धैर्य हमें दृढ़ बनाए रखता है और मसीह के स्थायी प्रेम को प्रकट करता है।


6. प्रेम

अन्त में पौलुस कहता है कि इन सबके ऊपर प्रेम का वस्त्र पहन लो। प्रेम ही वह डोर है जो सब गुणों को एक साथ बाँध देता है। इसके बिना अन्य सब व्यर्थ हो जाते हैं।

पौलुस लिखता है: “यदि मैं मनुष्यों की और स्वर्गदूतों की भाषा में बोलूँ, किन्तु मुझमें प्रेम न हो, तो मैं केवल बजता हुआ काँसा और झंझनाती झाँझ हूँ।” (1 कुरिन्थियों 13:1, ERV-HI)।

प्रेम कोई साधारण भावना नहीं है; यह स्वयं परमेश्वर का स्वभाव है (1 यूहन्ना 4:8)।


आत्मा का फल और भीतरी वस्त्र

गलातियों 5:22–23 (ERV-HI) में पौलुस इन्हीं गुणों को आत्मा का फल कहता है:

“पर आत्मा का फल है प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वासयोग्यता, नम्रता और आत्म-संयम। ऐसी बातों के विरुद्ध कोई व्यवस्था नहीं।”

ये वस्त्र केवल हमारे प्रयास से नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा के कार्य से हमारे जीवन में उत्पन्न होते हैं।


अन्तिम विचार

जैसे हम बिना वस्त्र पहने बाहर नहीं जा सकते, वैसे ही हमें आत्मिक रूप से नग्न होकर संसार का सामना नहीं करना चाहिये। हर दिन हमें ये भीतरी वस्त्र पहनने हैं—करुणा, भलाई, नम्रता, कोमलता, धैर्य और सबसे ऊपर प्रेम।

जब हम इन्हें पहनते हैं, तो हम स्वयं मसीह को प्रतिबिम्बित करते हैं, जो हमारा सर्वोच्च आवरण और धार्मिकता है (यशायाह 61:10; 2 कुरिन्थियों 5:21)।

प्रभु हमें प्रतिदिन इन गुणों से ढके, ताकि हमारा जीवन उसकी अनुग्रह की गवाही बने।


क्या आप चाहेंगे कि मैं इसका संक्षिप्त संस्करण भी तैयार कर दूँ ताकि इसे प्रवचन या बाइबल अध्ययन के लिये आसानी से उपयोग किया जा सके?

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परमेश्वर का मुख देखने की यात्रा

मूसा (पीठ)

मसीह (दर्पण)
स्वर्ग (पूर्ण प्रगटीकरण)

मूसा की गहरी लालसा थी कि वह परमेश्वर का मुख देख सके। उसने परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव तो किया था, लेकिन उसका पूरा स्वरूप कभी नहीं देखा था।

परमेश्वर से आमने-सामने (थियोफनी)

बाइबल कहती है कि यहोवा मूसा से आमने-सामने बात करता था, जैसे कोई अपने मित्र से करता है। यह एक विशेष अनुभव था जिसे धर्मशास्त्री थियोफनी कहते हैं — यानी परमेश्वर का मनुष्य के सामने दृश्य रूप से प्रकट होना, परन्तु उसकी पूर्ण महिमा नहीं, क्योंकि वह मनुष्य सहन नहीं कर सकता।

निर्गमन 33:11 (ERV-HI)
यहोवा मूसा से आमने सामने बातें करता था जैसे कोई मित्र से करता है। फिर मूसा डेरे की ओर लौट जाता, परन्तु उसका सहायक यहोशू, जो नून का पुत्र था, वह तम्बू से बाहर नहीं निकलता था।

लेकिन जब मूसा ने सीधे परमेश्वर का मुख देखने की इच्छा जताई, तो परमेश्वर ने कहा:

निर्गमन 33:20-23 (ERV-HI)
परन्तु उसने कहा, “तू मेरा मुख नहीं देख सकता, क्योंकि कोई भी मनुष्य मेरा मुख देखकर जीवित नहीं रह सकता।” तब यहोवा ने कहा, “देख, मेरे पास एक स्थान है। तू उस चट्टान पर खड़ा हो। जब मेरी महिमा वहाँ से गुज़रेगी, तब मैं तुझे चट्टान की दरार में खड़ा कर दूँगा और जब तक मैं पार हो न जाऊँ तब तक अपना हाथ तुझ पर ढके रहूँगा। फिर मैं अपना हाथ हटा लूँगा, और तू मेरी पीठ देखेगा, परन्तु मेरा मुख कोई नहीं देख सकता।”

परमेश्वर का अदृश्य स्वरूप

यह सिखाता है कि परमेश्वर का स्वरूप मनुष्य के लिए अदृश्य और अप्राप्य है।

1 तीमुथियुस 6:16 (ERV-HI)
वही अकेला अमर है और वह ऐसे ज्योतिर्मय स्थान में रहता है, जहाँ कोई पहुँच नहीं सकता। उसे किसी मनुष्य ने कभी नहीं देखा और न देख सकता है। उसको आदर और अनन्त शक्ति मिले। आमीन।

इसलिए मूसा को परमेश्वर का मुख नहीं, केवल उसकी “पीठ” दिखाई गई — यानी उसकी महिमा का एक आंशिक दर्शन।

मूसा को परमेश्वर का स्वभाव प्रकट हुआ

जब यहोवा मूसा के सामने से गुज़रा, उसने परमेश्वर के चरित्र को जाना — दया, अनुग्रह, धैर्य, प्रेम और न्याय।

निर्गमन 34:5-7 (ERV-HI)
तब यहोवा बादल में उतर कर वहाँ उसके पास खड़ा हो गया और यहोवा के नाम का प्रचार किया। और यहोवा मूसा के सामने से होकर निकला और कहा, “यहोवा, यहोवा, दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर है। वह क्रोध करने में धीमा, अटल प्रेम और सच्चाई से भरपूर है। वह हजारों पीढ़ियों तक अटल प्रेम बनाए रखता है और अपराध, विद्रोह और पाप को क्षमा करता है। किन्तु दोषी को वह बिना दण्ड दिए नहीं छोड़ता। वह पिताओं के पाप का दण्ड पुत्रों, और पुत्रों के पुत्रों को, तीसरी और चौथी पीढ़ी तक देता है।”

यह वचन हमें परमेश्वर की दया और न्याय दोनों को दिखाता है — उसकी पवित्रता और प्रेम हमेशा संतुलन में रहते हैं।

यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का मुख

परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह को भेजा ताकि वह मनुष्य के सामने परमेश्वर का सच्चा स्वरूप प्रकट करे। यीशु ही अदृश्य परमेश्वर की प्रतिमा है।

यूहन्ना 1:18 (ERV-HI)
किसी ने भी कभी परमेश्वर को नहीं देखा। परन्तु एकलौता पुत्र, जो स्वयं परमेश्वर है और पिता के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध में है, उसी ने उसे प्रकट किया है।

कुलुस्सियों 1:15 (ERV-HI)
पुत्र उस अदृश्य परमेश्वर का स्वरूप है। वह सारी सृष्टि से पहले जन्मा हुआ है।

यीशु के बलिदान और पुनरुत्थान ने हमें वह सामर्थ्य दी है कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े हो सकें।

इब्रानियों 9:14 (ERV-HI)
तो मसीह का लहू तो हमारे लिए और भी महान बात करेगा। मसीह ने अपने आपको परमेश्वर के सामने एक दोषरहित बलिदान के रूप में चढ़ाया। उसने यह काम शाश्वत आत्मा की सहायता से किया। उसका लहू हमारी आत्मा को मरते हुए कामों से शुद्ध करेगा ताकि हम जीवित परमेश्वर की सेवा कर सकें।

यीशु ने प्रकट किया कि परमेश्वर का असली स्वरूप प्रेम है।

1 यूहन्ना 4:8 (ERV-HI)
जो प्रेम नहीं करता वह परमेश्वर को नहीं जानता क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।

भविष्य की आशा: परमेश्वर को आमने-सामने देखना

अभी हम परमेश्वर को धुँधले दर्पण के समान देखते हैं, परन्तु एक दिन हम उसे आमने-सामने देखेंगे।

1 कुरिन्थियों 13:12 (ERV-HI)
अब हम केवल धुँधले दर्पण में देखते हैं; परन्तु तब हम आमने सामने देखेंगे। अभी मुझे कुछ ही ज्ञात है; परन्तु तब मैं पूर्णतया जानूँगा जिस प्रकार मुझे पूर्णतया जाना गया है।

यह पूर्ण दर्शन हमें स्वर्ग में मिलेगा।

प्रकाशितवाक्य 22:4 (ERV-HI)
वे उसका मुख देखेंगे और उसका नाम उनके माथे पर लिखा होगा।

निष्कर्ष और बुलावा

परमेश्वर का मुख देखने की यात्रा:

  • मूसा ने आंशिक रूप से देखा (पीठ)।
  • मसीह में उसका स्वरूप पूर्ण रूप से प्रकट हुआ (दर्पण)।
  • और स्वर्ग में हम उसे आमने-सामने देखेंगे।

क्या आपने यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया है? उसके बिना कोई भी परमेश्वर की महिमा सहन नहीं कर सकता।

प्रेरितों के काम 4:12 (ERV-HI)
मुक्ति किसी और से नहीं मिल सकती। क्योंकि सारे जगत में लोगों को बचाने के लिए हमें और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है।

आज ही अंधकार की जगह ज्योति को चुनें। यीशु ने कहा:

यूहन्ना 3:36 (ERV-HI)
जो पुत्र पर विश्वास करता है उसे अनन्त जीवन मिलता है। परन्तु जो पुत्र को अस्वीकार करता है वह जीवन को नहीं देखेगा, उस पर परमेश्वर का क्रोध बना रहता है।

इसलिए यीशु की ओर आओ, उसका अनुग्रह लो और उसके प्रेम में चलते रहो। प्रभु आपको आशीष दे! 

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मैं ईश्वर की इच्छा को कैसे समझ सकता हूँ?

कुलुस्सियों 1:9

“इस कारण, जब से हमने आपके विषय में सुना है, हम आपके लिए प्रार्थना करना नहीं छोड़ते। हम निरंतर प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर आपको अपनी इच्छा का ज्ञान दे, जो आत्मा की सारी बुद्धि और समझ के द्वारा होता है।” — कुलुस्सियों 1:9 (HSB)

इस पद में, पौलुस एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्राथमिकता को व्यक्त करते हैं: कि विश्वासियों को ईश्वर की इच्छा का ज्ञान प्राप्त होना चाहिए। यह ज्ञान केवल बौद्धिक नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता और समझ (सिनेसीस) शामिल है, जो पवित्र आत्मा द्वारा दी जाती है।


ईश्वर की इच्छा क्या है?

ईसाई धर्मशास्त्र में, ईश्वर की इच्छा को आमतौर पर तीन आयामों में समझा जाता है:

1. ईश्वर की सार्वभौमिक इच्छा

यह ईश्वर की अपरिवर्तनीय योजना को दर्शाता है, जो पूरी इतिहास को नियंत्रित करती है। यह छिपी हुई है और इसे कोई रोक नहीं सकता।

“सर्वशक्तिमान यहोवा ने शपथ ली है, ‘जैसा मैंने योजना बनाई है, वैसा ही होगा; जैसा मैंने निश्चय किया है, वैसा ही होगा।'” — यशायाह 14:24 (BSI)

“हमारा परमेश्वर स्वर्ग में है; वह जो चाहता है करता है।” — भजन संहिता 115:3 (HSB)

यह ईश्वरीय सार्वभौमिकता के सिद्धांत के अनुरूप है। ईश्वर के अंतिम उद्देश्य (जैसे हमारे उद्धार के लिए मसीह का क्रूस पर चढ़ना — प्रेरितों के काम 2:23) बिल्कुल उसी तरह पूरा होते हैं जैसे उसने योजना बनाई है।

2. ईश्वर की नैतिक इच्छा (Preceptive Will)

यह वह इच्छा है जो ईश्वर ने शास्त्रों मे प्रकट की है — जो वह सभी लोगों से पालन करने के लिए कहते हैं।

“यह परमेश्वर की इच्छा है कि आप पवित्र बनें; कि आप यौन पाप से बचें।” — 1 थिस्सलुनीकियों 4:3 (HSB)

“हर परिस्थिति में धन्यवाद दो; क्योंकि यही मसीह यीशु में आपकी ओर से परमेश्वर की इच्छा है।” — 1 थिस्सलुनीकियों 5:18 (HSB)

“झूठ मत बोलो। चोरी मत करो। एक दूसरे से प्रेम करो।” — (रोमियों 13, निर्गमन 20 में विविध आदेश)

यह ईश्वर की पवित्रता और नैतिक चरित्र को दर्शाता है और पवित्रिकरण के नैतिक पहलू के अनुरूप है — मसीह की तरह बनने की प्रक्रिया (रोमियों 8:29)।

3. ईश्वर की व्यक्तिगत/विशेष इच्छा

यह ईश्वर की अनोखी मार्गदर्शन है, जो व्यक्तिगत निर्णयों, जैसे करियर, संबंध, या मंत्रालय कार्य के लिए होती है।

“तुम दाहिनी ओर मुड़ो या बाईं ओर, तुम्हारे कान पीछे से एक आवाज़ सुनेंगे, कहती है, ‘यह मार्ग है; इसमें चलो।'” — यशायाह 30:21 (BSI)

“आत्मा ने फिलिप को कहा, ‘उस रथ की ओर जाओ और उसके पास रहो।'” — प्रेरितों के काम 8:29 (HSB)

यह ईश्वरीय प्राविडेंस और व्यक्तिगत बुलाहट से जुड़ा है, जो व्यक्ति-विशेष होती है और आध्यात्मिक साधन और समर्पण के माध्यम से समय के साथ पहचानी जाती है।


मैं ईश्वर की इच्छा कैसे खोज सकता हूँ?

बाइबल कुछ मुख्य तरीके बताती है, जिनसे विश्वासियों को उनके जीवन के लिए ईश्वर की इच्छा समझ में आती है:

1. प्रार्थना — परमेश्वर से संबंध स्थापित करना

“यदि तुम्हारे किसी में बुद्धि की कमी है, तो वह परमेश्वर से माँगे, जो सबको बिना दोष पाए उदारता से देता है, और यह उसे दिया जाएगा।” — याकूब 1:5 (HSB)

“प्रार्थना में सतत लगे रहो, सजग और धन्यवादपूर्ण रहो।” — कुलुस्सियों 4:2 (HSB)

प्रार्थना कृपा का साधन है, एक आध्यात्मिक अनुशासन जिसके द्वारा विश्वासियों को परमेश्वर के साथ संबंध बनाने और उसकी बुद्धि प्राप्त करने का अवसर मिलता है।

2. परमेश्वर का वचन — विवेक की नींव

“तेरा वचन मेरे पांव के लिए दीपक, मेरी राह के लिए प्रकाश है।” — भजन संहिता 119:105 (HSB)

“संपूर्ण शास्त्र परमेश्वर से प्रेरित है और शिक्षा देने, डाँटने, सुधारने और धर्म में प्रशिक्षण देने के लिए उपयोगी है।” — 2 तीमुथियुस 3:16–17 (HSB)

सोल्ला स्क्रिप्टुरा (केवल शास्त्र) के सिद्धांत के अनुसार, बाइबल विश्वास और जीवन के लिए सर्वोच्च प्राधिकरण है। ईश्वर की सामान्य इच्छा हमेशा शास्त्रों के अनुरूप होती है, और व्यक्तिगत मार्गदर्शन कभी इसके विपरीत नहीं होता।

3. ईसाई समुदाय और परामर्श — शरीर की बुद्धि

“सलाह के अभाव में योजना विफल हो जाती है, परंतु कई सलाहकारों के साथ वह सफल होती है।” — नीति वचन 15:22 (HSB)

“जहां मार्गदर्शन नहीं है, वहां लोग गिर जाते हैं; परंतु परामर्शकारों की प्रचुरता में सुरक्षा है।” — नीति वचन 11:14 (HSB)

“पवित्र आत्मा और हम सभी को यह अच्छा लगा…” — प्रेरितों के काम 15:28 (HSB)

चर्ची विज्ञान (Ecclesiology) में, मसीह का शरीर पारस्परिक उत्साह और विवेक में एक साथ कार्य करता है। यह सभी विश्वासियों की पुरोहिती (1 पतरस 2:9) और सामूहिक विवेक की आवश्यकता को दर्शाता है।

4. आध्यात्मिक विवेक — बुद्धि और परिपक्वता में वृद्धि

“इस संसार की नकल मत करो, परंतु अपने मन को नवीनीकृत करके बदलो। तब तुम यह परख पाओगे कि ईश्वर की इच्छा क्या है — उसकी भली, पसंदीदा और पूर्ण इच्छा।” — रोमियों 12:2 (HSB)

“परंतु सख्त आहार परिपक्व लोगों के लिए है, जो अभ्यास द्वारा भला और बुरा अलग करना सीख चुके हैं।” — इब्रानियों 5:14 (HSB)

यह पवित्रिकरण और पवित्र आत्मा के कार्य से जुड़ा है। जैसे-जैसे हम मसीह में बढ़ते हैं, हम विवेक विकसित करते हैं — एक आध्यात्मिक “रडार” जो हमें बताता है कि क्या ईश्वर के हृदय के अनुरूप है। इसे पौलुस ने “मसीह का मन” कहा (1 कुरिन्थियों 2:16)।


यह क्यों महत्वपूर्ण है?

“हर कोई जो मुझसे ‘प्रभु, प्रभु’ कहता है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा, परंतु केवल वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा करता है।” — मत्ती 7:21 (HSB)

“संसार और उसकी इच्छाएँ गुजर जाती हैं, परंतु जो कोई ईश्वर की इच्छा करता है वह सदा जीवित रहेगा।” — 1 योहान 2:17 (HSB)

यह केवल नाम के ईसाईपन और सच्चे शिष्यत्व के बीच अंतर को दिखाता है। ईश्वर की इच्छा को करना केवल ज्ञान का मामला नहीं है, बल्कि आज्ञाकारिता का परिणाम है, जो उद्धार विश्वास का फल है (याकूब 2:17)।


व्यावहारिक सार — ईश्वर की इच्छा में चलना

अंतिम प्रोत्साहन:
“प्रभु हमेशा तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा; वह तुम्हारी आवश्यकताओं को पूरा करेगा… और तुम्हारी हड्डियों को मजबूत करेगा।” — यशायाह 58:11 (HSB)

ईश्वर की इच्छा को जानना और करना किसी विशेष वर्ग का रहस्य नहीं है, बल्कि हर विश्वासी के लिए बुलावा है। प्रार्थना, शास्त्र, समुदाय और आध्यात्मिक परिपक्वता के माध्यम से, ईश्वर अपनी इच्छा उन लोगों को प्यार से प्रकट करते हैं जो उसे खोजते हैं।

“तुम मुझे खोजोगे और पाओगे जब तुम पूरे मन से मुझे खोजोगे।” — यिर्मयाह 29:13 (HSB)

धन्य रहें।

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“हर एक की तलवार उसके भाई के विरुद्ध” (यहेजकेल 38:21)

भूमिका

बाइबल कई बार हमें दिखाती है कि परमेश्वर अपने लोगों के लिए कैसे लड़ता है। वह हमेशा उन्हें हथियार उठाने के लिए नहीं भेजता, बल्कि शत्रुओं को आपस में भिड़ा देता है।

यहेजकेल 38:21 (ERV-HI):
“मैं अपने सब पहाड़ों पर गोग के विरुद्ध तलवार बुलाऊँगा; यह सर्वशक्तिमान यहोवा की वाणी है। हर एक की तलवार उसके भाई के विरुद्ध होगी।”

इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर शत्रुओं के बीच भ्रम, अविश्वास और विभाजन उत्पन्न करता है, जिससे वे स्वयं एक-दूसरे को नष्ट कर देते हैं। यह घटना शास्त्रों में बार-बार दिखाई देती है और आज हमारे लिए महत्वपूर्ण आत्मिक शिक्षा रखती है।


1. परमेश्वर भ्रम को हथियार बनाता है

(क) गिदोन की विजय

जब गिदोन की छोटी-सी सेना विशाल शत्रु के सामने खड़ी थी, तब परमेश्वर ने शत्रु-छावनी में डर और उलझन फैला दी।

न्यायियों 7:22 (ERV-HI):
“जब तीन सौ नरसिंगे फूँके गए, तब यहोवा ने सब शिविरियों में ऐसा किया कि वे आपस में तलवार से एक दूसरे को मारने लगे।”

यह हमें सिखाता है कि विजय हमारी शक्ति से नहीं, बल्कि यहोवा से आती है (जकरयाह 4:6)।

(ख) यहोशापात की मुक्ति

जब यहूदा के लोग गा रहे थे और आराधना कर रहे थे, तब परमेश्वर ने शत्रुओं को आपस में भिड़ा दिया।

2 इतिहास 20:22–23 (ERV-HI):
“जैसे ही उन्होंने गाना और स्तुति करना शुरू किया, यहोवा ने अम्मोन, मोआब और सेईर के लोगों पर आक्रमणकारियों को भेजा। अम्मोनी और मोआबी सेईर के लोगों के विरुद्ध उठ खड़े हुए… और जब वे उन्हें समाप्त कर चुके, तब वे एक दूसरे को मारने लगे।”

आराधना न केवल भय का इलाज है, बल्कि परमेश्वर के हस्तक्षेप को बुलाने का एक शक्तिशाली साधन है (भजन 22:3)।


2. परमेश्वर शत्रुओं को आपस में कैसे भिड़ाता है

  • मन का भ्रम – परमेश्वर शत्रु के विचारों को उलझा सकता है।
    व्यवस्थाविवरण 28:28 (ERV-HI):
    “यहोवा तुझे पागलपन, अंधत्व और उलझन से मार डालेगा।”
  • भाषा और विचारों में विभाजन – बाबेल में परमेश्वर ने उनकी भाषा गड़बड़ा दी, और उनकी योजना ढह गई (उत्पत्ति 11:7)।
  • संदेह और प्रतिशोध – अविश्वास से विश्वासघात और हिंसा जन्म लेती है। यही हुआ जब अम्मोन और मोआब पहले सेईर पर, और फिर एक-दूसरे पर टूट पड़े (2 इतिहास 20:23)।

परमेश्वर राष्ट्रों के हृदयों पर प्रभुता रखता है (नीतिवचन 21:1)। जब वह अपने लोगों की रक्षा करना चाहता है, तो शत्रु भीतर से टूट जाते हैं।


3. नए नियम का उदाहरण: पौलुस सभा के सामने

जब पौलुस पर मुकदमा चल रहा था, उसने देखा कि फरीसी और सदूकी पुनरुत्थान के विषय में असहमत हैं। उसने बड़ी बुद्धिमानी से पुनरुत्थान की अपनी आशा का उल्लेख किया, और सभा आपस में बँट गई।

प्रेरितों के काम 23:6–7 (ERV-HI):
“जब पौलुस ने यह कहा तो फरीसियों और सदूकियों के बीच विवाद खड़ा हो गया, और सभा में फूट पड़ गई।”

यह पवित्र आत्मा की दी हुई बुद्धि थी (लूका 12:11–12)। परमेश्वर अपने सेवकों की रक्षा करने और अपने कार्य को आगे बढ़ाने के लिए मानव विभाजनों का भी उपयोग कर सकता है।


4. शैतान भी इस हथियार का प्रयोग करता है

जहाँ परमेश्वर भ्रम का उपयोग अपने लोगों को बचाने के लिए करता है, वहीं शैतान इसका प्रयोग उन्हें नष्ट करने के लिए करता है जब वे परमेश्वर की आज्ञाओं से भटक जाते हैं।

  • इस्राएल का गृहयुद्ध (न्यायियों 19–21): बिन्यामीन गोत्र ने पाप का समर्थन किया, और पूरा इस्राएल आपस में विभाजित होकर हजारों की मृत्यु का कारण बना।
  • आज की कलीसिया: जब प्रेम और पवित्रता खो जाती है, तो विश्वासी एक-दूसरे से लड़ने लगते हैं, बजाय इसके कि असली शत्रु का सामना करें।

गलातियों 5:14–15 (ERV-HI):
“क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही आज्ञा में पूरी हो जाती है: ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’ यदि तुम एक-दूसरे को काटने और चबाने लगो, तो चौकस रहो कि तुम आपस में नष्ट न हो जाओ।”

शैतान का सबसे बड़ा हथियार है कलीसिया में फूट डालना (यूहन्ना 17:21)।


5. आज हमारे लिए सीख

  • परमेश्वर हमारे लिए लड़ता है – हमें भरोसा रखना चाहिए कि वह हमारी रक्षा उन तरीकों से करेगा जो हम सोच भी नहीं सकते (निर्गमन 14:14)।
  • आराधना और आज्ञाकारिता विजय लाती है – यहोशापात की तरह, स्तुति परमेश्वर को हस्तक्षेप करने के लिए आमंत्रित करती है।
  • एकता में सामर्थ्य है – जब हम प्रेम में एक होते हैं, तो शत्रु हमें परास्त नहीं कर सकता (यूहन्ना 13:34–35)।
  • शैतान की चालों से सावधान रहें – ईर्ष्या, कटुता और द्वेष कलीसिया को भीतर से नष्ट कर देते हैं।

निष्कर्ष

जब परमेश्वर कहता है, “हर एक की तलवार उसके भाई के विरुद्ध होगी” (यहेजकेल 38:21), तो यह उसकी सामर्थ्य को दर्शाता है कि वह अपने लोगों के शत्रुओं को आपस में भिड़ाकर उन्हें पराजित कर देता है। लेकिन यह हमारे लिए चेतावनी भी है कि हम शैतान को अपने बीच विभाजन बोने का अवसर न दें।

यदि हम प्रेम, पवित्रता और एकता में चलते हैं, तो स्वयं प्रभु हमारी रक्षा करेगा और शत्रु भ्रम में गिरकर नष्ट हो जाएगा।

शालोम।

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जब परमेश्वर आपको आगे ले जाते हैं: मसीही जीवन में बदलाव के मौसम को समझना

मसीह के अनुयायी होने के नाते, हमें एक गहरी और ज़रूरी सच्चाई को समझना होगा—परमेश्वर कभी नहीं चाहते कि हम एक ही आत्मिक स्थिति में हमेशा बने रहें। वो लगातार हमें ढाल रहे हैं ताकि हम मसीह जैसे बनते जाएँ (रोमियों 8:29)। और इसका मतलब है कि वे हमें अलग-अलग मौसमों से लेकर गुजरेंगे—कुछ आरामदायक होंगे, और कुछ हमारे विश्वास को खींचने वाले।


एलिय्याह की कहानी: जब परमेश्वर व्यवस्था बदलते हैं

ज़रा एलिय्याह की कहानी देखें जब इस्राएल में सूखा पड़ा (1 राजा 17)। जब परमेश्वर ने आकाश को बंद कर दिया और बारिश नहीं होने दी, तब उन्होंने एलिय्याह को केरिथ नाम के नाले के पास भेजा और कौवों को उसका पालन करने को कहा।

1 राजा 17:4-6

“तू उस नाले से पानी पी सकेगा। मैंने कौवों को आदेश दिया है कि वहाँ तुझे खाना दें।”
और कौवे एलिय्याह को सुबह और शाम को रोटी और माँस लाकर देते थे और वह नाले का पानी पीता था।

यह परमेश्वर की ओर से एक अद्भुत और चमत्कारी व्यवस्था थी। मगर यह मौसम हमेशा नहीं चला।

1 राजा 17:7

“थोड़े समय के बाद वह नाला सूख गया क्योंकि देश में वर्षा नहीं हो रही थी।”

एलिय्याह ने कुछ गलत नहीं किया था। नाले का सूखना परमेश्वर की बड़ी योजना का हिस्सा था। लेकिन अगर वह वहीं रुका रहता, तो वह परमेश्वर की अगली योजना से चूक जाता।

फिर परमेश्वर ने उसे अगली दिशा दी:

1 राजा 17:8-9

“फिर यहोवा का संदेश एलिय्याह को मिला, ‘उठ, सरेपत नगर जा। वह सिदोन प्रदेश में है। वहाँ रहना। मैंने वहाँ एक विधवा को आदेश दिया है कि वह तुझे खाना दे।’”

परमेश्वर जो पहले उसे कौवों से खिला रहे थे, अब वही एक विधवा के ज़रिए उसकी ज़रूरत पूरी कर रहे थे। तरीका बदला, लेकिन परमेश्वर की विश्वासयोग्यता नहीं बदली।


1. परमेश्वर हमें अलग-अलग मौसमों से गुज़ार कर तैयार करते हैं

पवित्र बनने की प्रक्रिया (sanctification) आम तौर पर एक यात्रा होती है—एक-एक कदम, एक-एक कक्षा। जैसे बच्चे एक कक्षा पास करके अगली में जाते हैं, वैसे ही परमेश्वर हमें आत्मिक रूप से अलग-अलग चरणों से गुज़ारते हैं (फिलिप्पियों 1:6)।

शायद आपको लगे कि जब आप नए-नए उद्धार पाए थे, तब परमेश्वर बहुत पास लगते थे। वह समय मानो जैसे “कौवे रोटी ला रहे हों।” लेकिन फिर एक वक्त आता है जब वह अनुभव फीका पड़ जाता है। नाला सूखने लगता है।

पर इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर ने आपको छोड़ दिया है—इसका मतलब है कि अब वह आपको परिपक्वता की ओर बुला रहे हैं।

इब्रानियों 5:14

“लेकिन ठोस भोजन तो उन लोगों के लिये है जो परिपक्व हैं। वे लोग ठीक और गलत के बीच फर्क करना जानते हैं क्योंकि उन्होंने अपने मन को अभ्यास से प्रशिक्षित किया है।”


2. जब परमेश्वर चुप हो जाते हैं, तो ज़रूरी नहीं कि वे दूर हो गए हैं

कई बार जब हम पहले जैसा भावनात्मक अनुभव नहीं करते, या हमें सीधे उत्तर नहीं मिलते, तो हम सोच लेते हैं कि शायद परमेश्वर हमें छोड़ चुके हैं।

लेकिन जैसे एक शिक्षक परीक्षा के समय शांत रहता है, वैसे ही परमेश्वर की चुप्पी इस बात का संकेत हो सकती है कि अब आपको आँखों से नहीं, विश्वास से चलना है

2 कुरिन्थियों 5:7

“हम उस पर विश्वास करते हुए जीवन जीते हैं, न कि जो कुछ हम देखते हैं उस पर निर्भर रह कर।”


3. परमेश्वर आपको सिर्फ लेने वाला नहीं, देने वाला बनाना चाहते हैं

शुरुआती आत्मिक जीवन में परमेश्वर हमारी सीधी देखभाल करते हैं। लेकिन जब हम बढ़ते हैं, तो वह हमें दूसरों की सेवा के लिए बुलाते हैं। एलिय्याह की तरह, हम भी दूसरों के चमत्कार का हिस्सा बन जाते हैं।

इब्रानियों 6:1

“इसलिये हमें मसीह की आरंभिक शिक्षा को छोड़ कर परिपक्वता की ओर बढ़ना चाहिये…”

इसका मतलब यह हो सकता है कि आपको किसी नई जगह जाना पड़े, नई ज़िम्मेदारियाँ लेनी पड़ें, या नई आत्मिक दिनचर्या बनानी हो। यह आसान नहीं होगा, लेकिन यह छोड़े जाने की निशानी नहीं, बल्कि तैयारी का हिस्सा है।


जब नाला सूख जाए, तो क्या करें?

  • घबराएं नहीं। यह कोई सज़ा नहीं, एक बदलाव है।
  • प्रार्थना में बने रहें। जैसे एलिय्याह ने अगली दिशा का इंतज़ार किया।
  • आज्ञाकारी बनें। जब परमेश्वर अगला कदम दिखाएँ, उस पर चलें।
  • बीते मौसम से चिपके न रहें। उसकी अनुग्रह उस समय के लिए था।
  • परमेश्वर की उपस्थिति पर भरोसा रखें। जो पहले आपके साथ था, वह अब भी है।

यशायाह 43:19

“सुनो, मैं कुछ नया करने जा रहा हूँ! वह अब अंकुरित हो रहा है! क्या तुम उसे नहीं देख रहे हो?”


आखिरी बात – हिम्मत न हारो, परमेश्वर चल रहे हैं तुम्हारे साथ

अगर आप इस वक्त किसी ऐसे मौसम में हैं जहाँ चीज़ें पहले जैसी नहीं लगतीं—शायद आत्मिक रूप से सूखापन है, या आप किसी नई भूमिका में हैं—तो निराश मत होइए।

परमेश्वर आपकी आशीषें नहीं छीन रहे, वे बस उनके मिलने का तरीका बदल रहे हैं।

एलिय्याह को अब भी भोजन मिला, पर एक विधवा के ज़रिए। वही परमेश्वर, जिसने आपके जीवन की शुरुआत में आपकी अगुवाई की थी, वही अब भी आपके साथ है। अब वह बस आपको कुछ नया सिखा रहे हैं।

फिलिप्पियों 1:6

“मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि जिसने तुम में अच्छा काम शुरू किया है, वह उसे मसीह यीशु के दिन तक पूरा करेगा।”

इसलिए डरो मत। आगे बढ़ो। इस नए मौसम को अपनाओ। और परमेश्वर के अनुग्रह में बढ़ते जाओ।

प्रभु आपको आशीष दे और मज़बूती से थामे रहे।

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“मांस से दागी हुई चोली से भी नफ़रत करो” – इसका मतलब क्या है?

शास्त्र:

“जो दूसरों को आग से छीनकर बचाओ; दूसरों पर दया करो, लेकिन डर के साथ, मांस से दागी हुई चोली से भी नफ़रत करो।”
— यूदा 1:23 (हिंदी बाइबल, रिवाइज्ड वर्शन)

क्या समझें इस बात से?
यूदा की चिट्ठी छोटी है, लेकिन बहुत ज़बरदस्त है। इसमें हमें झूठे शिक्षकों से सावधान रहने और अपने विश्वास के लिए लड़ते रहने को कहा गया है। यूदा 22-23 में वो हमें बताता है कि कैसे हम उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो आध्यात्मिक रूप से लड़ रहे हैं:

  • जो संदेह में हैं, उनके लिए कोमल दया दिखाओ। ऐसे लोग अपने विश्वास को लेकर अनिश्चित होते हैं और उन्हें धीरे-धीरे प्रोत्साहन चाहिए होता है। (यूदा 1:22)
  • जो संकट में हैं, उन्हें आग से बचाए जाने जैसा तुरंत और साहस के साथ बचाओ। (यूदा 1:23a)
  • लेकिन जिनका जीवन गहरे पाप में डूबा है, उनकी मदद करते हुए सावधानी बरतो—उन पर दया करो, लेकिन सतर्क रहो और “मांस से दागी हुई चोली से भी नफ़रत करो”। (यूदा 1:23b)

“मांस से दागी हुई चोली” का मतलब है उस चीज़ से नफ़रत करना जो पाप से दागी हो—जैसे पुराने नियम में पाप या बीमारी से दूषित कपड़े को अशुद्ध माना जाता था। (लैव्यवस्था 13:47-59, संख्या 19:11) जैसे वो कपड़े छूने से अशुद्धि फैलती थी, वैसे ही पाप का असर भी फैल सकता है।

नए नियम में “मांस” से हमारा मतलब है इंसान की वह पापी प्रकृति जो अंदर से खराब हो। इसलिए, मांस से दागी हुई चोली मतलब है बाहरी तौर पर पाप का निशान या पापी जीवनशैली। यूदा हमें कहता है कि हमें सिर्फ पाप से दूर रहना नहीं है, बल्कि उस पाप के निशान से भी दूर रहना है जो किसी को सुधारने की कोशिश में उनके ऊपर लग सकता है।

इसका मतलब यह भी है कि दूसरों को सुधारते हुए हमें अपने दिल की भी सुरक्षा करनी होगी।

गलातियों 6:1 में लिखा है:
“हे भाइयो, यदि कोई पाप में फंसा पाया जाए, तो आप जो आत्मा से चलते हो, उसे कोमलता से सुधारो; परन्तु अपना ध्यान रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।”

यहां हमें दो बातों का संतुलन दिखता है:

  • कृपा हमें दूसरों को प्यार और दया से बचाने के लिए प्रेरित करती है।
  • पवित्रता हमें शुद्ध और साफ़-सुथरा रहने के लिए कहती है।

इसलिए यूदा कहता है कि हमें “डर के साथ” काम करना चाहिए — मतलब अपने कमजोरियों को समझते हुए, सावधानी और समझदारी से।

तो, खोए हुए लोगों को पाने के लिए दिल से कोशिश करो, लेकिन अपना आध्यात्मिक सफर कभी खतरे में मत डालो।
अगर कोई गंभीर पाप में है, तो उसकी मदद करते समय प्रार्थना, जिम्मेदारी, और स्पष्ट सीमाएं बनाएं।
अपने दिल को हमेशा जांचते रहो ताकि दूसरों की मुसीबतों में फंसो नहीं।
पाप से नफ़रत करो—व्यक्ति से नहीं। ऐसा कुछ भी जो तुम्हें परमेश्वर से दूर ले जाए, उससे दूर रहो।

“मांस से दागी हुई चोली से भी नफ़रत करो” (यूदा 1:23) यह हमें याद दिलाता है कि हम दूसरों को प्यार से बचाएं, लेकिन बुद्धिमानी और आध्यात्मिक सतर्कता के साथ। हमारा काम अंधकार में उजाला बनना है, लेकिन उस उजाले को कभी दागदार नहीं होने देना।

शलोम।

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मैं आपको पहले ही आगाह कर रहा हूँ!

प्रभु यीशु मसीह के नाम में आप सब को नम्रता से नमस्कार और आशीर्वाद!

बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो अंत के दिन बहुत से लोगों को अनंत जीवन से वंचित कर देंगी। कई लोग सोचते रहेंगे कि वे परमेश्वर के साथ ठीक हैं और उसे प्रसन्न कर रहे हैं। लेकिन जब उन्हें यह एहसास होगा कि वे अनंत जीवन से चूक गए हैं, तो यह उनके लिए एक बड़ा झटका होगा। इसका कारण सीधा है—उनके जीवन में पवित्रता की कमी है

बाइबिल में लिखा है:

“सब के साथ मेल मिलाप रखने और पवित्र बनने का यत्न करो; क्योंकि बिना पवित्रता के कोई भी प्रभु को न देखेगा।”
(इब्रानियों 12:14)

यह एक सीधी और गंभीर बात है। पवित्रता किसी विकल्प की तरह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी शर्त है जिसे पूरा किए बिना कोई भी परमेश्वर के दर्शन नहीं कर सकता। हम चाहे परमेश्वर के लिए कितने भी काम करें, अगर हमारे जीवन में पवित्रता नहीं है, तो हम अनंत जीवन के योग्य नहीं ठहराए जाएँगे।

1 पतरस 1:16 में यह स्पष्ट लिखा है:

“पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।”

परमेश्वर की अनुग्रह – और उसका अक्सर गलत समझा जाना

कई बार लोग परमेश्वर की अनुग्रह को गलत तरीके से समझते हैं, और यही गलतफहमी उन्हें धोखे में डाल देती है। मेरे प्रिय भाइयों और बहनों, यदि आज कोई व्यक्ति परमेश्वर का नाम भी नकार दे, तो भी वह उसे खाना देगा, उसके लिए सूरज चमकाएगा, बारिश देगा।

प्रभु यीशु ने कहा:

“क्योंकि वह अपने सूर्य को बुरे और भले दोनों पर उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी दोनों पर मेह बरसाता है।”
(मत्ती 5:45)

यह उसके उस सामान्य अनुग्रह को दिखाता है जो वह अपनी पूरी सृष्टि के लिए रखता है—चाहे वे उस पर विश्वास करते हों या नहीं।

लेकिन यह मत सोचिए कि ये आशीषें अनंत जीवन की गारंटी हैं। रोमियों 2:11 में लिखा है:

“क्योंकि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता।”

वह किसी का विशेष पक्ष नहीं लेता। उसकी अनुग्रह हमें पश्चाताप और पवित्र जीवन के लिए आमंत्रण है—ना कि पाप में जीने की छूट।

चमत्कार और आशीर्वाद—मोक्ष का प्रमाण नहीं

अगर आप बीमार पड़े और परमेश्वर ने आपको चंगा कर दिया, या आपने किसी के लिए प्रार्थना की और वह चंगा हो गया, या आपने किसी में से दुष्टात्मा निकाली—तो ये बातें यह सिद्ध नहीं करतीं कि आप परमेश्वर के साथ सही स्थिति में हैं।

प्रभु यीशु ने बहुत साफ शब्दों में कहा:

“उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की? और तेरे नाम से दुष्टात्माएँ नहीं निकालीं? और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’
तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैं ने तुम्हें कभी नहीं जाना; हे कुकर्मी लोगों, मेरे पास से चले जाओ।’”

(मत्ती 7:22-23)

यह बहुत गंभीर बात है। यहाँ प्रभु बता रहे हैं कि सिर्फ उसके नाम से काम करना या चमत्कार करना पर्याप्त नहीं है—वह तो देखता है कि क्या हम पिता की इच्छा को पूरा कर रहे हैं।

मत्ती 7:21 में लिखा है:

“जो कोई मुझ से कहता है, ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।”

इसी तरह, अगर जीवन में कोई कठिन समय आया और परमेश्वर ने आपको बचा लिया, तो यह मानकर मत चलिए कि वह आपसे अधिक प्रसन्न है। उसका करुणा और अनुग्रह सब पर है।

भजन संहिता 145:9 कहता है:

“यहोवा सब पर भला है; और जो कुछ उसने बनाया है उन सभों पर उसकी दया है।”

और लूका 6:35 में यह बात और भी स्पष्ट है:

“क्योंकि वह कृतघ्नों और दुष्टों पर भी कृपालु है।”

अनुग्रह का सही फल: पवित्रता और पश्चाताप

परमेश्वर की भलाई इसीलिए है कि हम पश्चाताप करें। रोमियों 2:4 कहता है:

“क्या तू उसकी भलाई, सहनशीलता और धैर्य को तुच्छ समझता है? क्या तू यह नहीं जानता कि परमेश्वर की भलाई तुझे मन फिराव की ओर ले चलती है?”

यदि हम उसकी भलाई का गलत लाभ उठाते हैं और पाप में बने रहते हैं, तो हम उसके अनुग्रह का अपमान कर रहे हैं।

इफिसियों 5:5 में बहुत साफ लिखा है:

“क्योंकि तुम यह जान लो कि कोई भी व्यभिचारी, अपवित्र या लोभी व्यक्ति, जो मूरत पूजक है, मसीह और परमेश्वर के राज्य का वारिस नहीं होगा।”

पवित्रता: एक मसीही जीवन की मूल पहचान

बाइबिल में 1 थिस्सलुनीकियों 4:3-4 में लिखा है:

“क्योंकि परमेश्वर की यह इच्छा है कि तुम पवित्र बनो: अर्थात तुम व्यभिचार से बचे रहो, और तुम में से हर एक अपने शरीर को पवित्रता और आदर के साथ सम्भाले।”

पवित्रता कोई विकल्प नहीं है—यह वह पहचान है जिससे परमेश्वर अपने लोगों को अलग करता है।

निष्कर्ष

प्रिय जनों, जब हमें चंगाई या सुरक्षा या कोई चमत्कारी आशीष मिलती है, तो हम परमेश्वर की भलाई के लिए धन्यवाद दें। लेकिन इन अनुभवों को अनंत जीवन की गारंटी मत समझिए।

हमें हर दिन पवित्रता, पश्चाताप और आज्ञाकारिता में चलना है—क्योंकि यही वे बातें हैं जो हमें परमेश्वर के राज्य के लिए तैयार करती हैं।

गलातियों 5:19-21 में लिखा है:

“शरीर के काम प्रकट हैं, जैसे कि व्यभिचार, अशुद्धता, लंपटता, मूरत पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, डाह, क्रोध, स्वार्थ, फूट, पंथ, डाह, मतवाला होना, उधमीपन और इनके समान और भी बहुत कुछ। मैं तुम से पहले की तरह फिर कहता हूँ, कि जो लोग ऐसे काम करते हैं वे परमेश्वर के राज्य के अधिकारी न होंगे।”

इसलिए आइए, हम हर दिन पवित्र जीवन जीने के लिए खुद को समर्पित करें, ताकि जब हम उस दिन परमेश्वर के सामने खड़े हों, तो आत्मविश्वास से कह सकें—“हे प्रभु, मैंने तेरी इच्छा पूरी की है।”

परमेश्वर आप सबको आशीष दे।

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बाइबिल में “अंगों” की समझ

जब हम बाइबल में “limbs” या “शरीर के अंगों” की बात करते हैं, तो यह शब्द इंसानों और जानवरों के शारीरिक हिस्सों—जैसे हाथ, पाँव, और शरीर की रचना—को दर्शाने के लिए इस्तेमाल होता है। भले ही अंग्रेज़ी बाइबल के कुछ अनुवादों में यह शब्द सीधे तौर पर न दिखे, लेकिन यह विचार कि शरीर के ये अंग दुर्बलता, पीड़ा और परमेश्वर के न्याय के अधीन हो सकते हैं, कई स्थानों पर साफ दिखाई देता है।

बाइबल में कुछ उदाहरण

अय्यूब 17:7
“मेरी आंखें शोक के मारे बुझ गई हैं, और मेरे सब अंग छाया के समान हो गए हैं।” (अय्यूब 17:7, हिंदी यूनियन बाइबिल)

यहाँ पर अय्यूब गहरे दुःख और थकान का अनुभव कर रहा है। उसकी आंखें धुंधली हो चुकी हैं और उसके अंग जैसे बस परछाई रह गए हों। यह एक ऐसे व्यक्ति की हालत दिखाता है जिसकी आत्मा और शरीर दोनों ही टूट चुके हैं—अंदर की पीड़ा शरीर के अंगों में भी झलक रही है।

अय्यूब 18:13
“उसकी खाल के अंग-अंग नष्ट हो जाएंगे; मृत्यु का ज्येष्ठ पुत्र उसके अंगों को खा जाएगा।” (अय्यूब 18:13, हिंदी यूनियन बाइबिल)

यहाँ “अंगों” का ज़िक्र उस विनाशकारी ताक़त के बारे में है जो पाप और मृत्यु से आती है। यह पद हमें याद दिलाता है कि हमारा शरीर कितना नाज़ुक है, और कैसे परमेश्वर का न्याय या पतित संसार की स्थिति हमें भीतर और बाहर से प्रभावित करती है।

अय्यूब 41:12
“मैं उसकी अंगों की चर्चा नहीं करूंगा, न उसकी शक्ति की, और न उसकी शोभा की।” (अय्यूब 41:12, हिंदी यूनियन बाइबिल)

यहाँ अय्यूब एक महान जीव—संभवत: लिव्यातान—का ज़िक्र कर रहा है। वह उसके अंगों, ताक़त और सुंदरता को बयान करने से भी हिचकिचा रहा है। यह दर्शाता है कि कुछ चीज़ें इतनी महान होती हैं कि उन्हें पूरी तरह समझना हमारे बस की बात नहीं। यह हमें परमेश्वर की रचना की महिमा और हमारी सीमित समझ की याद दिलाता है।


आत्मिक विचार

शरीर: हमारी हालत का दर्पण

इन उदाहरणों में शरीर के अंगों की बात सिर्फ शारीरिक संरचना के रूप में नहीं हो रही—बल्कि यह गवाही है हमारी आंतरिक दशा की। जब हम पीड़ा में होते हैं, तो हमारा शरीर भी उसकी गवाही देता है। हमारा दुर्बल शरीर हमारे भीतर की टूटन और आत्मिक थकावट को भी प्रकट करता है।

न्याय और उद्धार की दिशा में

इन पदों में शरीर की कमजोरी, टूटन और नाशिलता यह भी याद दिलाती है कि हम एक पतित संसार में रहते हैं। लेकिन यही बाइबिल हमें यह भी आशा देती है—खासकर नए नियम में—कि यह नश्वर शरीर एक दिन बदला जाएगा। पुनरुत्थान की आशा हमें बताती है कि जो आज क्षणिक है, वही एक दिन अनंत और महिमामयी होगा।

मानवता का सम्पूर्ण दृष्टिकोण

इन सभी पदों से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि बाइबिल की दृष्टि में मनुष्य केवल आत्मा नहीं है—वह शरीर और भावना से भी जुड़ा है। शरीर की देखभाल, आत्मा की देखभाल से अलग नहीं है। जब हम अपने अंगों को आदर देते हैं, तो हम परमेश्वर की रचना का आदर कर रहे होते हैं। और जब हम आत्मिक नवीकरण की ओर बढ़ते हैं, तो वह सम्पूर्ण मनुष्य के लिए होता है—अंदर और बाहर दोनों।


निष्कर्ष

अंत में कहा जा सकता है कि बाइबल में जब “अंगों” की बात होती है, तो वह केवल शरीर के हिस्सों का उल्लेख नहीं करता—बल्कि वह हमारे जीवन की नाजुकता, पीड़ा, परमेश्वर के न्याय, और साथ ही उद्धार की आशा की भी झलक देता है। यह हमें बुलाता है कि हम अपने शरीर और आत्मा दोनों को परमेश्वर के सामने रखें, ताकि वह हमें सम्पूर्ण रूप में नया कर सके।

शालोम।

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इस्साकार की सन्तानों के नाम—तुम्हें शांति मिले

परिचय: समय को पहचानना

हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के नाम की महिमा हो। मैं आपका स्वागत करता हूँ इस आत्मिक मनन के समय में, जहाँ हम जीवन देनेवाले वचनों पर ध्यान कर रहे हैं। परमेश्वर की अनुग्रह से आज हम एक बहुत ज़रूरी और सामयिक सत्य की ओर ध्यान खींचे जा रहे हैं—समय की पहचान करना और यह जानना कि इन दिनों में परमेश्वर हमसे क्या चाहता है।

बाइबिल सन्दर्भ: याकूब के पुत्र और गोत्रों की पहचान

बाइबिल बताती है कि याकूब—जिसे इस्राएल भी कहा गया—के बारह पुत्र थे (उत्पत्ति 35:22–26), और समय के साथ उनके वंशज इस्राएल के बारह गोत्रों में विभाजित हो गए। हर एक गोत्र की अपनी खास पहचान और आत्मिक भूमिका थी। उदाहरण के लिए:

  • यहूदा—जिससे राजाओं की वंशावली निकली (उत्पत्ति 49:10),
  • लेवी—जिसे याजकत्व की सेवा मिली (व्यवस्थाविवरण 10:8),
  • यूसुफ—जिसके वंश को फलदायकता और आशीष मिली (उत्पत्ति 49:22–26)।

लेकिन इनमें से एक गोत्र ऐसा था जो शक्ति, संख्या या युद्ध से नहीं, बल्कि आत्मिक समझ और विवेक के लिए जाना गया—वह था इस्साकार का गोत्र

इस्साकार: विवेकशीलता का गोत्र

जब राजा शाऊल की मृत्यु हुई, तो इस्राएल में नेतृत्व को लेकर संकट उत्पन्न हो गया। शाऊल बिन्यामीन गोत्र से था, और उनके लोग चाहते थे कि अगला राजा भी उन्हीं के वंश से हो। लेकिन परमेश्वर ने पहले ही दाऊद को अभिषेक कर चुना था (1 शमूएल 16:13)। ऐसे में सवाल यह नहीं था कि अगला राजा कौन होगा, बल्कि यह था: परमेश्वर इस घड़ी में क्या कह रहा है?

यही वह समय था जब इस्साकार के पुत्रों की भूमिका सामने आई।

1 इतिहास 12:32 में लिखा है:

“और इस्साकार के वंशजों में से ऐसे लोग थे, जो समय की समझ रखते थे और जानते थे कि इस्राएल को क्या करना चाहिए; उनके दो सौ प्रधान थे, और उनके सारे भाई उनके अधीन थे।”

इन लोगों ने न केवल राजनीतिक स्थिति को पहचाना, बल्कि उन्होंने परमेश्वर की इच्छा और समय को भी समझा। उन्होंने दाऊद का समर्थन किया और उसके नेतृत्व में इस्राएल को एक किया।

परमेश्वर को समझ रखनेवाले लोग प्रिय हैं

इस्साकार का गोत्र हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर उन्हें आदर देता है जो बुद्धिमानी से उसकी योजना और समय को समझने की कोशिश करते हैं।

जैसा कि नीतिवचन 3:5–6 में लिखा है:

“तू अपनी समझ का सहारा न लेना, परन्तु सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण कर, तब वह तेरे मार्गों को सीधा करेगा।”

परंपरा, भावना या संस्कृति के अनुसार निर्णय लेना पर्याप्त नहीं है। परमेश्वर चाहता है कि हम समझ और विवेक से उसकी इच्छा को पहचानें और उसी के अनुसार चलें।

आज के लिए सन्देश: अंतिम कलीसियाई युग में चेतन होकर जीना

हम मसीह के अनुयायी हैं, और इस अंतिम समय में हमें भी इस्साकार की सन्तानों की तरह बनना है—ऐसे लोग जो पवित्रशास्त्र में स्थिर हैं, आत्मिक रूप से जागरूक हैं, और परमेश्वर की आवाज़ को पहचानते हैं।

दुख की बात है कि बहुत से मसीही आज धार्मिकता की बाहरी रीति-रिवाजों में लगे हैं—चर्च जाते हैं, उद्धार का दावा करते हैं—लेकिन उन्हें यह समझ नहीं कि भविष्यवाणियों की पूर्ति उनके सामने हो रही है

यीशु ने ऐसे लोगों को डांटा था:

लूका 12:54–56 में उसने कहा:

“जब तुम पश्चिम में बादल उठते हुए देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, ‘वर्षा होगी’ और ऐसा ही होता है। और जब दक्षिणी हवा चलती है, तो कहते हो, ‘गरमी होगी’ और वैसा ही होता है। हे कपटियों, पृथ्वी और आकाश के रूप को तो परख सकते हो, परन्तु इस समय को क्यों नहीं पहचानते?”

यीशु पूछ रहा है: क्या हम उस समय को पहचान रहे हैं जिसमें हम जी रहे हैं? क्या हम समझते हैं कि हम उस अंतिम पीढ़ी का हिस्सा हैं जिसके बाद प्रभु लौटने वाला है?

भविष्यवाणी की दृष्टि: लाओदिकिया का युग

प्रकाशितवाक्य 2 और 3 में प्रभु यीशु ने सात कलीसियाओं को सन्देश दिए, जो सात अलग-अलग युगों का प्रतीक हैं। अंतिम युग लाओदिकिया का है—एक गुनगुनी, आत्म-संतुष्ट कलीसिया जो सोचती है कि उसे कुछ नहीं चाहिए, पर वास्तव में वह अंधी और नंगी है (प्रकाशितवाक्य 3:14–22)।

प्रकाशितवाक्य 3:16 में प्रभु कहता है:

“सो, क्योंकि तू न तो गर्म है और न ठंडा, पर गुनगुना है, इस कारण मैं तुझे अपने मुंह से उगल दूँगा।”

यह चेतावनी दुनिया के लिए नहीं, बल्कि कलीसिया के लिए है।

आज विवेक क्यों ज़रूरी है?

हम उन भविष्यवाणियों को पूरा होते देख रहे हैं जो कभी सिर्फ शास्त्रों में लिखी थीं:

  • इस्राएल का फिर से राष्ट्र बनना (यशायाह 66:8),
  • दुनिया भर में धोखा और भ्रम (2 थिस्सलुनीकियों 2:10–12),
  • झूठे भविष्यवक्ता और नकली सुसमाचार (मत्ती 24:11–24),
  • अधर्म का बढ़ना और प्रेम का ठंडा पड़ना (मत्ती 24:12),
  • एक धर्मत्यागी, समझौता करने वाली कलीसिया (2 तीमुथियुस 4:3–4)।

और जल्द ही, जैसा कि 1 थिस्सलुनीकियों 4:16–17 में लिखा है, प्रभु अपने लोगों को उठा ले जाएगा। लेकिन बहुत से विश्वासियों को इस बात की तैयारी नहीं है क्योंकि वे समय को नहीं पहचानते।

अब प्रश्न यह है: क्या आप इस्साकार की संतान की तरह जी रहे हैं?

थोड़ा सोचिए…

  • क्या आप आत्मिक रूप से सजग हैं या व्यस्तताओं में खोए हुए हैं?
  • क्या आप परमेश्वर से गहरा सम्बन्ध रख रहे हैं, या केवल धार्मिक परंपराएँ निभा रहे हैं?
  • क्या आप समय को पहचानते हैं, या चिन्हों को अनदेखा कर रहे हैं?

इस्साकार की सन्तानों की तरह हमें चाहिए कि हम:

  • पवित्रशास्त्र का गहन अध्ययन करें (2 तीमुथियुस 2:15),
  • पवित्र आत्मा की अगुवाई में चलें (यूहन्ना 16:13),
  • मसीह की वापसी के लिए तैयार रहें (मत्ती 24:44),
  • और दूसरों को सत्य में चलने के लिए प्रेरित करें (इफिसियों 5:15–17)।

जब हम ऐसा करेंगे, तो डर नहीं बल्कि समझ, आशा और उद्देश्य में जीएँगे।

निष्कर्ष: अब समय है

हम न सिर्फ अंतिम दिनों में, बल्कि कलीसिया युग की अंतिम घड़ियों में जी रहे हैं। अनुग्रह का द्वार अभी खुला है, लेकिन समय कम है। इसलिए हम सोए हुए न पाये जाएँ।

प्रभु हमें इस्साकार की सन्तानों जैसा विवेक दे, कि हम जानें इस समय में हमें और कलीसिया को क्या करना है।

शालोम।

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बाइबल में “पॉट” क्या होता है?

(अय्यूब 41:20, 31; न्यायाधीश 6:19)

पॉट यानी बरतन, जिसका इस्तेमाल खाना पकाने या उबालने के लिए किया जाता था। बाइबल के ज़माने में ऐसे बरतन हर घर में बहुत ज़रूरी होते थे। ये मांस, अनाज, सब्ज़ियाँ पकाने के लिए और कभी-कभी भेंट चढ़ाने के लिए भी काम आते थे।

शास्त्र में “पॉट” शब्द कभी सीधे-सीधे, और कभी किसी गहरे अर्थ में इस्तेमाल हुआ है। चलिए कुछ उदाहरण देखते हैं:

1. रोजमर्रा का इस्तेमाल – खाना बनाना और व्यवस्था

गिनती 11:7-8
“मन्ना धनिया के दानों के समान था, पीला और गोंद जैसा हल्का। लोग बाहर जाकर उसे जमीन से जुटाते थे। वह चक्की से पीसकर या मोर्टार में कूटकर आटा बनाते थे। फिर उसे पॉट में डालकर उबालते थे और रोटी बनाते थे, जो जैतून के तेल से बनी मिठाई जैसी स्वादिष्ट होती थी।”

यहाँ ‘पॉट’ परमेश्वर की व्यवस्था का प्रतीक है। इसी साधारण बरतन के जरिए मन्ना जो आकाश से मिला, खाने योग्य बन जाता था। आज भी परमेश्वर हमें सिर्फ ज़रूरत की चीजें नहीं देता, बल्कि उन्हें इस्तेमाल करने के तरीके भी देता है।

2. आतिथ्य और भक्ति का प्रतीक

न्यायाधीश 6:19
“फिर गीदोन अपने घर गया, और एक बकरी और एक एफाह आटे से खमीर रहित रोटियाँ तैयार कीं। मांस उसने टोकरी में रखा, और शोरबा पॉट में डालकर उसे तेरबीन के पेड़ के नीचे ले गया और प्रस्तुत किया।”

गीदोन ने भगवान के दूत के लिए खाना बनाया और पॉट का इस्तेमाल किया। यह सेवा और पूजा का तरीका था। अक्सर परमेश्वर साधारण भक्ति के कामों के ज़रिए हमसे मिलता है, जैसे खाना बनाना। यह हमें याद दिलाता है कि हमें परमेश्वर को अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए।

3. शक्ति और अराजकता का प्रतीक

अय्यूब 41:20
“उसके नथुनों से धुआं निकलता है, जैसे जलती झाड़ियों पर पॉट से भाप उठती है।”

अय्यूब 41:31
“वह गहरे पानी को पॉट की तरह उबालता है, और समुद्र को पॉट में रखे हुए सुगंधित तेल जैसा बना देता है।”

यहाँ लविएथान का ज़िक्र है, जो अराजकता और बुराई का प्रतीक है। उबलते पॉट की छवि उस घातक और अनियंत्रित शक्ति की बात करती है, जिसे केवल परमेश्वर ही काबू कर सकता है। यह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर की सत्ता सब पर है — चाहे विनाश की ताकतें ही क्यों न हों।

निष्कर्ष:
बाइबल में ‘पॉट’ सिर्फ खाना पकाने का बर्तन नहीं है। यह परमेश्वर की व्यवस्था, हमारी भक्ति, और अराजकता पर ईश्वरीय नियंत्रण का प्रतीक है। चाहे परिवार के लिए खाना बनाना हो, परमेश्वर को सम्मान देना हो, या शक्ति को दिखाना हो — यह हमें सिखाता है कि साधारण चीज़ों में भी गहरा आध्यात्मिक अर्थ छुपा होता है।

शलोम।

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